रोज डे
रोज डे
“सारी सब्जी सड़ी-गली है , देखते नहीं , कुछ भी उठा कर ले आते हैं। ऐसी सब्जी लाये हो...मवेशी के आगे रख दूँ तो वो भी सूंघ कर छोड़ देगा ,बनाने की बात तो दूर, मैं इसे छू भी नहींसकती। "
“अररे....बहु...इतना चिल्लाती क्यूँ है? एक तो बाजार से सब्जी ला दिया उस पर से सबेरे-सबेरे उसे खरी-खोटी सुनाने लगी ! तुझे तो सब पता है, वो घर में एक ग्लास पानी भी नहीं लेता कभी ,हमेशा दो-चार नौकर,चपरासी काम करने के लिए तैनात रहते हैं ,तुमलोग चार दिनों के लिए गाँव आये हो , मेरे सामने मेरे बेटे को फटकारती हो मुझे बर्दाश्त नहीं होता।
“माँ जी, आप खुद ही आकर देख लीजिये सब्जी कैसे लाये हैं !”
गुस्से में ,मैं सारा सब्जी सासू माँ के सामने लाकर उझल दी।
“अच्छा, जा.. पहले गोबिंद के लिए अदरक वाली चाय बनाकर ले आ, बाजर से थक कर आया है। हाँ...सुन, मुझे भी आधा कप चाय देना , गोबिंद , इधर आ, मेरे पास बैठ। ”
झना......क झना.....क , रसोईघर से आवाज आयी।
“क्या गिरा बहू ? पता नहीं गुस्से में दूध का बर्तन गिरा दी या चाय का ? आजकल की बेटी-बहू किचन का काम मन से करती ही नहीं | जब देखो, मोबाइल पट-पटाते रहती है। ”
“लीजिये अदरक वाली चाय, आप दोनों के लिए। ” मैं उनदोनों के सामने चाय का प्याला रखकर जाने लगी।
“तुम्हारी चाय ?”
इन्होंने आहिस्ता से पूछा।
बेटे की आवाज सुनते ही सासु माँ की त्योरियां चढ़ गई , तुरंत बात को बदलते हुए बोली
“ बहू, किचन में क्या गिराई ? ”
माँ, इससे भी प्रेम से बात कर लिया करो। इसे भी तो नौकर, चपरासी से काम करवाने की आदत पड़ गई है.. गलती मेरी थी, बिना देखे बासी सब्जी ले आया। इसका गुस्सा होना जायज था।
इन्होंने तुरंत पॉकेट से एक गुलाब का फूल निकाल कर मुझे देते हुए कहा..
"देखो ये ताजा है न ?”
गुलाब को देखते ही अनायास मेरे मुँह से निकल पड़ा , “बहुत सुंदर है , मैंने बेकार ही आपको गुस्से में बुरा-भला कह दिया , माँ जी आज इसी में से सब्जी छांटकर बना देती हूँ |" मैं वहीं बिखरे सब्जियों को फिर से समेटने लगी।
सासु माँ, मुस्कुराते हुए बोली,
" ये हुई न हैप्पी रोज डे वाली बात"
सुनकर ऐसा लगा , जैसे मेरे सपने में सुनहरे पंख लग गये।