Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Alka Pramod

Inspirational

0.2  

Alka Pramod

Inspirational

झुमकी की मौत

झुमकी की मौत

15 mins
15K


हासन झोपड़ी के बाहर बीड़ी पर बीड़ी फूंके जा रहा था कि उसे अचानक खांसी का धचका लगा और वह बुरी तरह खांसने लगा, खांसते-खांसते बलगम के साथ रक्त का थक्का भी निकल आया। उसके खखारने की आवाज़ सुन कर गुनिया झोपड़ी से बाहर आ गयी और बड़बड़ाने लगी 'इहां दुई जून की रोटी नाही जुड़ात है अउर ई ससुर बीड़ी में पइसा अउर जिगरा दुइनो फूंके पड़ा है।'

    फिर एक अल्मुनियम लोटे में पानी उसके हाथ में पटकते हुए बोली 'आये दो झुमकी का, तोहर सारी करतूत बतइबे।'

   यह सुन कर हासन बिफर पड़ा 'काहे झुमकी का को लारड गवरनर है कि हमका फाँसी चढ़ाय देही, उई-दुई बीता भर की छोकरी हमका उकर डर दिखाय रही है...हुंह।'

'हां दुई बीता की है पर ओह की कमाई से ही घर मां रोटी का जुगाड़ हुई जात है नाही तो पेट और पीठ एक हुई जात रहै।'

हासन ने अकड़ कर कहा 'हां तौ हमरै बिटिया तौ है, उ हमका तोहरे से जियादा माने है।'

'अब जियादा भैाकाल न दिखावौ' कहते कहते गुनिया को याद आया कि चूल्हे पर सब्जी चढ़ी है कहीं जल गई तो नमक रोटी खानी पड़ेगी और वह अन्दर को लपकी।

भूख और गरीबी से त्रस्त हो कर हासन जब शहर आया था तो दो दिनो तक उसे और उसके परिवार को पानी पर दिन व्यतीत करने पड़े थे। धीरे धीेरे पूरे परिवार ने मज़दूरी करके किसी तरह शहर में सांस लेने का जुगाड़ कर ही लिया था। हासन, गुनिया, सबसे बड़ी औलाद चैदह साल की झुमकी, बारह का राजू, मज़दूरी करते और ग्यारह साल की मुनिया छोटे भाई बहन बिट्टू, और माजी की देख भाल करती।उसके गांव के रमई ने अपने बचपन की यारी निभाई, उसी की सहायता से पांव जमाने का आसरा मिला और उसने झुपड़पट्टी में एक झोपड़ी बना ली।

हासन राणा साहब की कोठी पर मज़दूरी के काम लगा था हासन के साथ झुमकी भी मज़दूरी करने गई। राणा साहब की मैडम को उसका तन्मयता से बिना रूके काम करना भा गया, उन्होने कहा 'मैं तुम्हारी बेटी को अपने पास रखूंगी वो हमारे घर के काम में सहायता करेगी और हम उसे पढ़ाएंगे।'

'पर हुजूर हमका छोरी केा पढ़ाय के का करे का है, मज़ूरी करके कछु पइसा ही कमाय लेत है।'

'अरे तो हम भी कोई मुफ्त में काम थोड़े ही कराएंगे पूरे हजार रूपये देंगे और तुम्हारी बेटी का खाना पहनना पढ़ना मुफ्त' मिसेज राणा ने कहा।

हासन को सौदा लाभ का लगा, दोनो हाथ में लड्डू, एक हजार रूपये हाथ में और एक पेट का खाने का भार कम।

झुमकी राणा जी के घर काम करने लगी कुछ ही दिनों में उसकी तो चाल ढाल ही बदल गई। उसकी भाषा बोली पहनने ओढ़ने का अंदाज सब बदल गया।अब उसकी बोली में गांव की गंवई बोली का स्थान खड़ी बोली लेती जा रही थी। अच्छे खाने ने उसकी धूल में छिपी लुनाई को बरसात के बाद धुली पंखुड़ी सा निखार दिया था, जूं से भरे रूखे केशों की जगह शैम्पू किये करीने से पोनी टेल में बंधे बालों ने ले ली थीे। मैडम के रिजेक्ट किये कपड़ों में वह सड़क पर लगे पोस्टर की नायिका से स्वयं की तुलना करने लगी थी और कुछ रंगीन सपने देखने का साहस करने लगी थी। महीने में एक बार झुमकी घर आती तो उसे समझ न आता कि उस कच्चे घर की कच्ची ज़मीन पर कहाँ बैठे। जब वह बप्पा के हाथ में हज़ार रूपये रखती तो अनजाने ही उसके आगे अम्मा बप्पा का कद बौना हो जाता और छोटे भाई बहन हसरत से उसके कपड़े छू छू कर देखते।

