और वह हार गयी
और वह हार गयी
आज वह बड़ी बेचैनी से काल कोठरी में इधर -उधर भाग रही थी। जीने की अभिलाषा मानो दम तोड़ चुकी थी। वह यकीन ही नहीं कर पा रही थी कि संसार की सबसे सुरक्षित जगह भी इतनी डरावनी हो सकती है।
ढाई महीने से तो सब कुछ ठीक-ठाक था। उसकी माँ प्रेम भरा हाथ रोज़ फेरती थी जिससे उसको बहुत सुकून मिलता था, मगर आज...आज यह क्या हो गया !
सुबह से अन्न तक नहीं खाया है उसकी माँ ने। वह भूखी प्यासी इधर से उधर दीवारों से टकरा रही है। क्या माँ को यह आभास नहीं कि एक नन्ही सी जान भूखी नहीं रह सकती और उस पर मौत की सजा का ऐलान। वह मरने से पहले ही मर चुकी थी।
कल उसके कथित माँ-बाप चैकअप के लिए जब डाक्टर के पास गए थे तब वह बहुत खुश थी कि उसकी भलाई और अच्छे स्वास्थ्य के लिए कितने चिंतित हैं मम्मी-पापा।
लेकिन वह हुआ जिसकी उसने कल्पना तक नहीं की। अचानक जब डाक्टर ने यह बताया कि वह एक लड़की है तो उसकी माँ का व्यवहार एकदम बदल गया। पल पल स्नेह भरा हाथ उसकी छत पर फेरने वाली ममतामयी माँ की भावनाएँ पल भर में बदल गयीं।
"इस बार फिर लड़की ....देखो जी मुझे नहीं रखनी।" माँ ने झल्लाते हुए कहा।
"ठीक है, कल अबॉर्शन के लिए चलना।" पिता ने निर्दयता से कहा। सुनकर वह काँप उठी और डाक्टर ने कह दिया कि सुबह को खाली पेट आना। माँ पहुँच गयी उसकी ह्त्या कराने।
औजारों की चोट से उसको बिलकुल दर्द नहीं हुआ। टुकड़े-टुकड़े कर दिए, फिर भी नहीं। वह तो अपने माँ-बाप की निर्दयता से पहले ही, उनकी बात सुनकर मर चुकी थी।