एक उड़ान ऐसी भी
एक उड़ान ऐसी भी
इक्कसवी सदी, जहाँ माना जाता है- लड़का-लड़की एक सामान होते हैं। मैं एक छोटे से गाँव सहायल से हूँ। जहाँँ आज भी औरत को घर में रहने वाली समझा जाता है, ना ही बाहर काम करने की इजाज़त है। यही सब देखते हुए मैं बड़ी हुई पर अपनी ख्याली दुनिया में खोयी जैसे मैं सच्चाई देखना ही नहीं चाहती थी। ज़िन्दगी जैसे आराम से चल रही थी। घर में मम्मी-पापा, दो बड़े भाई और भाभी जैसे सब खुश थे। रोज़ सुबह उठ के स्कूल जाना, वापस आकर स्कूल का काम करना और मौज मस्ती करना। मैं पापा से सबसे ज़्यादा प्यार करती थी जैसे वही मेरी दुनिया हो।
पर कहते है ना ज़िन्दगी इतनी आसान नही होती जितनी दिखती है। तब में १२ कक्षा में थी मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ जिसकी शायद कभी कल्पना भी न की हो। एक लड़का मेरी ज़िन्दगी में आया जिससे मैं बहुत प्यार करती थी। ये बात मैंने अपने घरवालो से छुपाई क्योंकि मुझे साफ़-साफ़ घरवालो ने बोला था लड़को से बात नहीं करनी और अगर बताती तो मेरी पढाई छुड़वा देते इसलिए ना बताना ही बेहतर समझा। जैसे-जैसे १२ कक्षा खत्म होने को थी घरवालो ने घर से बाहर जाना बंद कर दिया। घर से बाहर अकेले नहीं जाने देते थे और जाती भी तो मम्मी को साथ भेजते थे। ज़बरदस्ती सूट पहनने को बोलते थे। ये सारी चीज़े जैसे मेरे दिमाग पर बहुत असर कर रही थी। जैसे मैं अपनी ख्याली दुनिया से बाहर आ रही थी। ये सब कुछ यही पर खत्म नहीं हुआ। जब बात आयी कॉलेज की तब घरवाले बोले की गर्ल्स कॉलेज से बी.एड करले। लेकिन मुझे बी.टेक करनी थी। मैं अपने घरवाले से लड़ी और बी.टेक में दाखिला ले लिया और हॉस्टल रहने लगी। मेरा बॉयफ्रेंड भी मेरे साथ ही मेरे कॉलेज में था। कॉलेज के एक बाल बाद मुझे ये पता चलता है की मेरा बॉयफ्रेंड मुझे धोखा दे रहा है। मेरे साथ होते हुए भी उसके किसी और लड़की के साथ सम्बन्ध है। इस बात से मैं अपना पूरा होश हवा खो चुकी थी। थोड़ा समय लगा सँभालने में पर खुदको संभाल लिया।
फिर कुछ समय बाद मेरा एक्स-बॉयफ्रेंड फिर आया मेरे पास मुझसे माफी मांगने के बहाने जो भी उसने मेरे साथ किया। फिर से वो मेरे साथ रहना चाहता था कहता था की वो मुझे बहुत प्यार करता है, बहक गया था थोड़ी देर के लिए। अब उसकी बातो का फ़र्क नहीं पड़ा क्योंकि जो एक बार छोड़के जा सकता है दुबारा भी छोड़कर जा सकता है। पर मैं खुद से झूट नहीं बोल सकती, जानती थी कि आज भी मैं उससे प्यार करती हूँ। मैं एक ऐसी स्टेज पर थी जहाँँ न ही मैं अपने पापा को छोड़ सकती थी ना ही अपने बॉयफ्रेंड को क्योंकि दोनों से ही बहुत प्यार करती थी चाहे जैसे भी हो। मुस्कुराना तो जैसे छोड़ ही दिया था। कहाँ हूँ कुछ होश नहीं था। ऐसा लग रहा था जैसे अपने ही शरीर में बंद हो गयी हूँ। हर एक दिन ऐसा जा रहा था जिसकी ना कोई सुबह थी ना ही शाम। दिनोदिन बोझ बनती जारी थी ज़िन्दगी।
एक शाम मैं अपने कमरे में बैठी थी। उस दिन मैंने सब कुछ छोड़कर अपने बारे में सोचा की मैं क्या चाहती हूँ। उस दिन समझ आया की खुद को दुसरो में इतना भी मत उलझाओ की खुदको भूल जाओ। आज तक रोई, अपने पापा और बॉयफ्रेंड की वजह से लेकिन उस शाम अपने लिए रोई इतना रोई की दुबारा कभी रोना नहीं। उस शाम एक निश्चय किया जिसका आज तक कोई अफ़सोस नहीं हैं।
उस शाम एक नयी उड़ान भरी जिसकी ना ही कोई मंज़िल थी ना ही कोई रास्ता। बस एक सफर था जिस पर चलने को कदम बड़ा चुकी थी। अपने पापा और बॉयफ्रेंड को छोड़ कर जाने का निश्चय। एक नयी ज़िन्दगी शुरू करने का निश्चय। अपने लिए ज़िन्दगी जीने का निश्चय, जहाँँ न ही कोई बंदिश है न ही कोई गिले शिकवे, बस मैं ही मैं हूँ।