उल्टे पन्ने
उल्टे पन्ने
लगता है जन्नत की सैर कर ली ।
खेलते खेलते बच्चे एक दूसरे के साथ
ठंडी हवाएं, हरे भरे पेड़, फुलो की खुशबू और मासूम बच्चों को खेलते देख , दिल खुश हो जाता है हाथ पकड़ कर दौड रहे हैं। वो कभी गिर जाते है छोटी बच्ची गिर गई मगर भाई का हाथ नहीं छोड़ा और उसके कारण वो भी गिर गया उठी तो भाई ने कहा ये पगली है .पागल है। हम इसके साथ नहीं खेलेंगे सुनकर मैं चोक सी गई"पगली" ये शब्द मुझे अदंर तक हिला देता था, कितने साल लगे खुद को तलाशने में, आज सब ठीक है मगर वो बातें वो वेदना याद आती हैं। जितना भूलने की कोशिश करो याद तो आती है, मगर आज वो पगली शब्द सुनते ही अपने अतीत में पहूंच जाती हूँ मुझे पगली साबित करने के लिए लोगों ने क्या नहीं किया आखिर मुझे पागल करार देकर खुद बुद्धिजीवी बन बैठे।
इंसान सोने के पिंजरे में ज्यादा दिन खुश नहीं रह सकता पक्षियोंकी तरह हरकोई आजादी चाहता है ।मगर घर के माहौल बडो़ के कड़क स्वभाव कि वजह से मैंने कभी कोई काम अपनी मर्जी से नहीं किया मैं क्या मेरे घर के किसी सदस्य को इतनी आजादी कहा थी इसलिए मैं डिप्रेशन का शिकार हो गई मैं शहर की थी, मगर नियम कायदे कानून इतने कि किसी जेल में हूँ कभी किसी से खुलकर बात नहीं की, कभी अपना निणर्य खुद नहीं लिया हर वक्त घर के बडे कहते लडकियां कहीं अकेले नहीं जाए किसी से दोस्ती नहीं की, कभी अपनी मजी कपडे तक नहीं पहने, जोर जोर के मत हसो न जाने कितनी बाते मुझे हर वक्त की रोक टोक ने चिडचिडा बना दिया मैं बहुत गुस्सा करने लगी मुझसे हर वक्त की रोक टोक पसंद नहीं थी। पता नहीं पहले की महिलाओं को इतनी सहनशक्ति कहा से आती थी।
मुझे बहुत ज्यादा पढ़ने भी नहीं दिया गया शुक्र है, दादा ने पढ़ने तो दिया नहीं तो वह केवल महिलाओं को एक कामवाली की नजर से देखते हैं उनका काम घर का खाना बनाना और बच्चे संभालने तक सीमित है । उनकी इस तरह की सोच मुझे ही नहीं बाकी को भी दुखी करती थी। मगर मैंने विरोध किया .पता नहीं , कितने सालों तक मन में जमा हो गया एक दिन ज्वालामुखी बनकर निकला सब हैरान थे मेरे बदलते नेचर से इसलिए मेरी जल्दी सगाई कर दी गई मेरे स्वभाव में कुछ बदलाव आएं कुछ महिनों तक सब ठीक रहा मगर शादी के बाद लगा मैं एक जेल से सेंट्रल जेल पहुंच गई इतना बड़ा परिवार अरे.! परिवार मत कहो जिला ही घोषित कर देना चाहिए था सबके 6-7 बच्चे ऐसे करके न जाने कितना बड़ा परिवार. कभी शांति महसूस ही नहीं कि आए दिन किसी न किसी का झगड़ा मनमुटाव चलता रहता
