सफेद दाग
सफेद दाग
"मम्मा आपका मेल आया है।"
"रहने दे, निरे आते है। म्यूचअल फण्ड या कार सर्विस वालों का होगा।"
"नहीं माँ, ये तो कोई 'कथक डांस इंस्टीट्यूट, लखनऊ' का है।"
"क्या!"
"हाँ माँ।"
"माँ ने उत्सुकता से फ़ोन खींच लिया।"
"अरे ये तो मेरा कॉलेज है। जहां से मैंने त्रिपुण पूरी की थी। सालों बाद कॉलेज से मेल! ला चश्मा ला, देखूँ तो जरा।"
"नमस्कार मैम, वी आर ऑर्गनाइजिंग एलुमनाई रीयूनियन। यू एंड मिसिज़ लतिका वर फेवरेट स्टूडेंट ऑफ डैट टाइम। प्लीज कम एंड मेक दा इवेंट मेमोरेबल।"
"वाह मम्मा, कितना अच्छा मौका है। और ये लतिका कौन है?"
"खाक अच्छा मौका है सालों बीत गए,घर गृहस्थी में फंस सबको पूर्णविराम दे दिया।मैं और लतिका टॉपर थे उस बैच के। कोई भी कार्यक्रम हम दोनों के बिना अधूरा।"
"तो अच्छा है ना मम्मा आप दोनों को फिर एक बार मिलने का मौका मिलेगा।"
"नहीं रे वो नहीं आने वाली। बहुत ऊँचे ख्वाब थे उसके पर मेरे बिना कहीं कम ही आती-जाती थी।सुंदर बहुत थी। तीखे-तीखे आँख-नाक,लंबे बाल दुबली-पतली काया। मतलब एक परफेक्ट कथक-डांसर। किसी समय बहुत चंचल हुआ करती थी। स्कूल की मित्र के साथ मेरी पारिवारिक मित्र भी थी।"
"आपका कोई संपर्क नहीं रहा उनसे।"
"तेरे नानाजी का ट्रांसफर हो गया था फिर मेरी शादी हो गई। घर-गृहस्थी में उलझने के बाद कुछ याद नहीं रहता।"
"आपने बहुत बड़ी गलती की मम्मा अपने शौक को मारकर।"
"रहने दे अब वो बातें याद मत दिला।"
शाम को पति देव आए तो वो भी खुश थे।
"तुम्हें जरूर जाना चाहिए। ऐसे मौके बार-बार नहीं आते। देखना लतिका जरूर आएगी।"
"ना जी, ये काया लेकर मैं कहाँ जाऊँगी। देखकर भी कोई नहीं समझेगा मैं वही वसुधा हूँ।"
"पापा आप भी जानते हैं लतिका आंटी को!"
"हाँ बहुत बोलती थी वो।एक बार जो उससे मिल ले कभी ना भूले। बिल्कुल जीवंत! जीवन जीना कोई उससे सीखे पर बेचारी....।"
"क्यों क्या हुआ पापा? मम्मा, आप ही बता दो ना प्लीज।"
"कुछ नहीं बचपन से ही बहुत चंचल थी। एक दिन आंटी को पाँव में सफेद-दाग दिखाई दिया। पहले तो लगा कैल्शियम की कमी से होगा लेकिन जब वो थोड़ा गहरा होने लगा तो डॉक्टर के पास गए, पता चला ल्यूकोडर्मा है। घर में सब बहुत निराश हुए। जिसने जहाँ बताया इलाज शुरू किया गया। कुछ समय फायदा नज़र आता फिर वही हाल। अब शरीर में कई जगह सफेद-दाग दिखने लगे। आंटी-अंकल पर तो जैसे पहाड़ टूट गया हो। रातों की नींद उड़ गई। लतिका बड़ी होने लगी। पढ़ाई में होशियार, नाचने-कूदने में माहिर और चंचल इतनी कि क्या कहें। कथक इंस्टिट्यूट जॉइन करवा दिया गया जिससे उसका मन लगा रहे। इलाज भी लगातार चालू रहा। सभी कहते लाइलाज बीमारी है पर उसके माता-पिता ने हिम्मत नहीं हारी। अब जहाँ इलाज चल रहा था वहाँ का सबसे बड़ा फायदा यही था कि बीमारी आगे नहीं बढ़ रही थी, लेकिन परहेज़ और सावधानी नितांत आवश्यक। मुझे आज भी याद है, आंटी-अंकल ने सब जगह आना-जाना छोड़ दिया क्योंकि परहेज़ के चलते बेटी कहीं कुछ खा नहीं सकती थी। आंटी ने तो जैसे जीवन ही उस पर समर्पित कर दिया हो। समय-समय पर सब्ज़ियों का जूस देना, खट्टा बंद, बाहर का कुछ नहीं खाना। लतिका भी बड़ी हो अब बीमारी को गंभीरता से लेने लगी।"
