बोतल में जिस्म
बोतल में जिस्म
शगुफ्ता, शालिनी,या मालती ,उफ्फ ये, एक चेहरे के इतने मुखौटे है ? या एक मुखौटे में कितने चेहरे ..? हर पन्ने पर एक नया संस्मरण जो अंगूर के गुच्छे के माफिक आपस में उलझा हुआ था। सुलझाने की सारी प्रक्रिया निरर्थक।
तभी रामदीन शगुफ्ता या शालिनी या जो भी हो..उसे लेकर आता है...हाँ तो क्या नाम है तुम्हारा? और तुम इस धंधे में कैसे और क्यों?
फ़क्क गोरी लम्बी रूप लावण्य की मालकिन को देख एक बार तो साइमन ठहर सी गई, हाँ तो बोलो...लगभग झुंझलाते हुए पूछा, वो बोली "वो क्या है न मैडमजी जैसे कोयले की कालिख चांदनी को श्यामल रंग में भिगो देती है"। कुछ ऐसा ही हुआ हमारे साथ भी, मेरी माँ ने एक नाकामयाब कोशिश कि अपने बिन ब्याहे खसम के यहां हमे छोड़ कर खुद तो विरक्ति पा गई और हमारी हैसियत एक प्लास्टिक के गुलदस्ते सी कर गई जो बैठक की सुंदरता तो बढ़ा सकता था पर अपनत्व के लिए ता उम्र तरसता है।
जब सरकार ने कोयले की अवैध खदानों पर पाबंदी लगा दी तो अपने पेट और शरीर की भूख को शांत करने का अच्छा इलाज निकाला था उस आदम शेर ने। शराब के साथ हमको पुरसवाता था। लगभग हंसते हुए ठहाका लगाते हुए बोली,"शराब के साथ शबाब फ़्री"
वो निरंतर बोले जा रही थी और साइमन खुद को असहाय महसूस कर रही थी। लगभग बीस वर्षों से वर्ल्ड एनजीओ के कार्यकाल में ऐसी घटना कभी नहीं सुनी थी..थोड़ा खुद को संभालते हुए पूछा...तुम्हें पता है..ये काम गैर कानूनी है। तुम्हें ऐसा करते कभी कुछ महसूस नहीं हुआ क्या ? महसूस.."मैडमजी प्यार मोहब्बत अगर ऐसा कुछ होता..तो ही तो, किसिका स्पर्श महसूस होता।
फिर तो वो बहती नदी सी उफान भरने लगी..मैडमजी, उजड़ बंजर भूमि को ओस का स्पर्श आलिंगन सा लगता है..पर यहां तो कोई हमारी अस्मत से पूरी तरह खेल पूरी शख्सियत को तेजाब में भी भिगो देता तब भी हर रात एक नए जुगनू कि तलाश में निकल जाते थे। ये एक बहते पानी सी प्रक्रिया थी, जो कहीं और कभी नहीं थमी।
अतीत के पन्ने पलटते उसकी आंखों के समुंदर में लहरों की एक झलक भी नहीं थी, कैसे बेधड़क बोले जा रही थी, वो क्या है ना मैडमजी ..मेरी मां बब्बर शेर के आंगन में अपनी हिरणी छोड़ गई थी और न जाने ऐसी कितनी ही हिरनियाँ कितने जंगली जानवरों के खूंटे से बंधी है हमारे गांव में। साइमन ने झल्ला कर कहा, क्या मतलब कहना क्या चाहती हो तुम?
सुनो मैडमजी " दस साल से या यूं समझो जबसे कुछ समझ आया शायद तबसे, शराब के साथ खुद को परोसते आए है हम, वरना ग्राहकों को देह की कमी थोड़े ही थी।"
किस किस को सुधार गृह में बंदी बनाओगी मैडमजी हमारा तो पूरा शहर ही कोयले की खान सा काला है।
हम अच्छा बुरा कुछ समझ पाते उससे पहले पांचवीं जमात के बाद तो इस धंधे में आ गए। शराब और शबाब के इस खेल में शबाब एक मांस के लोथड़े से ज्यादा कभी कुछ था ही नहीं ,जानवर कैसे खुले रास्तों में शौच करने में संकोच नहीं करते बस कुछ ऐसा ही। आप बताओ मैडमजी "क्या हमारा जन्म ही हमारी ग़लती थी "?
और एक तेज आंधी सा चीरता हुआ ये प्रश्न साइमन के स्वर चेतना को अवचेतन कर गया। शगुफ्ता, पर ऐसी क्या मजबूरी थी.. कि शराब पहुंचाने तुम जाया करती थी और खुद को नुचवाकर भी आती भी..क्या कोई और रास्ता नहीं था, मैडम जी, पैसा ? गरीबी ? कभी खदान का मालिक रह चुका अपने उस धरातल से नीचे उतरे तब न ..शराब को वो नहीं पीता था मुई..वो ही उसके बचे कुचे ज़मीर को भी स्वाहा कर गई थी।
मैं मेरी मां के पेट में शराब की बोतल जैसे पली,
आज एक शराब की भट्टी मेरे पेट में भी जल रही है..।
तभी साइमन का एक कॉल स्थानीय महिला मंत्री को और मिनटों में अन्तर्यामी अख़बार, सितारा टीवी के सभी जर्नलिस्ट ,पत्रकार से बरामदा भर गया। पूरी आप बीती सुनने के बाद ये तय हुआ कि "ग्रामीण महिला सुधार " के अन्तर्गत सभी महिलाओ को सिलाई मशीन वितरण कर आत्मनिर्भर बनाया जाए एवम् महिला सुधार गृह में सिलाई सिखाने का प्रबन्ध भी किया जाए..
तभी कहीं से चीरती हुई आवाज़..
जब शराब में पैसा मिल रहा है तो सिलाई क्यों सीखें,
अरे साहब यहां कपड़े पहनने किसको हैं ढक्कन के साथ कपड़े भी तो खोलने हैं...
महिला मंत्री एवम् साइमन का एक साथ स्वर निकला...
सभी लड़कियों के लिए
उच्च शिक्षा का प्रबंध कर मानसिक तौर पे भी सुघड़ बनाया जाए ताकि भविष्य में वो किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार हो।
शायद काले बादल अपना रुख बदल रहे थे और सूरज अपने संपूर्ण तेज के साथ उदय होने को तत्पर था।