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सार्थक जीवन

सार्थक जीवन

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दोनों हाथों को फैलाकर, बारिश की बूंदों को अभी हथेलियों में समेटना चाह ही रही थी कि कलाई की घड़ी पर नजर पड़ीं | मैं, रुआंसी होकर बारिश को देखने लगी | उफ़्फ़...ऑफिस जाने का समय हो गया | चाह रही थी इस क्षण का जी भर आनंद ले लूँ ! काश, ऐसा हो पाता! बड़े ओहदे पाकर किस तरह अपनी खुशियों की कुर्बानियाँ देनी पड़ती है , मैं अब अच्छी तरह समझने लगी थी । हाँ, अपने ऊपर कितना गरूर होता है , जब प्रोमोशन मिलती है...ऑफिसर से बड़े ऑफिसर, बड़े से फिर सीनियर ऑफिसर | सैलरी मोटी होती जाती है और खुशियाँ हमसे दू...र , गुमनामी का लबादा ओढ़े, कहीं शिथिल पड़ जाती है । दिल की ख्वाहिशें वक्त के साथ रेत की तरह मुठ्ठी से बह चुका होता है ! सारा दिन, फाइलों और लोगों के बीच माथा पच्ची ! थके-हारे आफिस से घरआकर सो जाओ, रोज यही तो होता है !


ट्रिंग.....मैंनें लपक कर मोबाइल उठाया | डीएम साहब का नम्बर देखते ही मेरे होश उड़ गये |


“हलो...|”

“गुड मोर्निंग |” सुनते ही सशंकित हो गई |


“ कमला बलान का पश्चिमी बाँध टूट जाने से कई पंचायतों में बाढ़ आ गई है | मैडम, आप सिविल एसडीओ हैं .. इसी वक्त वहाँ जाकर जायजा लीजिए , जानमाल की अधिक क्षति तो नहीं हुई है? ”


“ जी सर , आप चिंता न करें। अभी निकल रही हूँ | ” आखिर, सरकार मुझे इतनी मोटी सैलेरी जो दे रही है , मन को दिलासा देते , तुरंत मैं सदल-बल, बाढ़ वाले क्षतिग्रस्त क्षेत्र पहुँच गई | सरकारी गाड़ी को देखते ही बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र के पीड़ित लोगों की पथरायी आँखें एकाएक चमक उठी।


बहुत से लोग रोते बिलखते मुझे घेर कर चिल्लाये, "मैडम जी बचाइये । हमलोग बेघर हो गए , कल शाम में ही घर-द्वार में पानी घुस गया ..रात से सपरिवार यहीं शरण लिए हुए हैं.... माल- जाल का भी कुछ अता पता नहीं है।।जिंदा है , या दहा-भसिया गया ...? "

अपने सहयोगियों के साथ मैंने फौरन राहत-बचाव कार्य का बागडोर संभाला । समय पर वहाँ पहुँच जाने से एक भी जानमाल की क्षति नहीं हुई | अबतक बारिश रूक चुकी थी,आसमान साफ दिखने लगा था। वहाँ खड़े लोगों के चेहरे पर अप्रत्याशित ख़ुशी और संतोष देख, मैं भावविभोर हो गई ।


जीवन ,जो कल तक मुझे बोझ लग रहा था , आज अधिक सार्थक दिखने लगा ।अफसोस के घने कोहरे मन से अब छंट गये, मेरा आक्रांत मन मयूर बन थिरकने लगा ।




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