Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Harish Sharma

Others

5.0  

Harish Sharma

Others

ईंटगाह

ईंटगाह

10 mins
15.1K


 

आदमी अपने आप में भी कब तक रह कर जिये। वह ख़ुद से भी बोर हो जाता है। बोरियत बड़ी गंभीर बीमारी है ये कई बार अवसाद के गहन अन्धकार में ले जाती है। कभी न कभी किसी न किसी पल में कोई तो ऐसी चाहत हो जो रंग बदल कर उसे जीने की ख़्वाहिश से सरोबार रखे।

 

शाम के 8:00 बज चुके हैं इसे रात का समय भी लिखा जा सकता था, पर मेरे लिऐ शाम ही थी। घर में बच्चों के होमवर्क के निपटारे की जल्दी। बस मोबाइल की घंटी बजने ही वाली थी। मोबाइल के संदेश बॉक्स में संदेश टपकने की ध्वनि। अविनाश के साथ पिछले एक महीने से यही सिलसिला हफ्ते में लगभग दो दिन के लिऐ निश्चित हो गया था। बच्चों के होमवर्क की सारी फॉरमैलिटी निपटाते हुऐ दीवार पर लगी घड़ी भी लगातार मेरा ध्यान खींच रही थी। क्या मुझे उसकी संगति करने की आदत पड़ रही थी या वो मेरी मजबूरी बन रहा था। मोबाइल पर नया संदेश आने की घंटी बजती है। मैं संदेश बॉक्स खोल कर संदेश पढ़ता हूँ। क्या कर रहे हैं जनाब? ......... अपना उत्तर देते हुऐ मुझे जरा सोचना पड़ता है। कई बार उसके घर जाने का मूड नहीं होता। सोचता हूँ कोई बहाना बना दूँ पर ना जाने क्यों, मैं अविनाश से झूठ नहीं कह पाता।

 

'कुछ नहीं वैसे ही ज़रा घर के कामकाज।' मैं मैसेज भेजता हूँ। ‘कुछ देर बाद फिर नए संदेश की ध्वनि आती है। मैं जानता हूँ कि क्या लिखा होगा और अपने इस पूर्वाभास की पुष्टि के लिऐ संदेश पढ़ता हूँ। 'आ जाओ फिर बैठते हैं कुछ देर।'

 

जब से रोमा, अविनाश की पत्नी, कैंसर के कारण चल बसी तब से वह पहले की तरह रिजर्व नहीं रहा। वह कुछ सामाजिक हो रहा है। पचास की उमर। बच्चे बाहर हॉस्टल में पढ़ते हैं और बालिग हो चुके हैं। वह पाँच बैडरूम वाले घर में एक पालतू जर्मन शेफर्ड कुत्ते के साथ रहता है। कुत्ते वफ़ादार होते हैं पर आदमी को वफ़ादारी से भी ज्यादा उस शख़्स की ज़रूरत होती है जो उसके दिल की बात सुन सके। वह अक्सर अपनी पत्नी रोमा को याद करता है। उस की तारीफ़ों के पुल बनाता है। वो उसके लिऐ एक आदर्श थी। घर की रौनक। जीवट और विजन से भरी पत्नी।

 

"एक प्राइवेट नौकरी में डेडिकेशन और गंभीरता जो रोमा में थी वो उसे हमेशा अप टू डेट रखती थी। गज़ब की प्रोफेशनल। क्लीयर टारगेट और फोकस के साथ काम करने वाली। शहर के बड़े बड़े कान्वेंट स्कूल उस का दम भरते थे।" अविनाश उसे बड़े गर्व से याद करते हुऐ बताता।

 

आज भी चाहे काम पर जाना हो या छुट्टी हो वह सूट-बूट में बुरी तरह तैयार मिलेगा। एक एजुकेशन कॉलेज में मनोविज्ञान का अध्यापक है अविनाश। अच्छी अंग्रेजी, रफ एंड टफ ज़िंदगी को जी कर बड़ा हुआ अविनाश। बचपन से ही एक रिजर्व्ड परिवार और कान्वेंट में पढ़ा लिखा।

 

"मुझे तो कई बार रोमा की लगन और उसके काम के प्रति जूनून को देखकर डर लगता। शायद उसने मुझे एक जेंटलमैन की तरह जीना सिखाया। अक्सर कहती कि देखना अविनाश एक दिन मैं तुम्हें मर्सिडीज या बीएमडब्ल्यू में बिठाऊँगी।" अविनाश कमरे में जल रहे सीऍफ़एल बल्ब की तरफ़ देख कर कहता था।