सब कुछ ठीक था कि अचानक उस सुबह दस बजे किसी ने आ कर हासन से कहा 'तुम्हारी बिटिया ने फांसी लगा ली।'

हासन और उसकी बीबी गुनिया हकबक रह गये, अभी पिछले हफ्ते ही तो झुमकी आई थी तब तो सब ठीक था। कुछ क्षण तो वो संज्ञा शून्य हो गये फिर जब बात समझ में आई तो वो जिस हाल में थे राणा जी के घर की ओर दौड़ पड़े। उनके कदम तो मानों साथ ही छोड़े दे रहे थे दोनो यही मना रहे थे कि झुमकी के ऊपर कौवा बैठा हो इसी लिये उसकी लम्बी उमर की खातिर उन्हे यह खबर दी गई हो। उनका बावरा मन यह नही सोच पाया कि ऐसा झुमकी का कौन हितैषी बैठा है जो उसकी लम्बी उमर की खातिर इतना बखेड़ा करेगा।

राणा जी के घर में ज़मीन पर उनकी बेटी सदा के लिये आंखे मूँदे पड़ी थी। हासन और गुनिया उसके शरीर से लिपट कर दहाड़े मार कर रो पड़े। वो मन भर रो भी न पाये थे कि विकासदेव उन्हे उठा कर अपने साथ बाहर ले आये। उन्होने उससे कहा 'तुम पहले थाने चलो, फिर राणा जी से निबटना।'

हासन ने कहा 'थाने काहे अरे कोऊ बतावा है कि हमरी बिटीवा कछु कर लीहिस अउर आप हमही का थाने ले जाय रहे हो।'

विकास देव ने कहा 'इसीलिये तो हम कह रहे हैं कि थाने चल कर रिपोर्ट लिखाओ।'

बेटी को देखने को बेचैन गुनिया ने कहा 'साहब हमका अपनी बिटीवा मन भर देखै का है का पता अभी जान बची होय अउर उ जी जावै, तुम हमका बीचै में न अटकाओ।'

विकासदेव ने कहा 'तुम्हारी बिटिया तो अब दुनिया से जा चुकी है।' समाचार की दोबारा पुष्टि से हासन और गुनिया की रही सही आशा भी घ्वस्त हो गई। 

दुखी हासन को विकासदेव की दुनियादारी की बाते इस समय शूल-सी चुभ रही थीं उसने विरोध किया ' हमका कोरट कचहरी मां नाही परेका है साहिब।'

'अरे हद करते हो उन्होने तुम्हारी बेटी को मार दिया और तुम उन्हे ऐसे ही छोड़ दोगे, अपनी बेटी का बदला भी नही लोगे'  विकासदेव ने उन्हे भड़काया।

'पर साहिब मैडम जी तो ओका बहुत चाहे रहीं हमका तो यहु नाही पता कि हुआ का है हमका तो बस ओका देखे का है' हासन ने कहा।

'तुम बहुत भोले हो अरे तुम्हारी बेटी मरी है वो भी मि. राणा के घर पर।'

'पर एक बार ओहसे पूछेै तो का हुआ, सुना है वह खुदय मरि गई।' फिर कुछ सोचता सा बोला 'वैसे साहिब हमरी बिटीवौ कम गरम दिमाग की नाही रही, का पता का हुआ। अउर साहिब ऊ बरे लोग उनकेर हमरी बिटिया से का दुसमनी अउर सौ बात की एक बात उनका सजा दिराय से हमरी बिटीवा तो हमका मिलिहै नाही।'

'पर ई है कि अगर उनके बरे हमरी बिटीवा मरी है तौ हमरा सराप उनकेर छोहिड़ है नाही' गुनिया ने कहा।

