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ये कैसी पूजा

ये कैसी पूजा

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माया ने सुबह उठकर जल्दी-जल्दी अपने हाथ और शरीर के बाकी हिस्सों पर लगे चोट को निहारा और एक बार सोचा दवा लगा लूं, फिर न जाने क्या सोचकर बुदबुदाते हुए कहा, 'घाव गहरा नहीं...' और किचन में नाश्ता बनाने चली गई।

'नाश्ता बनाने के बाद छवि को उठाया, हाथ मुंह धुलाकर उसे नाश्ता कराया। तभी नरेंद्र भी उठकर डायनिंग टेबल पर बैठ गया।

'गुड मॉर्निंग छवि '- नरेंद्र ने कहा।

'छवि बिना जवाब दिए वहां से उठकर किचन में चली गई।'

नरेंद्र ने माया से पूछा- इसे क्या हुआ ?

कुछ नहीं अभी सोकर उठी है, शायद इसलिए...। मैं आपके लिए नाश्ता लेकर आती हूं - इतना कहकर माया भी किचन में चली गई।

नाश्ता करने के बाद नरेंद्र ऑफिस के लिए निकल गया और माया नाश्ता करने बैठी हुई थी, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।

'माया ने दरवाजा खोला तो पड़ोस की वर्मा आंटी थी, उनकेे घर आज कन्या पूजन का आयोजन था' जिसके लिए वो छवि को बुलाने आई थी।कुछ देर बैठ कर वह चली गई।

'छवि बेटा कहां हो ? - माया ने अपनी दस साल की बेटी को आवाज लगाई। 'मम्मा मैं यहां हूं' - सोफे के पीछे से आवाज आई ।

'यहां क्या कर रहा है मेरा बच्चा ?

'मैं खेल रही हूं मम्मा।'

'चलो जल्दी से तुम्हें नहला कर तैयार कर दूं, वर्मा अंकल के घर जाना है। उनके यहां कन्या पूजन हैं।'

'मम्मा ये कन्या पूजन क्या होता हैं। '

'अभी नवरात्र चल रहा है जिसमें मां दुर्गा की पूजा होती हैं, मां दुर्गा जो असुर का संहार करती हैं। सप्तमी से ही कुंवारी कन्याओं का पूजन किया जाता है, इस दिन कन्याओं का आदर सत्कार किया जाता हैं और उनको भोजन कराने से मां दुर्गा खुश होती हैं और भक्तों को सुख - समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं'और छोटी कन्याएं मां दुर्गा का रूप होती हैं, इसलिए वो आपको बुलाने आई थी।

'मम्मा और जब लड़की बड़ी हो जाती हैं तो वो मां दुर्गा का रूप नहीं होती हैं क्या ?

'हां तब भी होती हैं' - माया ने कहा।

'फिर उसकी पूजा क्यों नहीं करते ? 'उसे मारते - पिटते और उसका अपमान क्यों करते हैं ? ये कैसी पूजा है?

'माया अपने बदन पर लगे चोट को साड़ी से ढकने लगी', अभी तुम बच्ची हो इन बातों को समझने के लिए - रूंधे हुए गले से माया ने कहा।

'पर मम्मा आप तो सब समझती है ना, फिर आप मां दुर्गा बनकर असुर का संहार क्यों नहीं करती....!

'माया निरुत्तर एकटक छवि को निहारने लगी और उससे लिपट कर रोने लगी और सोचने लगी मैं अपनी बेटी के साथ ऐसा कुछ नहीं होने दूंगी।'

'दूसरे दिन सुबह उठकर ने माया ने अंदरूनी चोट पर दृढ़ता का मरहम लगाया और छवि को लेकर जाने लगी'

नरेंद्र ने पूछा -'जब जाना ही था तो, रूकी ही क्यों थी ?

'मुझमें हिम्मत नहीं थी, मां-बाप की के दिए हुए संस्कार जो शायद हर लड़की को बचपन से ही सिखाया जाता हैं की सहनशील बनना चाहिए, थोड़ी कमी तो हर घर में होती हैं, और बेटी के भविष्य के बारे में सोच रही थी। यही सब सोच कर आजतक चुप थी, लेकिन मैं ग़लत थी, सहना सबसे बड़ा पाप है, आज मुझे समझ आया।

"बेटी के लिए रूकी थी और आज बेटी के लिए ही जा रही हूं......."


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