हीरो
हीरो
मैं ट्रेन में चढ़ने के बाद अपनी सीट तक पहुँचने का प्रयास कर रही थी पर आगे की भीङ़ जस की तस खङ़ी थी। मैंने हैरान- परेशान गुस्से से तमतमाते हुए मेरे आगे खङ़े अधेड़ वयक्ति से कहा - " अरे आगे तो चलो भाईसाहब, कब तक यूँ ब्रिफकेस उठाये खङ़ी रहूँगी "।
" बहन, मुझसे आगे चार लोग खङ़े है।वे आगे बढ़ेंगे तभी आप और मैं आगे जा पाएंगे " उन्होंने शांति से जवाब दिया।
किसी तरह दस मिनट की मशक्कत के बाद मैं अपनी सीट पर पहूँच पाई तो देखा सामने की सीट पर एक दुबला - पतला आदमी अपनी सीट के साइज का कार्टून एडजस्ट कर रहा है। ये सारा जाम भी उसी की देन था।अब भी आते - जाते लोगों को वहाँ रुकना पङ़ रहा था। किसी तरह अगले दस मिनट में वो वयक्ति अपने इस बङ़े से कार्टून को एडजस्ट करने में कामयाब होकर सीट पर बैठ गया।
मैंने पूछा- " आप इतना बङ़ा कार्टून साथ में लेकर चल रहे है। आप भी परेशान और बाकी सब भी.... अच्छा होता आप इसे ट्रांस्पोर्ट के जरिये भेजते "।
" जी ,आप सही कह रही हैं पर मैं ऐसा नहीं कर सकता " उसने मोबाइल को चार्जर में लगाते हुए जवाब दिया।
'क्यों भला....! क्या है इसमें....! " मेरे साथ- साथ आसपास के लोगों ने भी कहा।
" इसमें मेरी साइकिल है और कल मैं नागपुर में कल होने वाली ऑल इंडिया रेस में हिस्सा लेने जा रहा हूँ। ट्रासपोर्ट में टूटने का डर रहता है। ये बाक्स बङ़ा है पर साइकिल का वजन मात्र चार किलो है " उसने हमें बताया।
" अच्छा ....इसमें साइकिल आ गई " मैंने आश्चर्य से पूछा।
नहीं , अभीअलग अलग पार्ट मैं करके डाली है। वहाँ पहूँचकर खुद असेम्बल करूँगा " उसने पानी का घूँट पीते हुए बताया।
अब तक आस - पास खड़े लोग बैठ चुके थे।
" आप कब से हिस्सा ले रहे है " मेरा अगला सवाल था।
" मैं सात बार हिस्सा ले चुका और चार बार विनर भी रहा हूँ " उसने जानकारी दी।
" आरे वाह...फिर तो आपके साथ एक सेल्फी हो जाए " ऊपर की सीट पर बैठे नौजवान ने जंप लगाते हुए कहा।
" अरे जब आपको उतरना हो तो तकलीफ न उठाना ,हम आपकी साइकिल उतरवा देंगें " दूसरे ने कहा।
अब तो उनके साथ सेल्फी, ओटोग्राफ लेने वालों की लाइन लगी थी। दृष्टि बदलते ही दृश्य बदल गया था। जो अब तक विलेन लग रहा था अब हमारा हीरो बन गया था।