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“ऐली”

“ऐली”

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उस दिन इंटेरनेट पर एक दूसरे को सूचित कर सब पुराने सहपाठी दिल्ली यूनिवर्सिटी में एकत्र होने वाले थे ।

धीरेन्द्र तयशुदा स्थान पर समय से कुछ पहले ही पहुँच गया था, जैसे सब साथियों से मिलने की सबसे प्रबल

इच्छा बस उसे ही हो । कॉलेज की सारी बातें आज भी उसके मस्तिष्क में वैसी ही जीवंत हैं जैसी सोलह बरस

पहले थी । परंतु सबसे अधिक जीवंत है हैरी यानि हरीश श्रीवास्तव और ऐली यानि अलीशा सिंह की अनोखी

कहानी। अकेले बैठे - बैठे उसे दूसरे छोर से अपने सहपाठियों के साथ - साथ अपने भी चिल्लाने की आवाज़

आने लगी थी ।

“आगे मत जा हैरी, आगे पानी का बहाव बहुत तेज़ है, रुक जा हैरी, आगे मत जा । “

बरसात के दिन थे गंगा अपनी गंभीर प्रौढ़ा छवि को त्याग कर किशोरी सी चंचलता पर उतार आई थी । दिल्ली

यूनिवर्सिटी से आया छात्र छात्राओं का ग्रुप हरिद्वार में मटरगश्ती करता फिर रहा था कि बिना घाट वाले

किनारों पर ठहरकर सबको अचानक रोमांच की सूझी, सब उतर पड़े उमंगती गंगा की उद्दाम उर्मियों पर,

छात्राओं में तो केवल दो ही साहस कर सकीं थीं चेतना और अलीशा । रोकते - रोकते हैरी बहुत आगे निकल

गया था। यूं वो कद काठी में इतना हट्टा कट्टा तो नहीं था पर यौवन का जोश और खूबसूरत सहपाठिनों के

सामने स्वयं को सबसे ज़्यादा साहसी दिखाने की ललक उस दिखावा पसंद को उस क्षण क्षमता से अधिक

होना दिखाने पर मजबूर कर रही थी । लहरें चाहे किसी साधारण नदी की हो या पवित्र पापमोचिनी गंगा की,

जब अपनी सी पर आती हैं तो किसी परभक्षी से कम नहीं होतीं । घूमंतुओं को देख उन्हें भी मस्ती सूझी, एक

के पीछे एक भागीं और हैरी को अपना शिकार बना कर चलती बनी । अगर धीरेन्द्र और अलीशा ने अपनी जान

की बाजी लगाकर उसे बचाया न होता तो ईश्वर ही जानता कि उस दिन उसका क्या होता । धीरेन्द्र ने तो मदद

भर ही की थी, बाहर निकालकर तो उसे ऐली ही लाई थी ।

हरियाणा के किसान परिवार की बेटी ऐली, यानि अलीशा को ईश्वर ने लड़की तो ज़रूर बनाया परंतु कद काठी

और शारीरिक बल किसी हट्टे कट्टे लड़के से कम नहीं दिया था,जिसे उसने कई बार साबित भी कर दिखाया

था। कोई उसे लड़की समझ कर उसकी मदद करे, ये उसके लिए अपमान का विषय हो सकता था । अक्सर

उसके बैचमेट उसे ऐली दादा पुकारते। उस दिन की घटना के बाद हैरी, जान बचाने वाली ऐली का ऋणी हो गया

था ।थोड़ा बहुत धीरेन्द्र का भी और तीनों की दोस्ती दिन पर दिन गहराती चली गई । लड़का लड़की की

दोस्ती अपने चरम पर पहुँच, रिश्ते में बंध जाने को आतुर हो उठती है , उक्ति चरितार्थ हो गई । ऐली ने अपनी

अथक मेहनत के बाद बारहवीं कक्षा में हरियाणा बोर्ड टॉप किया था, इस एवज में उसकी ज़िद पर उसे दिल्ली

पढ़ने भेज दिया गया था ।शादी ब्याह में मरज़ी चलने देने का तो प्रश्न ही नहीं था। परंतु धुन की पक्की उस

लड़की ने ठान लिया तो कोई माने या न माने फर्क नहीं पड़ता, खाप पंचायतों के भय भी उसके निर्णय को नहीं

डिगा सके और उसने हैरी यानि हरीश श्रीवास्तव से धीरेन्द्र, सूरज आदि मित्रों के सहयोग से चुपचाप

आर्यसमाज मंदिर में विवाह रचाया और अपने हॉस्टल लौट गई, खुद को सही साबित करने के लिए तर्क रखा

की प्रेम विवाह तो प्राचीन युग से मान्य हैं ।

माह भर ही गुज़रा होगा ऐली तीन दिन की छुट्टियों में गाँव गई थी। संयोग की बात उसके गाँव के पंडित के