विकास देव ने सिर थाम लिया उन्हे लगा गुनिया को समझाया जा सकता है वो गुनिया से बोले 'ये तो सिरफिरा है' उन्होने उसे सीधे सीधे समझाया 'देखो यह कोई छोटी बात नही है तुम्हारी बिटिया गई है वो भी राणा जी के घर में उसने आत्महत्या की है, मुआवज़ा तो उनको देना ही होगा।'

गुनिया को बात समझ में आ गई उसने हासन को घुड़का 'अरे झुमकी के बापू हमरी झुमकी का तो उई मार दिहैं। उई तो गई पर चार पिरानी जो हैं उनका का होइहै अब हमरा खर्चा पानी कइसे चलिहै।'

यह सुन कर हासन को होश आया और बेटी के विछोह में व्यथित पिता का गला घोंट कर दुनियादार इंसान जगा। उसने घटना का यह पक्ष तो सोचा ही नही था। अचानक ही उसे बीड़ी की तलब लगने लगी और उसे अपने ऊपर क्रोध आया कि उसे अब तक वह मूर्ख विकासदेव के कहने का अर्थ क्यों नही समझ रहा था। बेटी तो हाथ से गई ही उसे थेाड़ी देर बाद भी देखा जा सकता है पहले तो विकास देव के साथ थाने जाना होगा रिपोर्ट लिखाने।

जिस समय झुमकी ने आत्महत्या की उस समय श्री राणा के घर में केवल उनकी पत्नी ही थी। यद्यपि उनके अनुसार वो तो अपने कमरें में टीवी देख रही थीं और उन्हे नही पता कि झुमकी ने ऐसा क्यों किया। पर ऐसा कहने से तो उन्हे निर्दोष नही माना जा सकता और फिर उनका और कोई दोष भले न हो नाबालिग लड़की को काम पर रखने का अपराध तो बनता ही था। वो भले ही कहती रहीं कि वो तो झुमकी के परिवार की सहायता के लिये उसे पढ़ाने के लिये, उसकी ज़िंदगी सुधारने के लिये अपने पास रखे थी और सच कुछ भी हो पर मीडिया और हवा में फैलेे चर्चों के गुबार और परिस्थितियाँ शक की सुई उन्ही की ओर मोड़ रहे थे।

जब मिसेज राणा को लाक अप से कोर्ट ले जाने के लिये ले जाया जाने लगा तो वहाँ जमा भीड़ एकाएक चैतन्य हो गई मानो उनके जीवन की सार्थकता उन्हे दंड दिलाने में ही है। सारे के सारे लोगों ने जीप को चारों ओर से घेर लिया।

'पैसे वाले होश में आओ, खूनी को सजा दो, गरीब भी इंसान है उसे भी इंसाफ चाहिये.......................' के नारे गूंजने लगे। कुछ लोग जीप पर डंडे मारने लगे, बड़ी कठिनता से पुलिस उग्र होती भीड़ को रोकने का असफल प्रयास कर रही थी अन्ततः विकास देव ने आ कर भीड़ को नियंत्रित किया।

तभी श्री राणा अपनी गाड़ी से वहाँ आये, भीड़ कुछ करती उससे पूर्व ही विकास देव ने भीड़ को शान्त रहने का इशारा किया और श्री राणा की कार के पास पहुंचे। उन्होने श्री राणा की गाड़ी रोक कर उनसे बाहर आने का संकेत किया। श्री राणा को एक किनारे ले जा कर विकास देव ने कहा 'अगर आप इस भीड़ के गुस्से से बचना चाहते हैं तो मैं यह काम कर सकता हूँ।'

'आप बताइये मैं क्या करूं किसी तरह इस भीड़ को रोकिये, मै तो ऐसे ही बहुत परेशान हूँ ऊपर से यह भीड़ और मुसीबत किये है।'

'देखिये उस गरीब की बेटी गई है और किसी भी इंसान के लिये चाहे वह गरीब हो या अमीर जान से ज़्यादा कुछ नही होता।'

'हाँ, मै मानता हूँ पर इसमें मेरी पत्नी का कोई दोष नही है। वो तो उसका बहुत ध्यान रखती थी अब उसने जान दे दी तो मै क्या करूं' श्री राणा ने पसीना पोछते हुए कहा।

