इंतज़ारे खुशी
इंतज़ारे खुशी
आज प्यार के अर्थ का अनर्थ हो चुका है ऐसा इसलिए हो रहा है कि हम अपनी सभय्ता भूलते जा रहे हैं और पूर्वी सभय्ता को अपनाते जा रहे हैं। आज हमारे देश के लोगों के पास अपनी सभय्ता और संस्कारों पर तंज़ कसने का बहुत वक़्त है पर उसको सँभालने का वक़्त नहीं है। ये सच है की प्यार का अहसास क्या होता है, उनका इंतज़ार करना भी लोग भूल गए हैं। जिस तरह मशीनों पर भागकर हम जल्दी से जल्दी आगे बढ़ना चाह रहे है वैसे की प्यार को हमने मशीन की तरह, कभी भी बदल देने वाला पुर्जा बना डाला है। आज प्यार को सिर्फ सम्भोग के तौर पर देखा जाता है। आज किसी में ना ठहराव है न ही किसी के प्रति संवेदना पर आज से एक दशक पहले कुछ ऐसे लोग दिख जाते थे जो शायद इन सब चीज़ों से दूर थे चलो आओ देखे ज़रा क्या आज कल ऐसे प्यार करने वाले लोग मिलते हैं क्या ?
नीलम बड़ी खामोशी से किसी सोच विचार में अपने रूम की खड़की से बाहर होती हल्की बारिश की फुहार देखते हुए गर्म गर्म चाय पी रही थी की उसके फ़ोन ने उसकी शांति भंग कर दी। नीलम ने फ़ोन देखा और हल्की मुस्कुराहट के साथ फ़ोन उठा लिया।
नीलम : अब इतने दिनों बाद मेरी याद कैसे आ गई तुम्हें ! और तुम्हें कैसे पता लगा की मैं तुम्हारे शहर में हूँ।
नीलम एक दिन पहले ही दिल्ली आई थी अपने मम्मी पापा से मिलने।
नीरज : ये जो बरसात हो रही है ना उसी ने मुझे बताया की तुम दिल्ली आ गई हो। और रही तुम्हारी याद तो वो तो हर वक़्त मेरे साथ ही रहती है।
नीलम : अभी तक वैसे ही जवाब देते हो। शादी नहीं हुई मतलब अभी तक।
नीरज : तुमने अभी तक शादी नहीं की क्या ?
नीरज को चिढ़ाने के लिए कुछ अलग अंदाज़ में बोलती है।
नीलम : नहीं, मैं तुम्हारे बाद ही शादी करूँगी, तुमसे अच्छा पार्टनर लेकर आऊँगी।
नीरज : मुझसे अच्छा मतलब। अभी तक मेरे ही इंतज़ार में हो।
नीलम : अरे नहीं, मतलब.....
नीरज ने नीलम की बात काटते हुए कहा-
नीरज : चलो जाने दो सब, मैंने सोचा दिल्ली आई हुई हो तो मिल ले। बात बस इतनी सी है।
नीलम : हाँ, तुम्हारे लिए तो बात इतनी सी है
नीरज : मैं कल तुमसे मिलना चाहता हूँ या परसो या फिर जब तुम चाहो।
नीलम : ओके, मैं तुमसे कल मिलती हूँ अब ये बताओ तुम्हें ये कैसे पता लगा की मैं दिल्ली आई हूँ।
नीरज हँसने लगा और फिर बोला-
नीरज : अच्छा अगर में बता दूँ तो उससे क्या होगा।
नीलम : यार बता दो न, मैंने मम्मी-पापा को भी नहीं बताया था मैं आ रही हूँ, और वैसे भी मैं तुमसे मिले बिना जाती तो नहीं।
नीरज ने बड़ी ही सहजता से कहा-
नीरज : अब इतना उछलने की जरूरत नहीं है ऐसी बारिश में चाय पीना मुझे भी पसंद है।
नीलम भाग कर दुबारा खिड़की पर गई और इधर-उधर देखा। थोड़ी दूर पर एक पेड़ के निचे खड़ा नीरज अपना हाथ हिला रहा था। नीलम की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। नीरज को ऐसे बारिश में खड़ा देख कर वो बस मुस्कुराती रही हँसती रही। उधर नीरज की भी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था न अपना ख्याल। फ़ोन को हाथ में लिए वो दूर से ही हाथ हिला रहा था। नीलम ने इशारा किया की बात करो।
नीलम : मतलब अभी तक मेरे घर के चक्कर लगते रहते हो तुम।
नीरज : अब तुम ना सही तुम्हारी यादें तो यहीं से है।
नीलम के जाने से पहले भी नीरज ऐसे ही उसके घर के चक्कर लगाया करता था और नीलम को देखकर ही जाता था।
नीलम : मैं कल तुमसे जरूर मिलूँगी। अब तुम घर जाओ कहीं ज्यादा भीग कर बीमार पड़ गए तो कल नहीं मिल पाओगे।
नीरज : जब तक तुम सामने हो इस बारिश से मैं बीमार नहीं पडने वाला।
कुछ देर तक जाने को कहा। नीरज ने भी हाथ हिलाया और अलविदा कहकर निकल गया। दोनों को कल मिलना था.......
क्रमशः
आगे.......2