साथ वो पंडित भी बैठा हुआ था जिसने ऐली का विवाह कराया था, ऐली उसे देखकर ठिठक सी गई , उस पंडित

ने भी उसे पहचान लिया और उसका परिचय जाने बिना ही उसके ताऊ जी से उसके आर्य समाज में किए गए

प्रेम विवाह की बात बता दी। ऐली के कान में भनक पड़ते ही वो ढलती हुई सांझ की परवाह किए बगैर हैरी

के पास दिल्ली चली आई । मजबूरन अब हैरी को चुपचाप किया विवाह अपने पिता को बताना पड़ा ।

थोड़ी बहुत नाराजगी के बाद वो मान गए । ऐली का परिवार किसी तरह भी नहीं माना तो हैरी के माता पिता

ने अकेले ही एक स्वागत भोज देकर उन दोनों को पति - पत्नी होने की मान्यता समाज में दिला दी ।

अब तक ऐली और हैरी सहपाठी मित्र रहे थे, तू तड़ाक , मारना पीटना, धक्का मुक्का सब कुछ समान रूप से

चलता पर अब ऐली दादा कहलाने वाली वो दबंग लड़की हैरी की पत्नी बन चुकी थी । उसकी जिस बोल्ड

इमेज का हैरी दीवाना हुआ था अब वही इमेज समस्या थी, उसके निरे देसी पति की तरह के व्यवहार पर ऐली

कहती,

"यार हैरी तुम तो पूरे के पूरे परंपरागत हिन्दुस्तानी हस्बेंड ही हो गए। “

"अब यही सच्चाई है ।" हैरी रूखा सा उत्तर देता।

अभी उनकी शादी को तीन माह ही हुए थे की हैरी की माँ को पक्षाघात ने जकड़ लिया हैरी अपना पहला इंटरव्यू

देने शहर से बाहर गया हुआ था,दिल के मरीज उसके पिता बुरी तरह घबरा गए । ऐली ने सास को गोद में

उठाया कार की पिछली सीट पर लेटाया और ससुर को जल्दी से कार में बैठा कर कार हॉस्पिटल की तरफ दौड़ा

दी । । बाद में ससुर ने कहा हमे पता ही नहीं था तुम कार भी चला लेती हो ।

"पापा अगर मेरे किसी दोस्त के पास ट्रेन या प्लेन होते ना तो वो भी मुझे चलाने आते होते। वो तो धीरेन्द्र के

पास सिर्फ कार ही थी। मैंने उसी से सीखी, उसी की कार खूब चलाई और ठोकी ठाकी भी । " हँसकर बताया था

उसने।

ऐली ने महीनों हैरी की माँ की मालिश व दवा दारू कर, उन्हें उनके पैरों पर खड़ा कर दिया । दोनों बुजुर्ग जान

गए की हैरी अंजाने में बहू नहीं अनमोल हीरा ले आया था । सास ससुर से पक्की दोस्ती हो गई थी उसकी ।

हैरी के इस तरह विवाह कर लेने पर रूठे हुए रिश्ते - नातेदार भी उसके दिये मान - सम्मान के आगे

नतमस्तक हो पुनः आत्मीय बन गए थे । घर में जो भी आता ऐली को ही पूछता उसकी ही प्रशंसा करता ,

यहाँ तक कि हैरी के माता - पिता भी लापरवाह, दिखावा पसंद बेटे से ज्यादा बहू पर ही भरोसा करते । शिक्षा

से लेकर शारीरिक सौंदर्य तक ऐली, हैरी से इक्कीस नहीं पच्चीस बैठती । हैरी अब परित्यक्त विषय सा स्वयं

को हाशिये पर पड़ा पाता, माता - पिता की इकलौती संतान होने के कारण घर में अब तक सारा महत्व उसी का

था । पर अब उसके एकाधिकार में सेंघ लग गई थी जैसे ,परिणाम मन ही मन पत्नी से ईर्ष्या का विनाशकारी

बीज लेकर आया । धीरे - धीरे वो उसे लोगों के बीच बैठने से रोकने के बहाने बनाने लगा कभी कोई काम

बता देता, कभी यूं ही अलग बुला लेता । ऐसा संभव ना होने पर उसकी हर बात को अपने अनर्गल तर्कों से

काटने का प्रयास करता । स्वयं को ज्यादा कुशल दिखाने के अनथक प्रयास में सफल न हो पाने पर ऐली को

सबके सामने किसी भी बात पर बुरी तरह झिड़क देता। वो उसकी कुछ बातें मान लेती तो कुछ का तिरस्कार

भी जरूर करती । निश्छल प्रेम के चश्में से ऐली को दिखाई नहीं दिया परन्तु और सभी को साफ - साफ

दिख रहा था कि हैरी को हीनभावना के कीड़े ने काटना शुरू कर दिया था , पुरुष पन का कोबरा तेज़ी से उसकी

सोच पर अपना विष फैला रहा था । ऐली की जिन खूबियों पर कुर्बान होकर उसने विवाह किया था अब वही