'देखिये साहब जिसकी बच्ची की जान गई है उसके लिये तो जो उसका रखवाला था वो ही दोषी होगा, कुछ भी हो आपके घर पर उसकी बेटी की जान गई है तो ज़िम्मेदारी तो आप की ही है' विकासदेव ने उन्हे दबाव में लेते हुए कहा, फिर उनका उतरा चेहरा देख उन्हे समझ आ गया कि तीर निशाने पर लगा है। वो उनके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले' वैसे देखिये मेरी सहानुभूति आपके साथ है।'

श्री राणा को विकासदेव डूबते में तिनके का सहारा लगे, वह तुरंत विकासदेव का हाथ थाम कर बोले ' तो बताओ मैं तो कुछ भी करने को तैयार हूँ।'

'वैसे तो किसी के लिये भी उसका बच्चा अनमोल होता है और झुमकी तो अपने घर के लिये कमाई का भी आसरा थी, उनका तो दोहरा नुकसान हुआ है' विकासदेव राणा जी को पूरी अनुभूति करा रहे थे वो कितने गहरे भंवर में फंसे हैं।

'तो बताओ मै क्या करूं' राणा जी ने लाचारी से कहा।

'आप उनकी बेटी तो नही लौटा सकते पर उसकी कमाई की भरपाई तो कर ही सकते हैं' विकासदेव मुद्दे की बात पर आये।

'कितना दूं'?

'कम से कम तीन लाख तो दीजिये ही।'

'तीन लाख, क्या कह रहे हो अभी तो मुझे इस केस के कानूनी झमेले में ही लाखों खर्च करना होगा। इतना तो वो हमारे यहाँ दस बीस साल काम करती तो भी न होता' राणा ने भड़कते हुए कहा।

'तो ठीक है आप खुद ही निपटिये 'विकास देव ने वहाँ से चलते हुये दांव फेंका। 

'नही नही मेरा यह मतलब नही है' राणा ने उसे रोका। 'पर कुछ तो रीज़नेबल अमाउन्ट बताइये।'

'चलिये ठीक है दो दे दीजिये।'

'एक से काम नही चलेगा' राणा ने टटोला।

'आप सब्जी नही खरीद रहे हैं, किसी की जान गई है' विकासदेव ने उठते हुये कहा।

'हमे भी पता है, तभी तो हम दे रहे हैं नही तो लाख दो लाख रूपये पेड़ से नही टपकते।'

दोनो पक्षों में रस्साकशी चल रही थी उधर हासन और गुनिया अधीरता से दूर से उनकी बात समाप्त होने की प्रतीक्षा में इधर ही दृष्टि गड़ाए थे। 

एक लम्बी बहस और मोल भाव के बाद मामला डेढ़ लाख में तय हुआ।

विकास देव ने जा कर झुमकी के पिता हासन से पसीना पोछते हुये कहा 'मैने राणा को आड़े हाथें लिया, खूब डांटा फटकारा। अरे क्या बतायें इन पैसे वालों को, कह रहे थे हासन को पैसे दे कर मामला रफा दफा करो पर हम बिगड़ गये हमने कहा अरे साहब उसके दिल का टुकड़ा गया है उसके आंख की तो रोशनी चली गयी।'

'फिर'? हासन ने पूछा।

'हमने कह दिया वो सुप्रीम कोर्ट तक लड़ेगा पर सजा दिलवा कर ही मानेगा,' यह कह कर विकास आगे बढ़ गये। 

हासन घबरा गया उसने दौेड़ का विकास को रोकते हुये कहा 'अरे माई बाप हमरी कहाँ कोरट कचहरी की औेकात है दुई जून रोटी तो जुटत नाही। झुमकी थी तो महीने में हजार रूपइया मिलौ जात रहा अउर उ तो साहब के घरै रहती रही ओकर कोई खर्चा नाही था। पर पता नही ओका का सूझी की फंदा डार झूर गई अब तो हमरी कोउ कमइयों नाही बची बाकी बच्चे छोटेै हैं उनकी अम्मा की तबियत ऐसन ही ऊपर वाले के भरोसे है हमका दिन भर मा जो मिलत हेै उससे रोटी भी पूरी नही पड़ती, एकै कथरी का ओढ़ें का बिछावै।'

विकास ने कुछ सोचने की मुद्रा में देखते हुये कहा 'हुं देखें कोशिश करते हैं। वह  राणा के पास गया। राना ने उसे एक लाख दिये अैार कहा कि पहले केस तो वापस करवाओ अगर कोर्ट में चला गया तो मामला हाथ से निकल जाएगा बाकी बाद में देंगे। विकास ने अपनी काल्पनिक मूंछों पर ताव देते हुए कहा 'अरे यह विकास देव की जुबान है कोई मज़ाक नही।'

