Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

राधे के कृष्ण

राधे के कृष्ण

2 mins
308


जैसे ही व्याधा का तीर कृष्ण को लगा, कृष्ण को समझने में देर न लगी कि आज मेरी आत्मा इस पिंजरे से आजाद हो रही है। जल्दी से मृत्यु मुझे गोद में ले ले, प्राण निकलते ही मैं राधामय हो जाऊँगा। कृष्ण, सामने खड़े मृत्य को उत्सव की रूप में देखने लगे। उन्हें राधा के विरह- वेदना की ज्वाला दाह-संस्कार की ज्वाला से आज अधिक पीड़ादायक महसूस हो रही थी।

हठात्, कृष्ण सोच में पड़ गए ! राधा को मेरी बांसुरी औऱ मोर मुकुट से बेहद प्यार था ! पर, उसे वो सब मैं कहाँ से लाकर दूंगा ? मैं तो बस आत्मस्वरूप में ही उसे मिलूंगा।

इसी बीच एक आवाज “कान्हाओकान्हा।” राधा की आवाज ! इस निर्जन वन में ? अधखुली आँखों से सामने राधा को खड़ा देखकर, कृष्ण हतप्रभ हो गए। करूण स्वर से वो बोले, “ अरी राधा तुम ?”

“हाँ तेरे कराहने की आवाज सुन, मैं यहाँ भागी चली आयी।”

“ पर, इस तरह सोलह श्रृंगार करके! उफफफ तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था ! मैं तुम्हारे पास ही आ रहा था बस, कुछ पल" कहते-कहते कृष्ण की आवाज लड़खडाने लगीआँखो से अविरल अश्रुधारा बहने लगा। “पता है मुझे, तुम सदेह मेरे पास नहीं आते ! इसलिए मैं सोलह श्रृंगार कर यहाँ चली आयी। कान्हा, मैं तुम्हें आलिंगन करना चाहती हूँ।”

इतना कहते हुए राधा, कान्हा के ललाट को चूमने लगी। यह पल, राधा को एक कल्प के समान लगने लगा। वो पल-पल को जीने लगी, मानो कायनात धरती पर उतर आयी हो। तेज गर्जन के साथ आकाश से पुष्प-वर्षा शुरू हो गई।

देखते, देखते दोनों का सम्पूर्ण शरीर श्वेत पुष्प की चादर से ढक गया। वर्षों से विरह-वेदना में तप रहे राधा-कृष्ण की समाधि को देखकर, पास खड़ा परम सत्य कहलाने वाला 'अहंकारी मौत 'आज अपने-आप को बौना समझ, नतमस्तक हो गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama