प्यासा पथिक
प्यासा पथिक
(बाल कहानी)
प्यासा पथिक
एक राही चला जा रहा था अपनी मंजिल की तरफ़ अचानक उसे लगा कि वह रास्ता भटक गया है।यह विचार दिमाग में आते ही उसने सही दिशा का अनुमान लगाना शुरू किया पर वह सही अनुमान लगा नहीं पाया। फ़िर भी वह अपनी मंजिल की तरफ़ बढ़ने के लिये प्रयासरत रहा।
चलते चलते उसके पांवों में छाले पड़ गये।गला प्यास से सूखने लगा।पर उसे कहीं पानी नहीं दिखायी दिया।बहुत देर तक भटकने के बाद उसे एक कुंआ नजर आया।पर तब तक उसकी हिम्मत पस्त हो चुकी थी।फ़िर भी वह गिरता पड़ता कुएं के पास तक पहुंच ही गया।पर ये क्या कुंआ तो एकदम सूखा पड़ा था। और उसमें जो थोड़ा बहुत पानी था भी वह उस तक पहुंच नहीं सकता था। अब वह बिल्कुल हताश होकर कुएं के कगार पर ही गिर पड़ा और बेहोश हो गया।उसके मुंह से बस दो शब्द निकले--"हे ईश्वर"--और बस।
उस पथिक की व्याकुलता उस सूखे कुएं से सही नहीं गयी।उसका मन चीत्कार कर उठा।उसने मन में सोचा --"मेरे होने का क्या फ़ायदा--जब मैं किसी के काम ही नहीं आ सकता।तो मैं रहूं या न रहूं इस बात से कोई फ़रक नहीं पड़ता।मेरे दर पार आकर कोई प्यासा ही वापस लौट जाए--या उसे प्राण त्यागना पड़े इससे बड़ा अभिशाप मेरे लिये और क्या होगा?"
उसका निश्छल मन जो हमेशा से दूसरों की भलाई के लिये तैयार रहता था। आज वो खुद इस कदर असहाय था कि दो बूँद पानी भी उस पथिक के मूँह में नहीं डाल सकता था।उसका मन आर्तनाद कर उठा और उसने आसमान की तरफ़ देख कर कहा---"हे--ईश्वर,मुझसे इस पथिक की दुर्दशा देखी नहीं जाती।मुझ तक आकर इसके प्राण निकलें---ये मुझसे बर्दाश्त नहीं होगा।या तो तू मुझे पूरा सुखा दे जिससे मैं अपनी आँखों के सामने मरता हुआ देख न सकूँ या फ़िर तू ही कुछ ऐसा चमत्कार कर दे जिससे इस पथिक में जीवन आ जाऐ।"
एक छोटे से कुऐं की यह निश्छल पुकार सुनकर भगवान इन्द्र का सिंहासन भी डोल उठा। और वो उसकी इस पुकार को अनसुना ना कर सके।फ़िर क्या था।कुऐं की पुकार रंग ले आयी।उसकी निस्वार्थ भावना से भगवान भी भला कैसे अछूते रहते।खूब ज़ोरदार बारिश हुयी।उन्होंने झमाझम बारिश करके उस पथिक की प्यास बुझाकर उसमें जीवन का संचार तो किया ही साथ ही कुऐं का पानी भी लहरा लहरा कर ऊपर तक आ गया।पथिक ने होश में आते ही ईश्वर को धन्यवाद तो दिया ही साथ ही उसने कुऐं जगत पर अपना मत्था टेका और आगे अपनी यात्रा पर बढ़ चला।
कुआँ यह देख कर खुश हुआ कि वह एक पाप का भागी बनने से बच गया। निस्सन्देह ईश्वर ने उसके सच्चे मन की पुकार सुनी और उस पथिक की मदद की।कुआँ बार बार ईश्वर के चमत्कार के प्रति नतमस्तक हुआ।
सच ही है,सच्चे दिल की पुकार कभी भी व्यर्थ नहीं होती और ईश्वर उस पुकार को ज़रूर सुनता है।
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पूनक श्रीवास्तव