अंतरा
अंतरा
खिड़की के बाहर का नज़ारा कुछ खास तो न था। रोज जैसे ही गाड़ियों की कतारे और हॉर्न बजा के शोर कर रहे लोग। मैं असमंजस में थी कि अपनी नई कहानी को अंग्रेजी में लिखूं या हिंदी में। मेरे चेहरे के भाव को देख कर मेरे बगल में बैठी मेरी सहेली ने मुझसे पूछा, "क्या बात है? क्यों परेशान हो?" मैंने उसे अपनी दुविधा समझाई। इससे पहले कि वह कुछ जवाब दे पाती, आगे की सीट पर बैठे वृद्ध व्यक्ति ने पीछे पलट कर कहा, "जो भाषा तुम्हारे खून में है उस भाषा में लिखो।" घर आने के बाद मैंने तुरंत अपना बस्ता एक ओर फेंका, मेज पर लगी कुर्सी को खींचा और कंप्यूटर पर लिखना शुरू किया।
अंतरा अमित और कोमल की 5 साल की मासूम बच्ची है।एक खूबसूरत सुलझी हुई बच्ची, जिसकी आंखें और हंसी बेहद मनमोहक है। उसे कभी किसी ने रोते नहीं देखा। वह हमेशा हंसती खिलखिलाती ही दिखाई पड़ती है। पांच साल होने के बावजूद भी उसकी ज़बान लड़खड़ाती है। वह साफ बोलना ही नहीं चाहती है, अपने शब्दों को प्यार से गा कर कहना उसे बहुत भाता है।
"मम्मा, मम्मा...!" अपनी मां को आवाज लगाते हुए वह बिस्तर से नीचे उतरी। एक आँख को मलते हुए उसने अपनी दूसरी नज़र आस पास घुमाई। बिस्तर के नीचे पड़ी गुड़िया की उसने टांग पकड़कर खींची और अपने नन्हे नन्हे कदमों से आगे बढ़कर वह दरवाजे तक पहुंची। अपनी माँ को पुकार लगाते हुए वह रसोई में आई। अपने पिता को नाश्ता तैयार करते देख वह सोच में पड़ गई की उसकी मां कहां है। जैसे ही अमित की नज़र अंतरा पर पड़ी उसने आंच कम की और अंतरा से कहने लगा, "क्या बात है? आज तो मेरी बेटी खुद ही उठ गई। चलो, मतलब अब वह बड़ी हो गई है। हैं ना बेटा? उसने अंतरा की तरफ देखा।"
" मां कहा है?" गुस्से में अंतरा ने पूछा।
"अरे बेटा मम्मी तो दूसरे शहर गई है काम से, चलो आपको स्कूल के लिए तैयार होना है न?" उसने प्यार से कहा।
"नहीं" वह चिल्लाई, "आप झूठ कह रहे हो।" इतना कह कर अंतरा भागी और सारे घर में अपनी माँ को खोजने लगी। देखते ही देखते उसने सारे घर के दरवाज़े खोल दिए। निराश हो कर वह अपनी रज़ाई में घुस के रोने लगी। अमित ने आकर रज़ाई खिंची और कहा, "उदास मत हो बेटा, मम्मी जल्दी आ जायगी।"
सिसकते हुए उसने अपने पिता से कहा, "आप झूठ बोल रहे हो, मम्मी को छुपा दिया है, वो दूसरी जगह नहीं गयी है।" अमित ने उसे उम्मीद देते हुए कहा, "शाम को मैं आपको दिखाने ले जाऊंगा की मम्मी कहा गयी है, अभी आप स्कूल जाओ।" आखिर अंतरा मान गयी और अमित ने समय पर उसे स्कूल बस में बिठा दिया।
छुट्टी की घंटी बजी और अंतरा दौड़ते हुए अपने पिता की गोद में चढ़ गयी। प्यार से अपने पिता के गले में हाथ डालते हुए उसने पूछा, "अभी आप मुझे मम्मी से मिलाने ले जाने वाले हो न?" अमित ने उसके माथे पर आये बिखरे बालो को पीछे करते हुए कहा"हाँ बेटा।" कुछ कदम चलने के बाद अमित ने एक ऑटो को रोका और उसे चौपाटी चलने को कहा। एक बड़े पत्थर पर उसने अंतरा का बस्ता रख के उसे बिठाया। और उसके जूते और मोज़े उतार के एक तरफ रख दिए। अंतरा ने पूछा, " मम्मी यही आयगी क्या?"
