"पापा के नाम ख़त"
"पापा के नाम ख़त"
प्यारे पापा,
अस्सालामु अलैयकुम। मैं ख़ैरियत से हूँ और आपकी ख़ैरियत ख़ुदावंद क़रीम से नेक मतलूब चाहता हूँ। दिगर अहवाल यह है कि आज मेरा जन्मदिन है। आज मैं पूरे तीस बरस का हो गया हूँ। पापा मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ। अपने बारे में आपको कुछ बताना चाहता हूँ। कोई शिकायत नही ना कोई शिकवा, बस इक बात है मेरे दिल की बात। सुना है कि लफ़्ज़ों में बङी ताकत होती है। चूँकि आज मेरी पैदाइश का दिन है, तो मैंने सोचा कि आज आपको अपने दिल की बात ख़त के ज़रिए बता दूं।
पापा आपको मेरी कितनी फ़िक्र रहती है ये मैं कभी समझ नही पाऊँगा। हर रोज शाम को आप फोन पर मुझसे बस हालचाल पूछकर अम्मी को फोन दे देते हो, पर कभी भी मुझसे मेरे बारे में नही पूछते हो? मेरा भी दिल करता है कि आपसे अपने मन की बातें करूं। अपनी कामयाबी नाकामी के बारे में आपसे सलाह मशविरा करूं। ईद के दिन जब ईदगाह में सब लोग गले मिलते है तब भी आप सिर्फ हाथ मिलाकर दूर हो जाते हो किसी अजनबी की तरह। क्यूँ कभी सीने से नही लगाते हो? क्यूँ कभी प्यार नही जताते हो? आख़िर मैं भी तो आपका सबसे छोटा बेटा हूँ। जब कभी घर आता हूँ तब भी आप बस कामकाज के बारे में ही पूछते रहते हो। क्यूँ कभी मुझसे मेरी पसंद नापसंद के बारे में नही पूछते हो? क्यूँ कभी मुझसे मेरी ज़िंदगी के बारे में नही जानते हो? मेरा भी दिल करता है आपको अपनी ख़ूबियों के बारे में बताऊँ।
ये शिकायतें नही है बस मेरी निगाहों में छुपे कुछ अनकहे अहसास है। पापा मैं कभी भी आपकी तरह नही बन सकता। आप बहुत नेकदिल और अच्छे इंसान है। ज़िंदगी में ठोकर लगी है इस वक्त मुझे आपकी सबसे ज्यादा ज़रूरत है। आप हर कदम मेरे साथ तो चलते पर कभी जताते नही कि मैं तेरे साथ हूँ बेटे। जैसे तैसे मैंने दर्द से उबरकर जीना सीख लिया है। उस दौर में ही मैंने टूटा फूटा लिखना शुरू किया था। आजकल अल्लाह के क़रम से अच्छा लिखने लगा हूँ। अम्मी और आपकी दुआओं ने मुझको हर कदम मुश्किलों से महफूज़ रखा है। लिखने से मुझको बेहद सुकून मिलता है। लिखने से मुझमें बेइंतहा जुनून पलता है। आपके कहे अनुसार मैंने कोई गलत आदत या बुरी संगत नही पाली है। जब कभी कुछ अच्छा लिखता हूँ तो वाह वाही मिलती है, मगर मेरी आँखों में बस एक ही सवाल उठता है कि वो दिन कब आयेगा जब आप मेरे लिए ताली बजायेंगे। मुझ पर फ़ख़्र करेंगे और प्यार से मुझको गले लगायेंगे।
पापा मैं नालायक नही हूँ, बस अपनी मर्ज़ी से जीना चाहता हूँ। अपने सपनो की उङान भरना चाहता हूँ। बस अपने दिल की सुनना चाहता हूँ। मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ नफ़रत नही। बस मुझे आपसे थोङा प्यार चाहिए और कुछ नही। वादा है ये मेरा आपसे कि कभी भी आपका दिल नही दुखाऊंगा। कोई ऐसा काम नहीं करूंगा जिससे आपको शर्मिंदगी महसूस हो। बस मुझे आपका मुझ पर थोङा भरोसा चाहिए और कुछ नहीं। ये सब गिले शिकवे और शिकायतें नही है बल्कि मेरे दिल में बचपन से छुपे हुए अनछुवे जज़्बात है। ये दर्द है मेरे सीने का जो आज निकल कर बाहर आया है काग़ज पर। जिसे सिर्फ आप ही महसूस कर सकते है। जिसे सिर्फ आप ही समझ सकते है। पापा अगर मेरी कोई बात आपको बुरी लगी हो तो मुझे नादान समझकर माफ़ कर देना। पापा मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ ।।
"सर्प ना कोई दंश हूँ मैं, तेरा ही तो अंश हूँ मैं
ज़ुदा ना कर मुझको यूँ, तेरा ही तो वंश हूँ मैं"
आपका इफ्फ़ी (इरफ़ान)