बिटिया ने बड़ी गंभीरता से पूछा,"मम्मा क्या सबके बीच उन्हें काम्प्लेक्स होता था।"
"नहीं रे तेरे पापा ने बताया ना जीवन जीना कोई उससे सीखे।स्कूल में,पढ़ाई में,डांस में हर जगह सबसे आगे। बड़े होते-होते उसकी सोच का दायरा भी बढ़ता चला गया। मैंने कभी उसे कुंठित नहीं देखा। हर जगह हाथ आजमाती। कहीं कोई झिझक नहीं। आंटी हर वो चीज़ उसके लिए घर बनाया करतीं जो वो कभी मित्रों संग होटल में जा देख आती।"
"मम्मा कैसे रहती होंगी! इतनी कठोर होकर। कभी तो मन में आया ही होगा, देखा जाएगा जो होगा एक दिन खाने से कुछ नहीं होता।"
"नहीं बेटा, अब तो वो बड़ी हो गयी थी। बचपन में ही उस बच्ची ने अपने माता-पिता के समर्पण को देख सब चीजों का मोह छोड़ दिया था। शायद लोगों के दिमाग से 'सफेद-दाग' लाइलाज बीमारी है, इस सोच वो हटाना चाहती थी या शायद वहाँ भी अव्वल आ लोगों के लिए एक प्रेरणा बनना चाहती थी।"
"फिर क्या हुआ मम्मा वो ठीक हो गईं!"
"ये तो पता नहीं पर हाँ ये जरूर जानती हूँ कि जहाँ भी होगी अपना जीवन मस्त जी रही होगी।"
"मम्मा उनकी शादी!"
"कॉलेज में साथ का एक लड़का था। उसका किसी कॉम्पिटिशन में सेलेक्शन हो गया था। दोनों एक-दूसरे को पसंद करते थे लेकिन वैभव की माता जी रिश्ते को तैयार नहीं थीं।आगे क्या हुआ नहीं जानती।"
"मम्मा अपन तीनों जरूर चलेंगे। इस बहाने मैं लखनऊ भी घूम लूँगी और लतिका आंटी को भी देख लूँगी।आपके बचपन की जगह, कॉलेज कितना अच्छा लगेगा।"
वसुधा सबके जोर देने पर जाने को तैयार हो गई।
वहाँ पहुँचे तो कोई साथी जाना-पहचाना नहीं लग रहा था। सबके बोलने रहने के तौर-तरीके बदल चुके थे।
"आप सबका आपके कॉलेज प्रांगण में हार्दिक अभिनंदन करता हूँ। इस इंस्टिट्यूट को खुले लगभग पचास-वर्ष हो चुके हैं। एक से बढ़कर एक जगह में विद्यार्थियों ने अपनी पहचान बनाई है। हमें खुशी होती है आप लोगों की तरक्की देखकर। आप लोगों का बैच सबसे पसंदीदा बैच रहा है। हमने कोशिश की है कि उस समय के अध्यापक जो कि आने में समर्थ थे उन्हें यहाँ बुलाने की। वसुधा जी व लतिका जी उस बैच की टॉपर रही थीं। मैं सबसे पहले स्टेज पर उन्हें बुलाना चाहूँगा। लतिका जी को थोड़ी देर हो जाएँगी वो किसी सेमिनार में हैं।"
सभी ने तालियों से वसुधा का स्वागत किया पर वो घबराई हुए थीं। ज़िंदगी के पैतीस साल पहले इसी स्टेज पर आ धुआंधार बोला करती थी। जैसे ही स्टेज पर खड़ी हुई पुराने दिन याद आ गए। इतने में नज़र सामने की तो देखा लतिका अपने बच्चों व पति के साथ अंदर आ रही है। बिल्कुल पहले की तरह उसने वसुधा को हाथ से इशारा कर बहुत सुंदर, आगे बोल कहा।
उसे देख मुस्कुराती वसुधा को न जाने क्या चाबी हाथ लग गई। शब्द अपने आप बनने लगे।
