समय-समय की बात
समय-समय की बात
दिन निकलते ही मीना ने अपनी सास को आवाज़ लगाते हुए चाय लाने की फरमाइश की। रात भर बुखार में तपने के कारण वृद्धा से हिला भी नहीं जा रहा पर चाय बनाने के लिए तो उठना ही पड़ेगा। चाय के साथ नाश्ता लेकर आती प्रभा के हाथ कांप रहे थे। नये गलीचे पर चाय गिर गयी थी। अब मीना का गुस्सा सातवें आसमान पर था। सारे दिन घर में रहती हो पैसे की कीमत क्या जानो। सास की आँखों में नमी झलक रही थी।
अम्मा मुझे आपने दोस्तो के साथ घूमने जाने के लिए २००० क्यों नहीं दिए। बहुत कंजूस हो। रोहित ने गुस्से में कहा था।
बेटा मेरी छोटी-सी नौकरी में गुजारा करना मुश्किल हो रहा है। अम्मा की आँखों में नमी झलक रही थी।
अम्मा मुझे माफ़ कर दो। आप परेशान मत हो। मेरी नौकरी लगते ही आपके दुख दूर हो जाएँगे।
अम्माजी, कहाँ खो जाती हो, मैं कुछ कह रही हूँ।
बहू, दोबारा ग़लती नहीं होगी।
समय समय की बात है। इंसान वही रहता है, लोगों की सोच बदल जाती है।