उसे सौ बिच्छुओं के दंश सी चुभ रही थीं । वो तो ये भी भूल गया कि उसका जीवन ऐली की इसी विशिष्टता

और साहस का ऋणी था । ठीक ही कहते हैं कि बोल्ड स्त्री दूसरे के घर में ही अच्छी लगती है । अपनी तो डरी

- सहमी, दबी - ढकी, बात – बात पर आँसू बहा देने वाली छुई - मुई ही अच्छी लगती है । विलक्षण स्त्रियों के

लिए पति का प्रेम दुर्लभ ही होता है ।

“ऐली आज तुम मुझे क्या गिफ्ट देने वाली हो?” विवाह की पहली वर्षगांठ पर हैरी ने उत्सुक होकर पूछा,

“आज मैं नहीं, तुम मुझे देना, फिर मैं तुम्हें एक शानदार रिटर्न गिफ्ट दूंगी कुछ महीनों बाद, ठीक।“ उसकी

चंचल आँखें पति का सानिध्य पा जिस तरह हर बार चमक उठतीं उसी की पुनरावृत्ति हुई । कौन जाने हैरी ने

दोनों की कॉमन फ्रेंड अवंतिका से अपना अंतरंग रिश्ता उजागर करने के लिए उसी रात को क्यों चुना था । पर

उस आत्मविश्वासी, आधुनिका ने थोड़ा सा आश्चर्य दिखाकर बात को वहीं खत्म कर दिया परंतु हैरी ने पुनः

कुरेदा,

“ऐली तुम्हें बुरा नहीं लगा?”

“नहीं, बिलकुल नहीं, तब मैं थी ही नहीं न तुम्हारी लाइफ में, तो बुरा लगने का प्रश्न ही कहाँ है।“ ऐली ने

लापरवाह होकर कहा ।

“यानि एक दूसरे की लाइफ में आने से पहले हम दोनों कुछ भी करने को स्वतंत्र थे?” एक पति ने अपना संदेह

कुरेदा ।

“अब छोड़ो भी, ये डिस्कशन आज नहीं फिर कभी ।“ऐली ने बात खत्म की ।

विवाह की वर्षगांठ के लगभग एक डेढ़ - महीने बाद हैरी के नानाजी की तबीयत अचानक खराब हो गई

थी। पंद्रह सितंबर ईद की छुट्टी थी अतः हैरी सहित सभी का उन्हें देखने जाना तय हुआ । विवाह की प्रथम

वर्षगांठ पर पति से लिये उपहार का रिटर्न गिफ्ट जो तैयार हो रहा था कोख में । उस दिन जिव्हा पर बैठी

सरस्वती ने वादे की पक्की ऐली का कथन सच कर दिया था । वो अभी उससे अनभिज्ञ थी, पर तबीयत की

खराबी ने मन होते हुए भी उसे नानाजी से मिलने नहीं जाने दिया । हैरी सहित उसके माता - पिता अगले

दिन लौट आने के लिए सुबह ही चले गए ।

रात्रि के लगभग आठ बजे होंगे की डोर बैल बजी। दरवाजा खोला तो सामने सहपाठी मित्र धीरेन्द्र खड़ा था ।

“हे ऐली, रह गई न सरप्राइस्ड।“आते ही पुरानी जीवंतता के साथ बोला था धीरेन्द्र ।

“धीरेन्द्र तू!” ऐली वास्तव में ही आश्चर्यचकित रह गई थी ।

“अरे मैंने सोचा बिना बताए ही चलता हूँ, तीनों खूब बातें करेंगे, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से सुबह चार बजे

कोलकाता के लिए ट्रेन है मेरी ।तेरा घर स्टेशन के इतना पास है कि मैं तो यहीं आ गया होटल की जगह । हैरी

कहाँ है? “

ऐली ने हैरी का घर पर न होना बताया तो धीरेन्द्र वहाँ से चले जाने के लिए उठ गया था । पर ऐली ने उसे

अपने पुराने अंदाज़ में धमकाया था ,

“अरै बावड़े इतणी रात गए जावैगा कहाँ , चुपचाप बैठ जा यहीं ।“

धीरेन्द्र ने उसे बहुत समझाया कि वो किसी होटल में रुक जाएगा । धीरेन्द्र हैरी की मानसिकता समझता था।

वह बोला,

”ऐली समझने की कोशिश कर, सुबह चार बजे ही ट्रेन है मेरी, हैरी होता तो मुझे स्टेशन छोड़ देता अब जाऊंगा

कैसे?”

इस पर ऐली ने उसका हाथ पकड़ कर लॉबी के सोफ़े पर बैठा दिया और बोली,

“धीरेन्द्र मेरी शादी हुई है यार, हाथ पैर थोड़े ही कटे हैं। हैरी की कार यहीं है, वो लोग पापा की कार लेकर गए

हैं, मैं छोड़ दूँगी तुझे । आखिर तेरी ही कार से सीखी थी कार चालानी भूल गया? चल तू ऊपर गेस्ट रूम में

जाकर फ्रेश हो जा मैं तेरे लिए खाना बनाती हूँ । खा कर वहीं सो जा, सुबह मैं तुझे स्टेशन छोड़ आऊँगी,

ओक्के।“

ऐली के आत्म विश्वास और खुलेपन के आगे कोई भी लड़का कॉम्प्लेक्स खा सकता था । लड़का भी पति

और पति भी विशेषकर हैरी, जिसकी मानसिकता से धीरेन्द्र बहुत सालों से अच्छी तरह परिचित रहा है ।

वो ऐली जैसी तेज़ हवा के झोंके को सहेज पाने के लिए मजबूत दीवार नहीं, झीनी चादर सरीखा था जो

उसके आने की आहट के साथ ही अस्थिर हो उठता हो ।धीरेन्द्र अच्छी तरह जानता है कि वो ऐली की

स्वस्थ मानसिकता से बिलकुल मेल नहीं खाता । धीरेन्द्र ने विवाह के समय भी ऐली को यही समझाया था

कि उसे हैरी के साथ या तो खुद को सबमिसिव बनाना होगा या हैरी को थोड़ा आत्मविश्वासी। उस दिन खाना

खाते समय फिर यही दौहराया तो ऐली गंभीरता से बोली,

“ऐसी कोई प्रॉबलम नहीं है धीरेन्द्र, सब कुछ ठीक चल रहा है यार, चल फिर सो जा जल्दी उठना है सुबह।“

जाने क्यों धीरेन्द्र को उस सब कुछ ठीक में कुछ भी ठीक नहीं लगा था । धीरेन्द्र ऊपर चला गया, ऐली अपने

बेडरूम में । धीरेन्द्र के साथ बातों - बातों में उसने खाना खा तो लिया पर पचा नहीं पाई, रात भर उसे उल्टियाँ

आती रहीं। साढ़े तीन बजे का अलार्म बजा तो उसने उठकर चाय बना दी, तब तक धीरेन्द्र भी तैयार होकर आ

गया । अभी अँधेरा ही था, ऐली कार निकाल कर हैरी को छोड़ने स्टेशन चल दी । वहाँ भारतीय रेल विभाग की

ट्रेन लेट होने की जानी पहचानी घोषणा हुई और ट्रेन आते - आते लगभग दिन निकल आया । ऐली रात भर

उल्टियाँ करते रहने की वजह से बेहाल हुई घर आकर थोड़ी देर के लिए लेटी ही थी कि उसकी आँख लग गई।

हैरी अपने माता - पिता के साथ ऑफिस टाइम से पहले ही लौट आया । उसके कई बार डोर बैल बजाने और

आवाज़ें लगाने पर ही ऐली की नींद खुल सकी थी । उसने यह पहला अवसर हाथ आते ही ऐली के विरोध में

अंदर ही अंदर पल रहे आक्रोश, ईर्ष्या, असुरक्षा और क्रोध सबको एक साथ स्वतंत्र कर दिया । ऐली हड़बड़ाहट में

समझ ही नहीं पाई कि क्या हुआ। माहौल इतना बिगड़ गया कि उन दोनों की बात हो ही नहीं सकी । अतः

धीरेन्द्र के आने और रात में रुकने की बात बताना स्वतः ही स्थगित हो गया । ऐली रोई गिड़गिड़ाई तो नहीं

पर हाँ हैरी के अप्रत्याशित व्यवहार से आहत ज़रूर हुई । सुबह उसकी मेड भी दरवाजा खटखटा कर लौट गई

थी अब दुबारा आते ही बोली,

“का हुआ बऊ जी पड़ौस वाली सेठानी कै रईं कि आप रात भर जागत रईं। और अंधेरे मैंईं कार लेकै कईं भागीं

तबीयत तो ठीक है आपकी?”

ऐली ने उसे उत्तर न देकर काम करने का संकेत किया, परंतु हैरी के कान तो जैसे उधर ही लगे थे । उसने थोड़ा

सा और क्रोध अपनी आँखों में उबाला और बिना बात किए ही ऑफिस चला गया । वो क्यों जागती रही और

दिन निकलने से पहले ही कर लेकर कहाँ गई थी ? ये सब उसे अच्छी तरह डरा लेने के बाद पूछने वाली बातें

थी । शाम को घर लौटते समय भी सुबह की सख्ती याद रखनी जरूरी थी, जिससे पत्नी में थोड़ा भय तो

उत्पन्न हो और पत्नी, पत्नी की तरह तो रहे । या हमेशा ऐली दादा ही बनी रहेगी । अब वो उसका पति है,

छात्र जीवन का मित्र मात्र नहीं, किसी स्त्री के जीवन में जो पुरुष देवतुल्य होने का ओहदा रखता है, वो, ऐली के

जीवन में अब वही पुरुष है और देवता के सामने तो बली से बली को भी नतमस्तक होना ही होता है । परंतु

ऐली ऐसी किसी भी धार्मिकता से कोई सरोकार नहीं रखती अतः बात उसने भी नहीं की ।

शाम को धीरेन्द्र ने स्वयं ही फोन करके उसके घर खुद के रुकने की बात बताई। हैरी में शंका की ज्वाला तो

नौकरानी के प्रश्न ने ही भड़का दी थी, धीरेन्द्र की बात सुनकर तो वो और भी तिलमिला उठा । किसी के घर में

न होने पर भी ऐली ने किसी पुरुष को घर में रक्खा, रात भर , वो भी घरवालों की चोरी से । यानि वो जान

बूझकर हमारे साथ नाना को देखने नहीं गई, सब कुछ पूर्व नियोजित था, उस दिन सुबह जब हम लौटे तो उसने

दरवाजा इसी लिए इतनी देर में खोला, उसकी वो लाल - लाल आँखें और थकान से चूर चेहरा साफ - साफ सारी

कहानी बयान कर रहा था । मैं ही पागल हूँ जिसे दिखाई नहीं दिया , पता लग जाने के डर से सुबह होने से

पूर्व ही छोड़कर भी आ गई उसे , नौकरानी भी तो यही बता रही थी । उस रात के बाद ना तो वो ठीक से कुछ

खाती ही है और ना सो ही पाती है । आखिर क्या हुआ था उस रात? हैरी अपनी ही बनाई दलदल में फंस कर

परेशान हो गया, उसके मन घड़न्त कुतर्क समय और परिस्थिति के साथ सैट बैठ कर उसके शक को पूरा

बल दे रहे थे ।

पूरा माह बीत गया ऐली लगभग बीमार सी दिखने लगी । अभी तक वो इस सत्य को आत्मसात नहीं कर

पाई थी कि आज भी बिना गलती की गलती भी माननी तो स्त्री को ही पड़ती है । धीरेन्द्र द्वारा उसके वहाँ

रुकने की सूचना और ऐली की बेचैनी ने हैरी को उसके और धीरेन्द्र के बीच कुछ अनैतिक घटने का पूर्ण

विश्वास दिला दिया था अतः हैरी से अभी तक उसकी सुलह नहीं हो सकी थी । विचित्र बात थी कि ऐली से

मित्रवत व्यवहार रखने वाली हैरी की अनुभवी माँ को भी इतने दिनों तक उसका मुरझाया चेहरा नहीं दिखा ।

जब वो बहुत ही बीमार दिखाई देने लगी तब उसे लेकर वो डॉक्टर के पास गईं । जहां उन्हें घर में नवागंतुक

के आगमन का समाचार मिला । ऐली ने अपने अनियमित मासिक धर्म के कारण, हैरी के माता - पिता ने

लापरवाही में इस बात पर तो ध्यान ही नहीं दिया था और हैरी को तो जैसे कोई मतलब था ही नहीं उससे ।

हैरी के ऑफिस से लौटने पर उसकी माँ ने उसे यह शुभ सूचना दी, जिसे सुनकर ऐसा लगा जैसे उसने किसी

प्राण लेवा गैस को सूंघ लिया । अब शक ही नहीं उसके हाथ पक्का सबूत भी था, उस रात ऐली और धीरेन्द्र

द्वारा किए गए तथाकथित महापाप का ।

ऐली खुश थी,वो ऐली दादा भले ही सही पर उसके भीतर एक शिशु के आकार लेने के साथ ही एक ममतामई

माँ भी अँखुआ रही थी । उसे विश्वास था कि हैरी को लाख नाराजगी सही पर ये सुनकर वो क्षण भर में

सब भूल जाएगा, खुशी - खुशी उसे गले लगा लेगा और उसके गर्भ में पल रहे अपने अद्भुत उपहार को उससे

कुछ माह तक संभाल कर रखने की विनम्र विनती करेगा । हुआ उसका ठीक उल्टा । संदेह के राक्षस ने

पिता बनने के कोमल, कोरे, कच्चे – कच्चे से सुख को अतिशय क्रोध की कठोर चट्टान पर पटक कर मार डाला

। हैरी ने निश्छल पत्नी की ओर असीम घृणा से देखा और कमरे में जाकर बिस्तर पर औंधे मुंह लेट गया ।

ऐली अपना अहम त्याग कर उसके पास जाकर बैठ गई, ये उसके लिए विलक्षण खुशी का क्षण जो था जिसे वो

सिर्फ अपने पति के साथ ही सांझा कर सकती थी। उसके पास बैठते ही हैरी बिफर पड़ा जो मन में सोच रहा

था वो सब उगल डाला।

“पंद्रह सितंबर की रात जो एडवेंचर तूने किया था उस कमीने धीरेन्द्र साथ उसका रिज़ल्ट तू मेरे सिर क्यों