उसने पैसे अपनी जेब में रखे और हासन के पास आया। हासन ने उन्हे उम्मीद से निहारा, विकास देव ने पचास हजार उसके हाथ में रखते हुये अहसान दिखाते हुये कहा 'सारी जोर जबरदस्ती करनी पड़ी अरे बड़ी पहुँच वाली पार्टी है।' हासन का दुख लहराते नोटों की हवा में घुल कर कम हो गया था। दो जून के खाने, पूरे कपड़े पहने बच्चे और बीबी के हंसते चेहरों की आस में झुमकी की लटकती गर्दन की छवि धूमिल हो गयी थी। उसने ऊपर हाथ उठा कर झुमकी को याद करके उसके प्रति पिता होने के कर्तव्य मुक्ति पायी। गुनिया का दिल एक बार बेटी के विछोह सेे कचोट गया पर शेष बच्चों के खिलखिलाते चेहरे उस पर मलहम लगा गये।

दोनो घर की ओर चल दिये उनके कदमों में तेजी थी हासन के हाथ अपनी अंटी को कस कर थामें थे। इतनी बड़ी राशि तो उसने स्वप्न में भी एक साथ नही देखी थी।

उधर शाहिदा बेगम को जैसे ही इस दुर्घटना के बारे में ज्ञात हुआ अल्पसंख्यकों के प्रति कर्तव्य उछाले मारने लगा और वह अपने सभी महत्वपूर्ण कार्य छोड़ कर थाने की ओर चल पड़ीं। एक अल्पसंख्यक और वो भी अबला स्त्री के प्रति अन्याय की बात सुन कर वो आपे से बाहर हो गयीं। वहाँ पहुच कर उन्होने पाया कि विकासदेव हासन और गुनिया को घेरे हैं। अब वोे इसी प्रतीक्षा में थीं कि विकासदेव हटे तो वो हासन और गुनिया से बात करें। हासन और गुनिया को वहाँ से जाते देख कर वह चौकी, उन्होने तुरंत अपने कार्यकर्ता को भेज कर हासन को रोका। उनके गुर्गे ने हासन से पूछा 'कहाँ जा रहे हो?'

हासन को उनका इस प्रकार रोकना अच्छा न लगा, उसके हाथ अपनी अंटी पर कस गये उसे भय था कहीं शाहिदा बेगम उस धन को लौटाने को न कह दें।

उसने सप्रयास उपेक्षा के भाव से कहा 'अपने घर जा रहेै हैं अउर का?'

'तो क्या अपनी बेटी के अपराधियों को ऐसे ही जाने दोगे?'

'हमरी बिटीवा थी का पता कइसे मरी, हमका रोटी कय जुगाड़ से फुरसत नाही कि हम ई सब झमेला पाली।'

शाहिदा बेगम उसके इस रवैये से बिफर गयी उन्हे केस अपने हाथ से फिसलता सा लगा। उन्होने शांति से काम लेने में ही भलाई समझी उन्होने कहा 'देखेा हम तुम्हारे अपने हैें किसी से डरने की ज़रूरत नही है हम तुम्हारा नही सोचेंगे तो कौन सोचेगा

'पर हम अइसन दिन रात केर रोज रोज के पुलिस कचहरी से बहुत हैरान परेसान हैं अब हमरा पीछा छोड़ देवौ साहिब' हासन उनसे पीछा छुड़ाना चाह रहा था। शाहिदा बेगम ने कहा 'अरे घर तो जाओगे ही, तुम्हे कौन रोक रहा है पर हम तुम्हे न्याय दिलवा कर रहेंगे।'

'अरे साहिब हमरे घर की रोजी रोटी लावै वाली चली गयी हमका उकर फिकर है, ई नयाय वयाय तुम पढ़ै लिखन का झमेला है, हमैें इतनी फुर्सत नाही। 