"इस मंच के साथ बहुत सी अविस्मरणीय यादें हैं पर किसी कारणवश मुझे अपने करियर को विराम देना पड़ा। सोचती हूँ अब ये अधूरा सपना बिटिया पूरा करेगी। आज यहाँ आकर बहुत गिल्टी फील कर रही हूँ कि मैंने क्या पाया था और क्या छोड़ दिया। पर जीवन ऐसा ही है। मुझे खुशी हुई ये सुनकर की मेरी प्रिय मित्र लतिका बहुत आगे बढ़ चुकी है। लतिका प्लीज आकर मुझे जॉइन करें बिल्कुल उसी तरह जब शब्दों की कमी हो जाती थी तो तुम मुझे संभाल लिया करती थीं।
स्टेज पर चढ़ते ही दोनों मित्रों ने गले लग एक-दूसरे की समीपता की महक को महसूस किया। दोनों की आंँखों से आंँसू निकल पड़े। अपने गुरुजन व अन्य यादों के साथ दोनों ने अपने अनुभव शेयर किए।
वसुधा की नजरें बस लतिका पर टिकी थीं।
पता चला मेलबर्न में कथक-इंस्टीट्यूट चलाती है और भी कई जगह सक्रिय सहयोग देती हैं। इंडिया में एक चेरिटेबल ट्रस्ट से जुड़ीं है जहाँ सफेद-दाग जैसी बीमारी का इलाज के साथ पेशेंट का संबल मोटिवेशनल-स्पीच से बढ़ाया जाता है। ये कोई बीमारी नहीं जो आपको सामान्य जीवन जीने में बाधा डाले।
वसुधा उसके जज़्बे को देख बहुत खुश थी। आज भी वही चंचलता, जीवन जीने का उत्साह देखने लायक था।
"जीजाजी कैसे हैं आप? खूब खिला-पिला कर मोटू कर दिया इसे। तुम्हारी बिटिया बहुत प्यारी है। लगता है इसके होने के समय तुमने मुझे बहुत याद किया। वसुधा....मेरे पति देव से नहीं मिलना चाहोगी।"
"सुनिए ये कौन, पहचाना!" लतिका ने कहा।
"अरे लतिका कैसे भूल सकता हूँ यार। बहुत लेक्चर सुने हैं मैंने इसके। तुमसे दूर रहूँ, ऐसी बहुत हिदायत देती थी। एक दिन तो चांटा तक जड़ दिया, अगर उसका दिल टूटा ना तो भगवान तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा पर भगवान से पहले तुम्हें मेरा सामना करना पडे़गा।"
वसुधा शर्मसार हो गई।
"हाँ वसुधा। वैभव ने अपनी माँ को बहुत समझाया। माँ किस जमाने की बातें करती हो! निखिल भैया के शादी के बाद अचानक सफेद-दाग हो गए थे और बहुत जल्दी फैल भी गए। तो क्या भाभी उन्हें छोड़ गई! उसके बाद उनके दो बच्चे हुए, बिल्कुल स्वस्थ। ये दकियानूसी सोच छोड़ दो। मैं शादी सिर्फ और सिर्फ लतिका से करूँगा। बस फिर क्या था आज माँ भी बहुत खुश हैं।"
लतिका को खुश देख वसुधा को बहुत अच्छा लगा और ये जान कि उसे मनचाहा साथी मिल गया है देख खुशी दोगुनी हो गई।
दोनों मित्र दो दिन साथ बिता जल्दी ही मिलने का वादा कर रुखसत हो लीं।
लतिका के जाने के बाद वसुधा उसे दूर तक देखती रही। 'सच में लतिका तुम बेमिसाल थीं, आज भी हो और हमेशा रहोगी'।
सच सफेद दाग कोई निराशा का प्रतीक नहीं। जीवन को अपने हिसाब से अपनी शर्तों पर खरा उतार कर जियें। कुछ चीजें आपके हाथ में नहीं होतीं इसका मतलब ये तो नहीं कि हम निराशा से मुट्ठी को खुला छोड़ दें बल्कि एक सकारात्मक सोच और थोड़ी सी सावधानी हर रोग का इलाज हैं। सफेद रंग की तरह अपने मन को निश्छल रखें जिसमें हर रंग शामिल हो सके।