 

उसकी ये बातें सुनकर कितने ही दृश्य मेरे आगे बनते सँवरते। जैसे कोई महत्वाकांक्षी औरत जिसके सर पर ताज है वह अविनाश को संबोधित कर रही होती। पत्नी के जाने के बाद उसने अपना अकेलापन जाहिर तो नहीं किया पर एक आलीशान पाँच बेडरूम वाले घर में जब मुझे बुलाता था, तो उस घर में एक अजीब सा सूनापन और नीरवता महसूस होती। हारमोनियम पर जगजीत सिंह, मेहँदी हसन और ग़ुलाम अली की ग़ज़ल सुनाते उसकी आवाज़ में बड़ी कशिश होती। उसकी आवाज़ के पीछे छुपा दर्द और ग़ज़लों का चुनाव सब कुछ बयान कर देता।

 

'मिलकर जुदा हुऐ तो सोया...........

हम एक दूसरे की याद में रोया करेंगे हम।'

 

गाता हुआ जैसे वो मुझे भी उस दर्द को महसूस करवा देता जो उसके अकेलेपन ने बड़ी बेदर्दी से उसकी आँखों में लिख दिया था। मैं उसके गाने पर सर हिलाता वाह वाह करता तो मुस्कुरा देता। फिर बहर न टूटने देता। एक के बाद एक दर्द भरे गीत ग़ज़ल गाता। अपनी डायरी में कितने ही गीत और ग़ज़ल के बोल उसने लिख रखे थे। अपने व्हिस्की के गिलास से बीच बीच में पीते हुऐ वह तीन चार गीत सुना देता। मुझे इस बात का आभास होता कि उसका अकेलापन और दर्द जब बेक़ाबू हो जा होता है तो वह किसी के सामने बैठ कर रोना चाहता है।

 

इसीलिऐ वह मुझे बुला लेता और गाकर अपने दिल को आराम देता है। "तुम जानते हो दोस्त! मेरा यह पाँच कमरों का मकान जिसकी चाहत में लोग न जाने कितने कीमती पलों को खो देते हैं वह मेरे लिऐ आरामगाह नहीं, बल्कि ईंटगाह है। मै अक्सर खाना पकाने वाले को कहता हूँ कि तू अच्छा से अच्छा खाना पकाया कर। वह मुझे कहता है कि साहब किसके लिऐ। आप तो सुबह दो रोटी खा कर चले जाते हैं।

 

बच्चे तो केवल वीकेंड पर आते हैं। ......मैंने भी कह दिया ऐसा मत सोचा कर ......मेहमानों की आने की उम्मीद रखनी चाहिऐ। अरे अगर घर में लोग आ जाऐंगे तो ही रौनक रहेगी। वरना कौन आता है यहाँ। आने वालों के लिऐ बड़ा बेचैन रहता है ये घर।" अविनाश बोलते बोलते जैसे कहीं खो जाता। अभी पिछले हफ्ते उसने कुछ दोस्तों को घर में बुला लिया। मैं भी था देर रात तक महफ़िल जमीं। जाम के दौर चले। ग़ज़ल और शेर ओ शायरी का दौर चला। अविनाश ने अपने हाथों से खाने की तैयारी कर रखी थी। ख़ुद ही सर्व करता रहा। जैसे उसे कोई ख़ुशी मिलती हो........

 

"....... मेरा तो कई बार जी करता है एक छोटा सा ढाबा खोलूँ। मुझे सब बनाना आता है लोग तो दीवाने हो जाऐंगे मेरे खाने के। अपनी नौकरी तो बस मैं मजबूरी में कर रहा हूँ। माँ को बड़ा शौक था खिलाने पिलाने का। पापा 'ए' क्लास ऑफिसर थे। मेहमान कभी कभार घर आते। पार्टियों से ज्यादा इन्जॉय माँ ने हमेशा घर में आये मेहमानों की आव भगत से किया। मेरा बेटा मेरी ढाबा योजना को सुनकर कहता है 'पापा अब आप बावर्ची बनने के चक्कर में कहाँ पड़ोगे, तो मैंने कहा, अरे यार लोगों को ख़ुश करने से बड़ी नौकरी कोई नहीं। वेज नॉन-वेज सब में मैं कमाल का पकाता हूँ।" वो अपनी बनायी डिश सर्व करता और पूछता, "कैसी बनी है, ज़रा चख कर तो बताओ।"