मढ़ना चाहती है ?” अनेक भद्दी बातों के साथ अंत हुआ हैरी के इस असहनीय वाक्य के साथ। निर्बल

अन्तःकरण वाला अपनी जिव्हा को फूहड़ता भरा बल देकर स्वयं को बली सिद्ध करने का प्रयास करता ही है ।

सहसा ऐली को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ । सारी दुनिया को ताक पर रख जिसको अपना जीवन साथी

बनाया था, उसे सारे जीवन का तो क्या ,उस पर मात्र एक रात्रि का भी विश्वास नहीं हुआ था , तब जबकि कि

वो उसे बरसों से जानता था । इतनी अशोभनीय बात की ना कोई सफाई हो सकती थी न माफी दी जा सकती

थी , ऐली का बेहिसाब आक्रोश हैरी के मुंह पर पड़े झनझनाते थप्पड़ के रूप में निकला । इस थप्पड़ ने हैरी को

और भी बड़ा कारण दे दिया ऐली को अपने जीवन, अपने घर से बाहर निकाल फेंकने का । उसने अनशन ले

लिया अन्न जल तभी ग्रहण करेगा जब वो घर से चली जाएगी हमेशा - हमेशा के लिए।

उसके पिता ने उसे समझाना भी चाहा, तो उसने पंद्रह सितंबर की रात धीरेन्द्र को जान बूझ कर बुलाना, नाना

को देखने न जाना, उसका रात भर जागना, नौकरानी व पड़ौसियों तक का इस बात से अवगत होना , सुबह होने

से पहले ही धीरेन्द्र को छोड़कर आना जैसे, जो भी स्वनिर्मित संदेह अपने मन में पाल रखे थे सब अपने पिता

से कह डाले। और भी कहा बहुत कुछ जैसे ,

”कुछ बातें तो ऐसी हैं जिन्हें मैं आपको बता भी नहीं सकता । पापा मैं इसे कॉलेज के समय से जानता हूँ, फिर

आप ये भी तो सोचिए कि जो लड़की जन्म देने वाले बाप को झांसा दे सकती है उसके लिए पति क्या मायने

रखता है जिसका साथ मात्र कुछ समय का ही हो, मुझसे उसे पहचानने में भूल हो गई पापा, मुझे माफ कर

दीजिये ।“

बात में तर्क तो जरूर ही था अतः पिता को सब कुछ प्रामाणिक लगा । उन्होने यह पूछना जरूरी नहीं समझा

कि जब ऐली का चाल - चलन कॉलेज के समय से ही अच्छा नहीं था तो ना पहचान पाने की गुंजाइश ही कहाँ

थी , और उससे चुप चाप विवाह करने की कौन सी विवशता आन पड़ी थी ? न ही यह सोचा कि जो झांसा

ऐली ने दिया था अपने पिता को क्या ठीक वही झांसा हैरी ने नहीं दिया था उन्हें ? इस बार हैरी की ज़िद के

आगे झुकने की परिणति परिवार की टूटन में हुई। जिस बहू के बल पर दोनों बुजुर्ग बच्चों जैसी बेफिक्र जिंदगी

गुज़ार रहे थे उसी बहू को घर से निकाल देना था । अकसर अनुभवी आँखें भी एक स्त्री की निश्छलता पहचानने

में कितनी बुरी तरह असफल हो जाती हैं,विशेषकर तब, जब स्त्री दूसरे की बेटी हो । जब बेटे ने कहा,

“अगर ये यहाँ रही तो मैं अपनी जान दे दूंगा।“ तो बहू के खिलाफ बोला गया उसका हर झूठ क्षण भर में सच

में परिवर्तित हो गया ।अगर बहू बेटे में से किसी एक को चुनना ही था तो फिर बेटे को चुनना ही न्यायसंगत

था । किसी दूसरे की संतान के लिए अपनी संतान को छोड़ा नहीं जा सकता ।

ऐली का परिवार उसे स्वीकारेगा या नहीं ये सोचे बगैर ही हैरी के पिता ने उसे उसके गाँव छुड़वा दिया

। संभवतः हैरी के मन में ऐली के चाल - चलन को लेकर उतना संदेह न भी रहा हो जितनी कि एक स्त्री के

अपने पुरुष से अधिक प्रभावी, अधिक आत्मविश्वासी और कुशल होने की कसमसाहट थी । उसके अपने ही घर

में उसके एकाधिकार को चुनौती देने वाली,उसके आत्मविश्वास को डगमगा देने वाली स्त्री को वो दूर धकेल

देना चाहता था । आखिर ऐसी पत्नी का वो क्या करे जो उस पर कभी निर्भर ही न रहती हो । जब तक पत्नी

बात - बात में पति के आगे गिड़गिड़ाए नहीं, उससे कम आत्मविश्वासी और अल्प ज्ञानी होने का प्रमाण न देती

