टोटका
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कानपुर के नेहरु नगर मोहल्ले में श्री गंगा धर शास्त्री (छोटे शास्त्री) जी का निवास व ज्योतिष कार्यालय है । आपने ज्योतिष का ज्ञान अपने पिता एवं गुरु बड़े शास्त्री जी से सीखा । बड़े शास्त्री जी के सारे यजमान परिवार विरासत में छोटे शास्त्री जी को मिले । यजमानों का भविष्य फल और उपाय तो अपने पिता / गुरु द्वारा दिए ज्ञान से बता देते । किन्तु कभी-कभी , पुराने मुहलगे यजमान बड़ी अजीबो-गरीब विकट चीजों का उपाय बताने के लिए जोर डालते , और फीस भी भरपूर मुहमांगी देने को तैयार रहते ।इस तरह की समस्याओं के निवारण के लिए आपने हमें अपना गुरु घंटाल मुक़र्रर कर रखा था और हमसे ही इसके हल पूछा करते थे, इमानदारी से फीस का आधा-आधा ।
एक दिन आप के यहाँ एक परिचित यजमान युवती आईं , जिसके शादी के चार साल बाद तक बच्चा नहीं हुआ था. उस युवती ने आप (छोटे शास्त्री जी) से निवेदन किया की ऐसा उपाय कीजिये की पड़ोसन के बच्चा न होए , उसके बार-बार कहने पर भी आपने स्पस्ट यह कह कर मना कर दिया की यह तो घोर पाप है । वह युवती भी पीछा नहीं छोड़ने वाली थी । आखिर में उसने कहा अच्छा कम से कम एक साल के लिए तो रोक दीजिये ।उसके मन में खोट था । उसने सोचा की एक साल बाद फिर कोई युक्ति लगाएगी या फिर तब तक उसके बच्चा हो जाएगा, जैसा की आपने अपने ज्योतिष ज्ञान से उस युवती को बताया था । एक साल के उपाय के लिए रुपया एक लाख एडवांस में देने को तैयार ।आप के लालच ने जोर मारा । उस युवती से कल आने को कहा । हमें मोबाइल लगाया । आने के लिए निवेदन किया । ऐसे ही तो हम आप के गुरु घंटाल नहीं बन गए थे । कुछ तो एक्स्ट्रा दिमाग भगवान् ने हमे दिया था । हमारा हिस्सा रुपया ५०,०००/- हमे मिलना था । कुछ सोचा , उपाय नहीं बताया , बल्कि अगले दिन प्रातः एक आधा किलो की शीशी लाकर दी, जिसमे सफ़ेद-सफ़ेद , कुछ सूखा-सूखा सा पाउडर था , हमने शास्त्री जी को बताया की उस युवती से कहना की इस शीशी का बहुत थोड़ा-सा पाउडर पड़ोसन को लगभग रोज किसी भी चीज़ में डाल कर या मिला कर एक साल तक खिलाती रहे । शास्त्री जी ने ऐसा ही किया । शाम को हमारे रुपया ५०,०००/- हमे भिजवा दिए । युवती ने लगभग १० माह दिशा निर्देश का पूर्ण पालन किया , जब तक शीशी में पाउडर खत्म नहीं हो गया ।एक साल में युवती के बच्चा हो गया और पड़ोसन को नहीं हुआ । कुछ समय बाद युवती आप के यहाँ सधन्यवाद मिठाई दे गई । आप ने हमे बुला भेजा । चाय और मीठे के बाद आपने पाउडर का राज पूछा । हमने बताया की हमारे दिमाग में यह ख़याल आया की चील जिन पेड़ो पर बैठती हैं , वह सब पेड़ बंजर हो जाते हैं , बस घर से ली एक शीशी , पहुँच गए शहर के बाहर वीराने में ऐसे पेड़ो के बीच , मुँह में कपड़े का मास्क लगाया , और हाथों में बाल काले करने वाले पतले दस्ताने पहने । जमीन , और पेड़ो से खुरच-खुरच कर चील की बीट भरी , नुस्खा तैयार । और आपने एक किलो मिठाई के साथ हमारे पैर छू कर हमें विदा किया ।
इस कहानी के विवेकशील पाठकगण कृपया इस तरह की कोशिश ना करें , ईश्वर ने दंड स्वरूप हमें एक साल तक हाथ की उँगलियों में काफी कष्ट दिया ।