गुलबिया
गुलबिया
गुलबिया नाम के अनुरूप गुलाबी ही थी ,गरीब परिवार से , चार भाई बहनों में सबसे बड़ी ,अल्हड सी मस्त मौला थी। उसका दिल सोने जैसा था ,सबसे बड़ी होने के कारण घर कि बहुत ज़िम्मेदारियाँ थी उस पर ,सब हँसते -हँसते कर लेती थी…पर पढ़ नहीं पायी ज्यादा…बस १० तक ही पढ़ाई कर पायी, एक तो घर में पैसों कि कमी थी दूसरा माँ बापसोचते थे इतना तो पढ़ा दिया ज्यादा पढ़ कर क्या करेगी ? अपने घर जा कर चूल्हा चौका ही तो करना है, और बच्चे सँभालने हैं।
१८ कि होते ही शादी कर दी गयी उसकी, बड़े अरमान दिल में लिए ससुराल पहुंची, कुछ दिन तो सब ठीक - ठाक चलता रहा, पति बहुत प्यार करता था उसे …पर बाद में पता चला पति शराबी है। रोज़ पी कर घर आता और मार - पीट करता, उसके साथ जानवरों जैसा सुलूक करने लगा, कभी - कभी तो जोर जबरजस्ती भी करता। पर वो सहती रही चुप - चाप सब कुछ, करती भी क्या ? कहाँ जाती ? माँ बाप के घर तो जा नहीं सकती थी, उन्होंने तो साफ़ कह दिया था ,"यहाँ से तू डोली मे जा रही है, वही तेरा घर है अब उस घर से तू अर्थी मे ही निकलेगी, भला हो चाहे बुरा ," और कोई ठौर ठिकाना था नहीं सो सहती रही, गुलाबी रंग स्याह पड़ गया था…… हँसना तो जैसे भूल ही गयी थी, हर वक़्त रोती रहती, रात होते ही डर से कांपने लगती।
फिर एक दिन उसने फैसला किया कि अब नहीं सहेगी…चली जायेगी कहीं ,उसने अपने कुछ कपड़े डाले और जैसे ही निकलने वाली थी, दुर्भाग्य से उसका पति घर आ गया, पर उस दिन उसने पी नहीं रखी थी, पत्नी को जाता देख सकपका गया और गिड़गिड़ाने लगा , बोला " कसम खाता हूँ आज के बाद शराब को हाथ नहीं लगाऊंगा , सारी कमाई तुझे ला कर दूंगा, प्यार से रखूँगा, हाथ कभी नहीं उठाउंगा.... बस एक मौका दे दे मुझे " पता नहीं क्या असर हुआ गुलबिया पर कि वो रुक गयी, पिघल गयी ,उसकी बातों मे आ गयी और अपना इरादा छोड़ दिया।
"क्यों माफ़ कर देते हैं हम इतनी जल्दी ,भगवान ने न जाने किस मिटटी से गढ़ा है हमे, पर कब तक हम ऐसा
करते रहेंगे ?"