रहे, असहाय हो बात - बात में आँसू न बहाए, इधर – उधर की चुगली कर पति से दो चार झिड़कियाँ न खाए

तब तक हैरी जैसे पति के अहं को संतुष्टि कैसे मिलती ? उसे स्त्री का भाग्य विधाता होने का सुखद और

गौरवपूर्ण एहसास कैसे हो । उसकी लापरवाही के चलते घर के सारे के सारे महत्वपूर्ण काम ऐली को सौंप दिये

जाने से उसका रहा सहा आत्मविश्वास भी चकनाचूर हो गया था । असुरक्षा,अपमान की भावना मन की

भीतरी तहों तक घर कर गई थी कहीं।

ऐली जा चुकी थी अब हैरी को अपना घर, अपने लिए सुरक्षित लगा था । उन दोनों के झगड़े के विषय

में धीरेन्द्र को उसके क्लास मेट सूरज ने बताया था । ऐसा नहीं कि धीरेन्द्र ने हैरी को समझाने का प्रयास नहीं

किया था पर उसने ना समझने के लिए ही कमर कस रखी थी ।समझाया तो धीरेन्द्र ने ऐली को भी था ही ।

परंतु उसने यह कहकर बात खत्म कर दी थी कि , नहीं इतनी घटिया मानसिकता के साथ मैं किसी को नहीं

झेल सकती धीरेन्द्र ,किस - किस बात की, किस - किस रात की, कब - कब और कितनी सफाई देती रहूँगी मैं

उसे ज़िंदगी भर ? बात जायज थी। अतः ऐली ने अपनी तरफ से ही कोर्ट में याचिका डालकर हैरी से संबंध

विच्छेद कर लिया था । उसके तुरंत बाद हैरी ने अवन्तिका से विवाह कर लिया था । परंतु हैरी को उससे कोई

संतान नहीं हुई थी अतः उससे शायद यही बहाना लेकर मन मुटाव पाल लिया था उसने,ढाई तीन बरस से

अधिक नहीं चल सका था उनका साथ ।

तीसरा विवाह उसके माता पिता ने अपनी पसंद की किसी कम पढ़ी लिखी लड़की से कराया था, यह

सोचकर कि वह हैरी की हर बात मानेगी और दोनों बुज़ुर्गों की भी सेवा भली प्रकार करेगी । पर तीसरी पत्नी के

नाजो नखरे सबके सिर चढ़ कर बोले । रही तो वह भी निःसंतान ही । ऐली के बाद हैरी के दो - दो विवाह हो

जाने के बाद भी उसके निःसंतान रह जाने ने, ऐली पर लगे तथाकथित चरित्रहीनता के दोष को हैरी के परिवार

और समाज ने तो सत्यापित किया ही, ऐली के अपने नितांत करीबियों, जिनसे वह खुद पर विश्वास रखने की

आशा रख सकती थी, ने भी उसका साथ नहीं दिया । ऐली सच को सच साबित नहीं कर सकी थी अतः उसने

अपना पक्ष रखना ही छोड़ दिया। हैरी की तीसरी पत्नी ने निःसंतान होकर भी, त्रिया चरित्र से हैरी को अपने

रूप और यौवन का दास बनाकर अपनी उँगलियों पर नचाए रखा । पुराने नौकरों को लड़ - झगड़ कर भगा

दिया । गंवार कामचोर लड़कियों की तरह, काम करने के हर समय पर उसे सिर दर्द, हाथ दर्द, पैर या फिर पीठ,

पेट दर्द हुआ ।घर के काम की सारी ज़िम्मेदारी हैरी की बुढ़ाती बीमार माँ पर आन पड़ी। थके घुटनों की

लंगड़ाहट के साथ बहू बेटे के खाने की थालियाँ लगा - लगा कर उनके कमरे तक पहुंचाने का जिम्मा भी जीवन

संध्या की थकान से चूर उस बूढ़ी पर ही आन पड़ा । हैरी भी माँ की एक न सुनता हर वक्त उस बहाने बाज

पत्नी की ही तरफदारी करता । पहले जितना माँ के लिए ऐली पर चिल्लाता अब नई पत्नी के लिए माँ पर

उससे दुगुना चिल्लाता । स्त्री होकर भी ऐली की सच्चाई, ईमानदारी और मासूमियत को नकारने की यही माकूल

सज़ा थी हैरी की बूढ़ी माँ के लिए । बिजली के बिल, टेलीफोन बिल, इंस्यूरेंस के काम, ससुर की पेंशन दिला कर

लाने का काम, घर की टूट - फूट या कार सर्विसिंग के काम और बाज़ार के जिन कार्यों को ऐली मिनटों में

निपटा डालती , अब हैरी के बुढ़ाते पिता के थकते पाँव उन्हें करने में काँप - काँप जाते । शायद यही सज़ा ठीक

