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खूनी दरिंदा भाग 5

खूनी दरिंदा भाग 5

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अगले दिन वहाँ हड़कंप मच गया। कुत्ते की अधखाई लाश मिलने पर वहाँ किसी हिंसक पशु के विद्यमान होने की पुष्टि हो गई। सेना ने पूरे इलाके को खंगालना शुरू कर दिया। शाम होते ही पूरे इलाके में मरघट का सन्नाटा छा गया। सभी लोग सावधान हो गए और अपने घरों में दुबक कर बैठ गए। सेना ने हिंसक पशु के पकड़े जाने तक सभी को अँधेरे में निकलने से मना कर दिया। वैज्ञानिक दल के मुखिया होने के नाते खन्ना ने भी सभी बैठकों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और अपने सुझाव पेश किये। फिर वे अपनी प्रयोगशाला में व्यस्त हो गए। धीरे-धीरे शाम गहरा गई। सारे वैज्ञानिक खन्ना सर से छुट्टी लेकर विदा हो गए, केवल खन्ना और उनका सहायक रविकांत प्रयोगशाला में रह गए। रविकांत भी जाना चाहता था पर खन्ना ने उसे रुकने को कहा क्योंकि आज खन्ना एक प्रयोग के परिणाम पर पहुँचने वाले थे। रवि बहुत जहीन लड़का था बहुत कम समय में उसने खन्ना सर के मुख्य सहायक होने का गौरव हासिल कर लिया था और इस बात पर उसे गर्व भी था। खन्ना की अपनी कोई संतान नहीं थी और वे रवि को पुत्रवत् ही मानते थे। शाम गहराने के पहले खन्ना के दिमाग में केवल वैज्ञानिक उधेड़बुन ही चल रही थी पर जैसे जैसे अँधेरा बढ़ा उनके शरीर में रसायन ने उथल-पुथल मचानी शुरू कर दी। उनका मन प्रयोग से उचटने लगा और उनकी जीभ मानो लपलपाने लगी। एक तरफ उनका दिमाग उन्हें बार-बार चेतावनी दे रहा था कि खुद को संभालो पर दूसरी तरफ शैतानियत उनपर हावी होती जा रही थी। 

पर खन्ना बहुत पढ़े-लिखे और बुद्धिमान व्यक्ति थे। उन्होंने खुद पर किसी तरह काबू किया और रवि से प्रयोग बंद करने को कहा। रवि आश्चर्यचकित हो उठा क्यों कि वे मंजिल के बहुत करीब थे और अभी इसे बंद करने का मतलब था कल फिर ए बी सी डी से आरम्भ करना होगा। उसने प्रतिवाद के लिए मुंह खोला तो खन्ना का चेहरा देखकर भय से जड़ हो गया। खन्ना का चेहरा रक्ताभ हो चुका था मानो पूरे शरीर का खून चेहरे पर ही आकर जमा हो चुका हो और वे किसी चीज को लेकर भारी पशोपेश में हों। उन्होंने चीख कर रवि को प्रयोग बंद करने को कहा और उठ कर जाने लगे। घबराये हुए रविकांत ने फौरन स्पिरिट लैंप बंद किया और अपनी फ़ाइल उठाई कि बगल में पड़े पेपर कटर से उसकी उंगली बुरी तरह कट गई और वो चीख पड़ा। इस बीच खन्ना दरवाजे तक पहुँच चुके थे। वे चीख सुनकर बिजली की तेजी से मुड़े और रविकांत अपनी कटी हुई उंगली मुंह तक ले जा पाता उससे पहले ही झपट कर उस तक पहुँच गए और उसकी उंगली से बहता रक्त चूसने लगे। उनकी अप्रत्याशित तेजी देखकर रवि चकित रह गया। अभी तक रवि का ध्यान अपनी उंगली पर ही था कि अचानक उसने खन्ना के चेहरे पर निगाह डाली और उनकी आँखें देखकर वह भय से जड़ हो गया। वे आँखें किसी इंसान की नहीं लग रही थीं रवि को लगा मानो कोई हैवान उसका रक्त चूस रहा है। उसने झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया और देखा कि खन्ना के चूसने की वजह से रक्त और तेजी से बहने लगा था। 

अभी खन्ना का दिमाग पूरी तरह बेकाबू नहीं हुआ था तो उन्होंने रवि को जाने को कहा। रवि झपट कर प्रयोगशाला के बाहर निकला और तेजी से अपने घर की ओर बढ़ गया। खन्ना भी दरवाजे पर आये और उसकी पीठ पर आँख गड़ाये उसे देखते रहे फिर जब वह झाड़ियों की ओट में गुम हो गया तो खन्ना भी बला की तेजी से उसी ओर झपट पड़े। वातावरण में अँधेरा छा चुका था। उस अँधेरे में खन्ना की आँखें किसी जानवर की तरह चमक रही थी मानो दो जलती हुई चिंगारियां हों। 

खन्ना ने काफी लंबा फासला बहुत जल्दी तय कर लिया। अब वे रवि के बहुत नजदीक थे। रवि एक हाथ से अपनी कटी हुई उंगली पकड़े तेजी से बढ़ा जा रहा था कि खन्ना बेआवाज उसके पीछे पहुँच गए। उनका दिमाग अब नशे की हालत में था। रसायन ने उनपर भयानक असर दिखाना शुरू किया। खन्ना ने अपना हाथ बढ़ाया और रवि के कंधे को दबोच लिया।

 

फिर क्या हुआ?

क्या खन्ना ने रविकांत को भी चीर फाड़ कर खा लिया?

क्या वे पुत्रवत् शिष्य को खा सके?

पढ़िए भाग 6...

 


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