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इण्डियन फ़िल्म्स 1.5

इण्डियन फ़िल्म्स 1.5

4 mins
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मेरा नाम जोकर


लेखक : सिर्गेइ पिरिल्याएव

अनुवाद : आ. चारुमति रामदास


इण्डियन फ़िल्म्स की तरह नास्त्या भी पहली ही नज़र में पसंद आ गई। पहले तो हमारे बीच सब कुछ बड़ी अच्छी तरह चल रहा था, मगर फिर (वो भी, शायद पहली ही नज़र में) नास्त्या को पुरानी इण्डियन हिंदी फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर’ पसंद नहीं आई और हम अलग हो गए।

ये सब ऐसे हुआ।

नास्त्या मेरे घर आई, हमने कॉफ़ी पी और मैंने कोई फ़िल्म देखने का सुझाव दिया। जैसे, ‘मेरा नाम जोकर’।

“चल, देखते हैं,” नास्त्या ने कहा।

मैंने कैसेट लगाई और स्क्रीन पर दिखाई दिया: ‘राज कपूर फ़िल्म्स प्रेज़ेन्ट’- मेरी आँखों में आँसू आ गए और सर्कस के अरेना में रंग-बिरंगी रिबन्स के, गुब्बारों के शोर के बीच जोकर की ड्रेस में राज कपूर निकला। उसके पास फ़ौरन सफ़ेद एप्रन पहने, हाथों में कैंचियाँ लिए कई सारे लोग भागते हुए आए।

“आपके दिल का फ़ौरन ऑपरेशन करना पड़ेगा, उन्होंने कहा।

“क्यों ?” राज कपूर ने पूछा।

“क्योंकि इतने बड़े दिल के साथ, जैसा आपका है, ज़िंदा रहना बेहद ख़तरनाक है, उन्होंने कहा, “क्योंकि इतना बड़ा दिल तो दुनिया में किसी के भी पास नहीं है ! सोचिए, क्या होगा, अगर आपके दिल में पूरी दुनिया समा जाए ?”

और राजकपूर गाना गाने लगा। मैं ये भी भूल गया कि मेरी बगल में नास्त्या बैठी है। उत्तेजना के कारण मेरे दाँत कस कर भिंच गए थे और मैंने दाएँ हाथ से बाएँ हाथ की कलाई इतनी कस के पकड़ रखी थी कि उसमें दर्द हो रहा था।

पहला आधा घण्टा तो नास्त्या बिना किसी भावना के देखती रही। फिर वो हँसने लगी। राजकपूर की मम्मा मर रही है, वो उसी शाम अरेना में निकलता है और बच्चों को हँसाता है, और ‘शो’ के बाद काला चश्मा पहन लेता है, जिससे कि कोई उसके आँसू न देख सके... और नास्त्या हँस रही है !

“ओय, चश्मा कैसा है उसका – एकदम सुपर ! – वो कहती है।

“नास्त्या,” भिंचे हुए दाँतों के बीच से मैं तिलमिलाता हूँ, “ये फिल्म सन् सत्तर की है !”

मगर नास्त्या को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था कि फ़िल्म कौन से सन् की है। जब राज कपूर ने अपने सामने पुराने चीथड़ों से बना गुड्डा-जोकर रखा और स्कूल टीचर के साथ अपने पहले नाकामयाब प्यार के बारे में बताने लगा, तो मुझे नास्त्या की तरफ़ देखने में भी डर लगने लगा। मैं सिर्फ हँसी दबाने की उसकी ज़बर्दस्त कोशिशें ही सुन रहा था।

करीब बीस मिनट तक हम तनावपूर्ण ख़ामोशी के बीच फ़िल्म देखते रहे। नास्त्या ने अपने गालों को हाथ से पकड़े रखा और वो कोशिश कर रही थी कि पर्दे की तरफ़ न देखे। मुझे अपने भीतर ऐसी ताकत महसूस हो रही,कि जैसे मैं अपनी नज़र से हमेशा के लिए सूरज को बुझा दूँगा। राज कपूर समन्दर के किनारे पर किसी कुत्ते को सहला रहा था।

“सिर्योग, क्या ये फ़िल्म बहुत देर चलेगी ?” आख़िर नास्त्या ने पूछ ही लिया।

जैसे मुझे चिढ़ाने के लिए रिमोट भी कहीं गिर गया था। फिर मैंने उसे ढूँढ़ा, कैसेट रोक दिया, उसे वीड़ियो-प्लेयर से बाहर निकाला, उसे डिब्बे में रख दिया और डिब्बे से नज़र हटाए बिना धीरे-धीरे कहा:

“सोवियत बॉक्स ऑफिस में ये फ़िल्म दो घण्टे से कुछ ज़्यादा की थी मगर, मेरे पास पूरी, ओरिजिनल फ़िल्म है। तीन घण्टे चालीस मिनट की।”

“बड़ी तकलीफ़देह बात है,” नास्त्या ने कहा।

“तकलीफ़देह,” मैंने दुहराया और मेज़ पर कोई ताल देने लगा।

“सिर्योग,” नास्त्या ने भँवें चढ़ाईं, “क्या तुझे भी ये सब मज़ाकिया नहीं लगता ? देख, कैसा है वो, बूढ़े ठूँठ के जैसा, मगर जा रहा है, जा रहा है, अपने लिए दुल्हन ढूँढ़ रहा है ! और जब सब उसे निकाल देते हैं, तो वो बैठा-बैठा अपने गुड्डे से शिकायत करता है !”

“नहीं,” मैंने कहा, “मुझे इसमें कोई मज़ाक नज़र नहीं आता।”

“बकवास,” नास्त्या ने कहा। “ चल, इससे अच्छा, मैं कोई म्यूज़िक मैंने मेज़ से लाइटर उठाया, उसे क्लिक किया और लौ की ओर द“म्यूज़िक तो तू कभी भी लगा सकती है मगर फ़िल्म ‘मेरा नाम जोकर’ तो तुझे दुनिया का कोई भी नौजवान नहीं दिखाएगा .

“थैन्क्स गॉड,” नास्त्या हँस पड़ी.

इसके बाद हम कभी भी एक दूसरे से नहीं मिले. जाते जाते नास्त्या ने यकीन से कहा, कि पहले मैं ही उसे फ़ोन करूँगा मगर मैंने फ़ोन नहीं किया। कुछ ही दिन पहले मैं आन्या से मिला। मैं उसे ‘मेरा नाम जोकर’ नहीं दिखाऊँगा’ उसे मैं ‘श्री 420’ दिखाऊँगा। उमसें राजकपूर जवान है और उसके गाने भी बढ़िया हैं।लगाती हूँ।”


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