 

अविनाश किचन में ही गुनगुनाता हुआ बताता, "नौकर तो शाम 7:00 बजे खाना पका कर लौट जाता है। कपड़े धोने और प्रेस करने का सारा काम शुरु से ही पेड था। रोमा कहती थी कि हम लोग प्रोफेशनल लोग हैं। खाना बनाने, कपड़े धोने, साफ़ सफ़ाई करने के लिऐ लोग मिल ही जाते हैं और जब पाँच हजार में सब काम निबट रहा हो, तो हम पचास हजार की नौकरी क्यों ना झंझट से दूर रहकर करें। मैं तो उस औरत के लाइफ स्टाइल का फैन था। बहुत मॉडर्न औरत थी वह। उसने सिखाया अपने शौक बड़े रखो। दिमाग अपने आप पैसा कमाने की तरक़ीबें बताता है।" अविनाश अपनी पत्नी के गुणगान करता हुआ कहता।

 

हारमोनियम बजाने मे वो माहिर है। एक एक सुर का पता है उसे। किसी भी गाने की धुन हो,मिनटों में बजा देता है। उसने बताया कि वह कॉलेज के दिनों में ग़ज़ल गाने का गोल्ड मेडल जीत चुका है। कॉलेज में अपने सीनियर और सहपाठियों के लिऐ दो-दो घंटे गाता रहता। फिर एम ए करते हुऐ रोमा मिल गई। प्यार हुआ, शादी की।

 

"मैंने उस औरत को शिद्दत से चाहा, प्यार किया और उसने मुझे हमेशा जीने के आलीशान तरीके बताऐ। दो बच्चे हुऐ। आज मेरे बच्चे मेरे दोस्त ज्यादा है। मुझे उन पर बड़ा गर्व है, मैं उनमें रोमा की अभिलाषाओं और तौर तरीकों को देखता हूँ। उन्हें जीने और फैसले लेने की खुली छूट दे कर। और जो बाते उन्हें ख़ुशी देती हो, उन्हें पूरी सकारात्मकता के साथ करने में इनकरेज करता हूँ।" अविनाश कल्पना में खोया सा कहता।

 

और आज जब अविनाश की पत्नी नहीं है तो वह घर जो अपने तक ही सीमित था, आस पड़ोस के साथ भी साल में कभी कभार बोलता मिलता था, आज वहाँ लोगों की महफ़िल की रौनक की खिलखिलाती आवाजों की बड़ी दरकार है।

 

अभी एक दिन पहले वो गाते हुऐ दो पैग से ज्यादा पी चुका था। अचानक रोने लगा। उसके दोनों बच्चे भी घर आऐ हुऐ थे। दोनों अपने अपने मोबाइल और लैपटॉप में मस्त। एक अलग कमरे में मेरे साथ बैठा वो गीत सुनाते सुनाते भावुक हो गया।

 

"जानते हो रोमा को अकेले अपनी दुनिया में रहना बड़ा अच्छा लगता था। मुझे भी अपने दूर रहते माँ बाप और भाई बहनों से ज्यादा मेल मिलाप नही रखने दिया। और देखो जैसी इच्छा हम करते हैं, वैसा ही हो जाता है। अपने अंतिम दिनों में जब वो बेड पर पड़ी कैंसर से लड़ते लड़ते हार गयी थी तो उसने ये माना कि उसने मेरे साथ ऐसा कर के बहुत गलत किया। मैंने बस उसे यही कहा कि देखो तुम नितांत अकेले अपने आप तक सीमित रहना चाहती थी। संबंधों को भी तुमने प्रोफेशनल बना कर रखा और आज उसी इच्छा का परिणाम है कि तुम्हें अकेलेपन की टीस महसूस हो रही है। इस मामले में मेरे घरवालों ने फिर भी रोमा की बीमारी का पता चलते ही हर प्रकार का सहयोग किया। शायद यही देखरेख उसे पश्चाताप हुआ हो। पर आज मेरे अकेलेपन का क्या?? इन बच्चों को देखो, कैसे यतीमों की तरह जी रहे हैं। रोमा के परिवार वाले बड़े स्वार्थी निकले। उन्हें कभी इन बच्चों की याद नहीं आई। पर एक बात की मुझे बड़ी तसल्ली है कि मेरे बच्चों के दिल में अपने दादा-दादी और चाचा के लिऐ ख़ूब प्यार है। साल में एक दो बार उन्हें मिल आते है तो खिल जाते है।"