"हाँ बेटा"
अंतरा पानी के लहरो में खेलने लगी और कुछ देर बाद रेत में घर बनाने लगी। घंटा भर बीत गया और अंतरा थक गयी। उसने फिर अपने पिता से अपनी माँ को लेकर सवाल करना शुरू कर दिया। अमित घुटनो पर बैठा और समुंद्र के दूसरी तरफ इशारा करने लगा और कहने लगा, "बेटा माँ उस तरफ है, आने में समय लगेगा।" अंतरा खामोश हो गयी और अमित कुछ देर बाद उसे घर ले आया।
सात साल बीत गए। अब अंतरा बड़ी हो चुकी थी पर चौपाटी पर जाना अब भी लगा ही रहता था। स्कूल से आते हुए कई बार अंतरा अब अकेली चौपाटी चले जाया करती थी। वहाँ उसे खामोश बैठ कर उसे समुंद्र के उस पार देखना अच्छा लगता था। उसे अपने दिल में यकीन था कि उसकी मां भी दूसरी तरफ किनारे पर बैठ कर उसे देखा करती होगी। एक दिन की बात हैं, अपनी मां को याद करते हुए अंतरा की आंखें नम हो चुकी थी। उसकी आंखों से आंसू की एक बूंद टपकी ही थी, कि उसने उसे पोछा और फैसला लिया कि वह एक दिन उस पार अपनी मां को लेने जरुर जाएगी।
यूँ ही चार साल और बीत गए। अब अंतरा सोलह साल की हो चुकी थी। हफ्ते में एक-दो बार चौपाटी आने वाली अंतरा अब हर रोज़ समुंद्र किनारे आ जाया करती थी। वहाँ बैठ कर वह अपनी धुंदली यादो को साफ करने की कोशिश करती थी । वह याद करती कि कैसे उसकी माँ उसे घुमाया करती थी, कैसे अपने हाथो से उसे खाना खिलाती थी, उसके बाल सवारती थी और उसे खेलने ले जाया करती थी। कई बार वह इतनी दुखी हो जाती की चिल्ला के अपनी माँ को आवाज़ लगाने लगती। माँ-माँ चिल्लाते हुए घंटो रोती। और एकाएक उठ के कभी ज़ोर से इस उम्मीद में चीख के आवाज लगाती की शायद वहाँ से कोई पलटकर जवाब ही दें दे। अंदर ही अंदर अपनी माँ से मिलने के जूनून में अंतरा डूबती जा रही थी। उसने सोचा माँ से मिलने उस पार जाने के लिए पैसे चाहिए होंगे और पैसे अच्छी नौकरी से आएंगे तो उसने पढ़ाई में मेहनत करना शुरू कर दी। अमित उसके अंदर के जूनून की आग से अनजान खुश था की उसकी बेटी पढाई में मेहनती हो गयी है।
अंतरा की नौकरी लगे ६ महीने हो चुके है। अमित खुश रहता है। अलार्म की घंटी बजी तो अमित रोज़ की ही तरह अख़बार उठाने बाहर गया। अख़बार उठाया तो उसमे से एक कागज गिरा। अपना चश्मा ढूंढ के अमित ने कागज पड़ा तो देखा की अंतरा ने विदेश की २ टिकटे मंगा ली है। अमित को कोई अंदाज़ा नहीं था की विदेश जाने के फैसले के पीछे माँ को ढूंढने की आग थी। अंतरा मुस्कुराती हुए आई और कहने लगी, "कैसा लगा मेरा तोहफा?" अमित ने भी उसको हस्ते देख मुस्कुरा दिया और हकलाते हुए कहा,
"पर ये किसलिए?"
"क्या मतलब किसलिए? हम माँ को ढूंढने जा रहे है।"
बस अंतरा ने इतना कहा और अमित की हवाइया उड़ गयी। वह डर गया, वह समझ ही नई पाया अंतरा को क्या कहे। आखिर इतने साल हो गए अंतरा ने अपनी माँ को लेकर कभी सवाल नहीं किया और आज अचानक इतनी दूर जाने का फैसला ले लिया।
"पर बेटा हम इतने बड़े शहर में उसे कैसे ढूंढेगे, ये सही तरीका नहीं है।"
"हाँ...! पर हम वहाँ जाकर रहेंगे, ढूंढेंगे, कोशिश करेंगे तो कभी न कभी तो वो हमे मिल ही जाएगी न।"
"मुझे तो यह सही फैसला नहीं लगता।"
"और मुझे नहीं लगता इस तरीके के अलावा और कुछ किया जा सकता है।"
अंतरा और अमित बहस करने लगे। जल्द ही अमित का ब्लड प्रेशर हाई हो गया। अंतरा को समझाते हुए अमित खुद परेशान हो रहा था। उसे अंतरा का पागलपन अब साफ दिख रहा था और आखिर में उसने चिल्ला के कह ही दिया, " तुम्हारी माँ तलाक दे के गयी है मुझे, कभी नहीं आयगी।"
अंतरा खामोश हो के चली गयी और खुद को कमरे में बंद कर लिया। अमित भी क्या करता, वह अब बच्ची नहीं रही थी जिसे झूठी उम्मीद दे के खुश कर दिया जाये। उम्मीद से हारी अंतरा कुछ दिन खामोश रही। उससे कोई बात करता तो हाँ या ना में ही जवाब देती। और कुछ दिन बाद उम्मीद से हारी अंतरा ने अपनी जान दे दी।
मैंने कंप्यूटर बंद किया और सोने चली गयी। सोने से पहले मैं अपनी कहानी के बारे में सोचने लगी। माँ को ढूंढती हुई अंतरा से ले कर माँ को पुकारते हुई चीखती अंतरा को मैं महसूस कर पा रही थी। अंतरा के ख़यालों में मुझे कब आँख लगी पता नहीं चला।