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खुशी के पल

खुशी के पल

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दरवाज़े पर घंटी बजने पर डाकिये द्वारा दी गयी चिट्ठी देख एकदम से रत्ना जी चौंक उठी कि आज के मोबाइल के युग मे ये चिट्ठी ! परन्तु उसपर हल्दी लगी देख जल्दी से वो उसे पूरा पढ़ने लगी इतने मे उनके श्रीमान जी की आवाज आई “क्या हुआ ?कौन आया ? मंझली बी की बिट्टो मृदुला की चिट्ठी आई है ।उसके बेटे की शादी की चिट्ठी है ।और सुनो पहली चिट्ठी उसने हमें ही भेजी है ।कहते हुये वो अतीत मे खो गयी ।

मंझली बी की लाड़ली बेटी थी बिट्टो ।अभी वो अट्ठारह की हुई ही थी कि उनके पास एक अच्छे ख़ानदान से बेटी के लिये रिश्ता आया बढिया घर वर देख वो बेटी के सुखी जीवन के लालच मे मना नही कर पाईं ।लड़का भी क्या था मशहूर हस्ती का गोद लिया बेटा ।यानी अविवाहित सुनन्दा जी ने अपनी ममता उड़ेलने के लिये अपनी बहन के बेटे को गोद ले लिया था और अब वह उनकी सम्पत्ति का इकलौता वारिस था ।और सुनन्दा जी मंझली बी के पति को मुँह बोले भाई की तरह मानती थी ।

यह अलग बात थी कि उनके पास धन दौलत की अधिकता की वजह से मतलब के रिश्ते मधुमक्खी की तरह चिपके रहते थे ।शादी के बाद बिट्टो को पता चला कि घर में मामा और मामी का दखल बहुत ज्यादा है यहाँ तक कि उन्होने उसके पति मे बहुत सी गन्दी आदतों की लत लगा कर उसे पढाई से विमुख कर दिया था ।इसकी उम्र भले ही कम थी पर ईश्वर की दया से बुद्धि की कमी नही बिल्कुल भी नही थी ।अब वह एक तरह उसकी स्थिति सोने के पिंजड़े मे क़ैद बुलबुल सरीखी हो गयी थी समय गुज़रता रहा ।

अब वह वहाँ रह कर बहुत कुछ समझने लगी थी जैसे जैसे उसकी सास की उम्र बढ़ने लगी और उनका मन दौलत से विमुख होने लगा मामा मामी ने दौलत पर क़ब्ज़ा बढ़ाना शुरू कर दिया मृदुला के पति को उन्होने नशे का आदी बना दिया था और उससे घर के नौकरों की तरह काम लेने लगी उनकी नीचता की नीयत यहाँ तक चली गयी कि जब उन्हे पता चला कि वो माँ बनने वाली है डाक्टर के पास ले जा कर उसका बच्चा यह कह कर गिरवा दिया कि अभी कच्ची उमर है इतनी जल्दी ठीक नही ।इत्तफ़ाक़ से उन्हीं दिनो रत्ना जी का अपने पति के साथ वहाँ जाना हुआ ।वहाँ उनकी खूब आवभगत हुई पर उन्होने पाया कि खूब चहकने वाली मृदुला कुछ डरी सहमी सी है ।उसने इशारा कर के चुपके से अपने कमरे की ओर आने को कहा वहाँ ले जाकर और वहाँ की हालत देख वो सब कुछ समझ गयी ।उन्होंने पाया कि पूरे समय सुनन्दा जी की भाभी की तेज नजरें उन पर जमी हुई थीं मौक़ा पा कर उन्होने मृदुला को समझा दिया कि अगली बार माँ बनने का अंदेशा होने पर किसी से कुछ ना कहना और माँ को फोन कर के उनसे कह कर वहाँ बुलवा कर चली जाना और पूरे समय वहीँ रहना ।उसनें वैसा ही किया ।उधर उन्होनें मंझली बी को सारी बात बता कर बेटी का जीवन बचाने के लिये सही कदम उठाने के लिये प्रेरित किया । समय आने पर स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया ।

तभी उसे पता चला कि उसके पति सुनन्दा जी के सिर्फ मुँह बोले ही बेटे है ।क़ानूनी तौर पर वो कुछ भी नहीं है यानी उनका कोई हक़ नही है ।अब उसका माथा ठनका ।वहाँ रह कर तो वह कोई ठोस कदम उठा नही सकती थी ।सुनन्दा जी का स्वास्थ भी अब ऐसा ना था कि वो कुछ कर पाती ।हलाँकि वह उनकी बहुत इज़्ज़त करती थी पर परिस्थितियों मे सुधार लाने व बच्चे के जीवन को बचाने के लिये उसने सबसे अलग होने का फ़ैसला किया और फिर माता पिता के सहयोग से उसने उसी शहर मे अपने लिये अलग किराये का घर ले लिया ।और अब वहाँ रह कर स्वतन्त्र रूप से अब अपनी जीविका के लिये उद्यम करने लगी ।

यह सब करते समय सबसे पहले वह अपनी पति को नशामुक्त कराने के लिये नशामुक्ति केन्द्र ले गयी जहाँ उचित देखभाल से वो स्वस्थ हो कर परिस्थिति को समझ कर नये सिरे से जीवन के संघर्ष मे मृदुला का साथ देने के लिये तैयार हो गये ।रईसी के बाद हालांकि मुफ़लिसी में जीना बहुत मुश्किल था पर फिर भी समय सबको सब कुछ सिखा देता है ।

ख़ुद्दारी मृदुला के रग रग मे बसी हुई थी आख़िर मंझली बी की बेटी थी वह।समय का चक्र चलता रहता है माता पिता के सहयोग से अलग होकर सिलाई व ट्यूशन करके अपने पैरो पर खड़े हो कर उसने अपने बेटे को पढ़ा लिखा कर इस योग्य बना दिया कि आज वह गर्व से सकती है कि वह उसका बेटा है । अब ना तो उसके माता पिता इस दुनिया मे है और ना ही सुनन्दा जी ।बेटे की शादी तय होने पर मृदुला को सबसे पहले अपनी उसी मामी व मामा का ध्यान हो आया जिनकी वजह से उसे यह ख़ुशियों भरा दिन देखने को मिला ।

इसी वजह से ही उसने शादी की पहली चिट्ठी मामी मामा के नाम लिखी थी ।पत्र पढ़ते पढ़ते रत्ना जी की आँखों मे खुशी के आँसू छलक उठे थे और वो फोन की तरफ उत्तर देने केलिये बढ चली ।


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