 

रात घिरते ही हारमोनियम में दर्द भरे गीत ग़ज़लें तरन्नुम में गाता हुआ अविनाश जैसे चीख-चीख कर अपने अकेलेपन को मिटाने के लिऐ प्रयासरत हो। हाँ, उसने कुछ प्रयास तो कर ही लिऐ है। अब मुफ़्त में ही मनोविज्ञान की ट्यूशन करता है। कॉलेज जाने से पहले सुबह जल्दी उठकर और कालेज से आने के बाद भी। अकेला रहना तो जैसे उसकी फ़ितरत ही नही थी जैसे पत्नी के जाने के बाद उसकी कई दबी हुई इच्छाऐं सामने आ रही हों। कॉलेज से आता हुआ अपने पीछे-पीछे जैसे सात आठ छात्राओं का रेला लिऐ आ रहा हो। उसकी गाड़ी की आवाज के पीछे-पीछे ही कुछ स्कूटर आवाज़ मिलाते हुऐ उसके घर तक आ जाते हैं। पढ़ाने में तो वह माहिर है ही और मुस्कुराते चेहरे के साथ अपने विषय का जो साधारणीकरण छात्रों को करवाता है उसके सब कायल है। शाम के रात में बदलने तक छात्रों के साथ व्यस्त।

 

"सर, आप जब डिफेंस मकैनिस्म की थ्योरी सुनाते हैं तो सब कुछ कितना आसान लगता है। जैसे सारी थ्योरी हमारे अपने साथ जुड़ी हो। जीवन से उदाहरण लेकर कोई अनुभव करवाना आपसे सीखे। ऐसा लगने लगता है हम अपनी कमियों और गलतियों को पूरा करने के लिऐ कोई न कोई विकल्प तलाश कर ऐसा ही करते हैं।" छात्र कहते।

 

"आप लोग मुझे प्यार करते हैं न इसलिऐ ऐसा कहते हैं। मुझे तुम लोगों को पढ़ाकर संतुष्टि और ख़ुशी मिलती है। मैं मानता हूँ कि अगर मैं तुम लोगों के साथ ख़ुशी महसूस कर रहा हूँ तो मैं आप को भी अपना सर्वोत्तम दे रहा हूँ।" अविनाश कह कर मुस्कुरा देता।

 

चाहे वीकेंड हो या कोई छुट्टी हो उसकी ट्यूशन कभी बन्द नहीं होती। पैसे या फीस वो कभी माँगता नहीं पर छात्र अपने आप दे देते है कोई मजबूरी जाहिर करता है तो अविनाश मुस्कुरा कर कहता है "आते रहा करो, यही काफ़ी है।" कभी जी किया तो छात्रों की फरमाईश पर गीत सुना दिया।

उसके बच्चे कई बार किसी वीकेंड में नहीं आते तो कुछ चुनिंदा दोस्त तो हैं ही। ऐसा लगता है जैसे अविनाश को खाने पिलाने का शौक पड़ गया हो। मेजबान बनने में जो उसे मज़ा आता है वो उसकी लगन और दोस्तों के साथ समय बिताने की आदत से ही स्पष्ट हो जाता है। अँधेरा हो रहा है, दोस्त घर जाने के लिऐ तैयार हैं पर वो उन्हें रोकने के लिऐ अपनी गीतों वाली डायरी उठाकर कहेगा। "अच्छा एक गाना सुना दूँ, फिर चले जाना।" पर गाना ख़त्म होते ही दूसरा शुरू।

 

मैं जब उसके घर से बाहर आता हूँ तो वो हमें बाहर गेट तक छोड़ने आता है। हम सब दोस्त उस तन्हाई और सूनेपन को महसूस करते हैं जो उसके साथ उसके घर में छोड़ आये हैं। पर वो अगली सुबह के इंतेज़ार में अपनी सारी पीड़ा को जैसे छुपा लेता है। उसकी व्यस्तता ही जैसे उसकी असली ज़िंदगी है। किसी ने कार ली है, जन्मदिन है, किसी त्यौहार का इवेंट है, उसका प्रस्ताव तैयार रहता है "दोस्तों बैठोगे, फिर बना लो कोई मैन्यू और बजट।"


Rate this content
Log in