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फैसला

फैसला

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नववर्ष की पहली सुबह का आरम्भ हमेशा से देव-आराधना से करती चली आ रही निहारिका के लिए नये साल की ये सुबह विगत सभी सुबहों से भिन्न थी। अब उसे अपने लिये नहीं सिर्फ अपने "अपनों " के लिये ही दुआ माँगना था। हिम्मत जुटानी थी अपने कर्तव्यपथ पर अग्रसर होने की।

उसने पूजा की तैयारी करते हुये कमरे में झाँका। उसके उठते ही नन्हा सोनू, रिया से लिपट कर सो गया था। नींद में रिया भी नन्हे सोनू की तरह ही मासूम लग रही थी।

अन्दर तक भेद रही ठंडी हवा से बचने के लिए शाल को कस कर कंधे पर लपेट उसने पूजा की थाली हाथ में लिये मंदिर के रास्ते पर कदम रखा ही था कि आवाज़ आई, "निन्नी मेरी निन्नी" !

ऐसे तो उसे अबीर पुकारता था, चौंककर आवाज़ की दिशा में उसने पलट कर देखा- दाढ़ी -मूंछ के बीच छुपा चेहरा, पर उसकी तरफ ताकती आँखे वही, जानी-पहचानी। "मेरा दिल कहता था, तुम जिन्दा हो" कहती हुई निहारिका उससे जा लिपटी। बहते अश्कों की धारा थोड़ी थमी तो प्रश्न उठा “अब तक कहाँ थे ? वैधव्य का बाना पहनने को मजबूर हूँ मैं, पता है, हमारा बेटा 3 माह का हो गया।” "पता है,"-बिलख पड़ा अबीर, "अपनी संतान को पैदा होते देखने की चाह में ये सब हुआ।

मेरी छुट्टी निरस्त कर मुझे मेरे फौजी साथियों के साथ अत्यंत खतरनाक मिशन पर भेजा गया था। मैं वहाँ से भाग निकला। पर कुछ दूर जाकर अपनी गलती का अहसास होते ही वापस लौट रहा था कि बम के धमाकों की आवाज़ ने कदम ठिठका दिए। वहाँ पहुँचा तो टुकड़ों में बिखरे पड़े अपने साथियों को देख डर कर मैं छुप गया। बाद में शहीदों में अपना नाम देख हिम्मत हीं नहीं हुई सबके सामने आ सच बताने की। अब तक छुपता फिर रहा हूँ। मुझे पता था नये साल में तुम इस मंदिर में अवश्य जाओगी।"

नन्हे बेटे को देखने की चाह और रिया का विवाह तय होने की खबर ने मजबूर किया कि सबके सामने आऊँ “रिया का विवाह” ये शब्द सुन पति को जीवित देख पूजा की थाली से कुमकुम लेकर माँग भरने जा रही निहारिका की उंगलियाँ वहीं थम गईं। शहीद की बहन के लिये लड़के वालों ने खुद आगे बढ़कर यह रिश्ता माँगा था "रिया का भाई शहीद नहीं भगोड़ा है ? क्या नन्हा सोनू भी भगोड़े का बेटा कहलायेगा ?" अपनी सोच पर काबू पा उमड़ते आँसू पोंछती वो अबीर के कदमों में पूजा की थाली रख वही धम्म से बैठ गई। “आप वापस आ गये, मेरी पूजा सफल हुई, पर रिया और सोनू के भविष्य की खातिर ये वैधव्य का बाना ही अब मेरा जीवन है।”


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