थी उन दोनों के लिए ऐली जैसी निश्छल, मासूम लड़की के सच को सच न मानने की ।

कार्यालय में विदेशी तकनीशियनों की विशेष मीटिंग की वजह से धीरेन्द्र की पत्नी तो नहीं आ सकी

हाँ वह अपनी दोनों बेटियों के साथ आया है । आज सोलह बरस के लंबे अंतराल के बाद सारे बैचमेट अपने -

अपने परिवार सहित एकत्र हुए हैं । हैरी और ऐली भी आए हैं, अलग - अलग । हैरी अपनी तीसरी पत्नी के

साथ आया है, और आज भी निःसंतान ही है । ऐली अपने जाने - पहचाने अंदाज़ में आई है , वो जरा भी तो

नहीं बदली । उसके चेहरे पर पूर्ण संतोष, गरिमा, आत्मविश्वास और प्रसन्नता का बरसों पुराना भाव यथावत है।

उसके साथ उसका किशोर पुत्र ,उसकी दस ग्यारह बरस की पुत्री और उसके फौजी पति कर्नल धर्मेश मलिक भी

आए हैं ।उसके पति धर्मेश मालिक उससे पहली बार अदालत में ही मिले थे हैरी से उसके तलाक की प्रक्रिया

के दौरान । तलाक का कारण पूछने पर साफ - साफ बताया था ऐली ने कि,

“उस रास्कल ने मेरी कोख में पल रहे बच्चे को अपना मानने से इंकार कर दिया । सब सहा, बस यह

नहीं सहा गया।“ कर्नल धर्मेश मलिक उसकी निर्भीकता और स्वाभिमान के मुरीद हो गए । उनका अदालत में

आने का कारण भी ऐली के कारण का ही साथी था । पत्नी की संकीर्णता ने जब जीवन दूभर कर दिया तो

उन्हें भी सड़ते सम्बन्धों का बंधन तुड़वाने कानून के दरबार में जाना पड़ा था । फिर तो कई बार ऐली से

अदालत के बाहर भी मिले और दोनों के तलाक के बाद जल्दी ही उसके सामने, अपने साथ आने का प्रस्ताव

रख दिया उन्होने , वैसे भी बहुत देर तक सोचने समझने का वक्त फौजी के पास होता कहाँ है ।जिस अदालत

में दोनों ने अपने – अपने मृत सम्बन्धों से छुटकारा पाया था उसी अदालत में आकर जल्दी ही अपने मध्य

एक जीवंत रिश्ते को साकार किया। कर्नल धर्मेश मालिक ने बच्चे सहित, सिर आँखों पर बैठा कर, ससम्मान

अपनाया था ऐली को ।

ऐली के पुत्र की अकल का तो पता नहीं पर शक्ल, कद काठी, और रंग यहाँ तक कि हंसने और चलने

का ढंग भी हूबहू हैरी के जैसे है, किसी डीएनए टेस्ट की आवश्यकता नहीं है उसे हैरी की संतान साबित करने

के लिए । हैरी के चेहरे पर इतनी हैरानी नहीं जितनी बेचैनी के साथ वो उसे अपलक देखे जा रहा है। क्योंकि

ऐली का निर्दोष होना तो वो तब भी लगभग जानता ही था । किसी से भी एकाग्र होकर बात नहीं कर पा रहा

वो । बार – बार कोई अदृश्य शक्ति उसे हूबहू अपने जैसे उस किशोर की ओर खींचे ले जा रही है , जिसे उसने

जन्म लेने से पहले ही बड़ी बेरहमी और बेशर्मी से अपना कहने से इंकार कर दिया था। वही नन्हा अब किशोर

हो गया था और आज मोहिनी मुस्कान उछाल - उछाल कर हैरी को पश्चाताप के नरक में धकेले जा रहा

था। हैरी पल भर भी तो स्थिर नहीं रह पा रहा , बेचैन होकर बार – बार हाथों को मल रहा है, कभी अपना

निचला होंठ दांतों से दबा रहा है तो कभी अपने नाखून काट रहा है । अपनी संतान को सामने देखकर, अभी

तक निःसंतान ही कहलाने का दर्द उसे वहाँ चैन से खड़ा रहने नहीं दे रहा । ऐली के चेहरे की पूर्ववत आभा उसे

विचलित करती हुई , जैसे सदा के लिए पराजित ही रह जाने का अभिशाप दे रही है । ऊपर से आयु के इस

पड़ाव पर अपनी ही कार्बन कॉपी सा, किशोरावस्था में ही अपनी ऊँचाई से भी ऊँचा होता अपना ही जवान

बेटा सामने देखकर भी उसे अपना नहीं कह पाने की विवशता उसे भीतर तक भेद रही है । अपनी गलती के

लिए उससे क्षमा भी न मांग पाने की कसमसाहट ,अब उसे जीवन भर पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ दे भी तो

नहीं सकेगी । परंतु अब पश्चाताप का भी कोई अर्थ नहीं, इतना तो वो ऐली को जानता ही है ।


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