मेरी नई शादी मगर ऐसा माहौल. मैं और चिड़चिड़ी सी हो गई पता नहीं जीवन में सुख क्या होता है महिलाओं के लिए ? एक मजदूर की तरह सारा दिन काम ना खाने का नियम ना घूमने की आजादी ऐसी नौबत आ गई कि मुझे दवाइयों का सहारा लेना पड़ा लोग जब भी मिलते हैं या कोई घर में मिलने आता कोई मायके से आए सब दबी जुबा में कहते" पागल" है दवाई चल रही है । घरवाले मुझे जानबूझकर ज्यादा दवाई देते हैं जिसके कारण मुझे नींद ज्यादा आती और हर किसी को कहते सारा दिन सोती है। मेरा बच्चा कब उठता कब रोता मुझे भी नहीं मालूम पड़ा दवाइयों का असर ज्यादा था जिसकी वजह से नींद आने लगी मेरे बाल सफेद हो गए मेरा चेहरा मुरझा गया मेरे अंदर बहुत कमजोरी आ गई सच मैं .मेरे घर वालों ने मुझे पागल ही बना दिया पति ने कभी वह प्यार और हिम्मत नहीं दिखाई जो उसका फर्ज था और सास ससुर ने मिलकर ना जाने कितनी बैठके रख दी मुझसे छुटकारा पाने के लिए आखिर वह दिन आ ही गया जब मैं ससुराल छोड़कर माइके आ गई वहां कोई अपना नहीं था यहां कोई दिल का मैल नहीं था । कुछ साल तक सब ठीक रहा सब मुझे हिम्मत, प्यार देते रहे मगर मेरे अंदर का अकेलापन कोई दूर नहीं कर सकता था मैंने अपने आप को बिजी रखने के लिए टीचिंग जॉब किया पूरा टाइम बिजी रही । ज्यादा कमाई भी नहीं होती थी मैंने फिर बुटीक खोला मगर मुझे इतनी सफलता नहीं मिली जिसकी वजह से मुझे उसे भी छोड़कर किसी और काम में लगना पड़ा न जाने जिंदगी में कितनी बार टूटी कई बार तो लगता था मर ही जाऊं, मुझे अपने बच्चे के लिए जीना पड़ा।
मेरी दो भाभियां और उनका अपना भी परिवार मैं कभी नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से भाभी और भाई के बीच अनबन हो मैं हमेशा अपना काम खुद करती थी मगर फिर भी बच्चों की वजह से कभी ना कभी कुछ बातें हो जाती थी । और कई बार तो मैं गलत होती थी तो भी मां मेरा ही पक्ष लेती मुझे पछतावा होता था मगर शब्दों का तीर तो निकल चुका होता था। न जाने कितनी रातें मैं रुई कितने बार बच्चे को बाप की कमी महसूस होती थी और ना जाने मेरे परिवार ने मेरी मां ने मेरे भाई ने मेरी वजह से कितनी बातें सुनी इसलिए मैंने ना चाहते हुए भी अपने बेटे को हॉस्टल में डाल दिया
आज वो वहां बहुत खुश है मगर रिश्तो की कमी तो हमेशा महसूस होती है। कभी वो आता है तो, कभी मैं जाती हूं ।अब वह मुझे समझ आने लगा है।
मेरा अकेलापन शायद मेरे साथी है, मैं घर में साथ हूं मगर ऊपर अकेले रहती हूं मेरे पास मेरा ईश्वर है मैं कई सेवा संस्थाओं से जुड़े सच ईश्वर से बड़ा कोई साथ और पास में हो ही नहीं सकता वक्त के साथ मेरा स्वभाव बदला है मैंने दुनियादारी सीख ली मैं शांत हूं मैंने हर रिश्ते को अपनाया है ।कुछ दिल से कुछ दिमाग से मन में गहरी शांति है आज भी हर दिन एक दुविधा मेरे सामने आती है मगर मैं सहज ही स्वीकार करने लगी हूं मैं अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह निभा रही हूँ खुशी से, किसी पर बोझ नहीं हूं। हां मैं "पागल "नहीं हूं मैं सच कह रही हूं । हा ये सच है, कि अब मैंने स्व को गला कर उसको पा लिया है,। उसके लिए तो पागल कहलाना भाग्य की बात है।
बस चार पन्नों में सिमट गई
कहानी
यही मेरी जिंदगानी...!