'अरे तो हम भी तो उसी का इंतजाम करवा रहे हैं' शाहिदा बेगम ने चारा डाला।

'मतबल?' हासन ठिठका तो क्या अभी कुछ और मिल सकता है उसने मन ही मन सोचा।

शाहिदा बेगम ने कहा 'तुम बस जो हम कहें तुम वो करो।' उन्होने वहीं चादर बिछा कर उसे बैठा दिया। अपने साथियों के साथ वो नारे लगाने लगीं 'हमें न्याय चाहिये..........' इन  सब के मध्य हासन अपने शोक को भूल कर विस्फरित नेत्रों से इस अफरातफरी को देख रहा था। धीरे धीरे उसे अनुभव हो रहा था कि उसकी पुत्री की आत्महत्या की घटना कोई छोटी मोटी घटना नही है जैसी कि उसके गांव में होती थी वहाँ तो उनकी जठराग्नि उन्हे  इतनी मोहलत भी नही देती थी कि वो दो दिन अपने किसी जाने वाले का शोक मना सकें। वो तो अगले दिन ही शेष जीवित लोगों के जीवन को बचाने की चिंता में पड़ जाते थे। पर यहाँ का दृष्य ही कुछ और था उसकी उसी बेटी जिससे कोई सीधे मुँह बात भी नही करता था उसी के लिये बड़े बड़े लोग अन्याय के विरूद्ध आवाज़ उठा रहे थे। संभवतः शाहिदा बेगम के साथी मीडिया को सूचना दे चुके थे उनके नारे लगाते ही कैमरे क्लिक होने लगे संवाददाता उनसे प्रश्न पूछने लगे। उन्होने घोषणा कर दी कि और जब तक झुमकी को न्याय नही मिलता दोषी को दंड नही मिलता वह वहाँ से नही हटेंगीं। सबके आकर्षण की धुरी अब शाहिदा बेगम पर केन्द्रित हो गयी थी, कैमरे और रिपोर्टरों ने शाहिदा बेगम की ओर रूख कर लिया। दो चार दिन शाहिदा बेगम समाचार पत्रों की सुर्खिंयो में छायी रहीं।

धरने के बीच में एक व्यक्ति ने उनके कान में कुछ कहा। रिपोर्टर उनसे प्रश्न पूछते ही रह गये और वह अचानक वहाँ से उठ कर कार में चली गयी। 

उन्होने न्याय की आस में सड़क पर जमकर बैठे हासन को समझाया 'अब जो हो गया वो हो गया मैने तुम्हारे परिवार के एक सदस्य के लिये नौकरी का इंतजाम कर दिया है। बाकी बच्चों को भविष्य सुधारो' हासन का सिर अहसान से झुक गया उसने शाहिदा बेगम को दिल से दुआ दी और दोनो हाथ ऊपर उठा कर अपनी बेटी को याद किया, हासन को लगने लगा कि झुमकी के रूप में उसके घर किसी पाक रूह ने जन्म लिया था जो जाते जाते भी उसके दुख दरिद्र दूर कर गई।

पर्दे के पीछे क्या खेल हुआ किसी को नही पता चल पाया बस आगे का परिदृश्य अवश्य बदल चुका था। श्री राणा और शाहिदा बेगम में कब और कहाँ एक कश्ती में सवार हो गये कोई जान न पाया। शाहिदा बेगम की पार्टी के अगले इलेक्शन के फंड की राशि में पर्याप्त बढ़ोतरी हो गयी थी। अपनी इस अचानक आयी लोकप्रियता और पार्टी के फंड में बढ़ोत्तरी ने अचानक ही पार्टी में उनके कद को बढ़ा दिया था और इस बढ़े हुये कद ने अगले चुनाव में उनके सांसद के टिकट को पक्का कर दिया था।

केस वापस हो गया था, मि. राणा और श्रीमती राणा एक बड़ी मुसीबत से बाहर आये थे इसी उपलक्ष्य में उन्होने एक शानदार पार्टी दी, जिसमें शाहिदा बेगम और विकास देव  विशिष्ट अतिथि थे। विकास देव को वांछित धन मिल गया शाहिदा बेगम को प्रसिद्धि, जिसने उन्हे सांसद का टिकट दिला ही दिया और हासन को जीवन यापन का सुदृढ़ आधार। अपनी- अपनी उपलिब्धियों की चकाचैंध में किसी को यह जानने का अवकाश कहाँ था कि झुमकी ने जान क्यों दी थी।


Rate this content
Log in

More hindi story from Alka Pramod

Similar hindi story from Inspirational