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Poonam Singh

Abstract Drama

4.9  

Poonam Singh

Abstract Drama

"आत्म दीपो भव:"

"आत्म दीपो भव:"

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 ' इतनी सुबह फोन की घंटी..? भला किसकी हो सकती है ? नंबर भी कुछ अजीब सा दिख रहा है। फिर भी सोचा उठा कर देखती हूँ क्या पता किसी रिश्तेदार का हो ?

फोन उठाकर जैसे ही कान से लगाकर "हैलो" कहा कि ..उधर से किसी की रौबदार आवाज आई , "मै आपके इलाके के थाने से बोल रहा हूँ । आपके घर में काम करने वाली बाई हमारी हिरासत में है इसलिए आप लोगों को बयान देने के लिए अभी यहाँ आना पड़ेगा ।" इतना कहकर दूसरी तरफ से फोन काट दिया गया ।

सुनते ही मेरा माथा सुन्न हो गया। उसकी रौबदार आवाज सुनकर ही मेरे हाथ पाँव फुल गए थे । समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ ?

मैं घबराई हुई अपने बगल में सो रहे पति को जगाया और उनसे सारी बात एक ही साँस में कह डाली।

"क्या ...? " वो भी अर्धनिद्रा में सुन कर हड़बड़ा कर उठ बैठे और कहने लगे, "ये अचानक ऐसा क्या कर दिया कमला ने, कि पुलिस हिरासत में पहुँच गई ?" चिंता की लकीरें उनके चेहरे पर भी नाच उठीं लेकिन उन्होंने जल्द ही अपनी चिंता पर काबू पा लिया ।

अपने आपको संयत कर हम लोग जल्दी जल्दी तैयार होकर बोझिल कदमों से थाने की ओर चल दिये । थाना हमारे घर से नजदीक ही था सो हमने पैदल जाने का ही निश्चय किया । हमें मन ही मन बहुत घबराहट हो रही थी।

कुछ देर बाद हम दोनों थाने में पुलिस के एक अफसर के सामने बैठकर उसके उल्टे सीधे सवालों के अपनी जानकारी के अनुसार सही सही जवाब दे रहे थे । हमारे मन में अभी भी घबराहट बनी हुई थी और हम अभी तक यह नहीं जान पाए थे कि कमला को इन लोगों ने हिरासत में क्यों रखा हुआ है ? इस बाबत उस अफसर से पूछने की हमारी हिम्मत नहीं हो रही थी सो उसका विचार त्याग कर हमने सोचा क्यों न इस बारे में कमला से ही पूछ लिया जाए ? वह तो बिल्कुल सही सही बतायेगी कि आखिर हुआ क्या है ?

 फिर मैंने हिम्मत करके उस अफसर से कमला से मिलने देने का निवेदन किया । उस अफसर ने इजाजत तो दे दी लेकिन साथ ही यह हिदायत भी दिया ,"आप यही हमारे सामने ही मिल सकती हैं अकेले में नहीं । "  मैंने कहा " जी ! जैसा आप ठीक समझें ।"

मेरे इतना कहते ही उसने एक सिपाही को कमला को ले आने का आदेश दिया ।

थोड़ी देर में कमला स्थिर कदमों से मेरे पास आई ।उसके मुख पर उदासीनता जरूर थी किन्तु निर्भीकता के भाव को देखकर मुझे बड़ी राहत महसूस हुई । बिना कुछ कहे वह कुछ देर खामोश खड़ी रही । रह रहकर वह अफसर की तरफ देख लेती और फिर फर्श को घूरने लगती । उसकी मनोदशा को मैं समझ रही थी । मुझे लग रहा था कि वह मुझसे कुछ कहना चाहती है लेकिन उस अफसर की मौजूदगी से घबरा रही है । उसकी परेशानी को समझते हुए मैंने उस अफसर से निवेदन किया ," आप यदि इजाजत दें तो मैं थोड़ी देर आपके सामने ही उस कोने वाली बेंच पर बैठकर कमला से कुछ बात कर लूँ ? " कहने को तो मैंने कह दिया लेकिन खुद ही अंदर से घबरा गई थी । लेकिन शायद कमला की किस्मत अच्छी थी या वह अफसर अच्छा था मैं समझ नहीं सकी , मुझे उससे उस बेंच पर बैठ कर बात करने की इजाजत देते हुए उस अफसर ने एक बार फिर अपना पुलिसिया रौब झाड़ा था ," ठीक है ! लेकिन जरा जल्दी कीजिएगा ! ज्यादा वक्त नहीं होता हमारे पास ! बहुत काम होते हैं हमारे लिए । उसका शुक्रिया अदा कर मैं कमला को लेकर उस कोनेवाली बेंच की तरफ बढ़ गई जो कि उस जगह से लगभग बीस फीट की दूरी पर था।

कमला को उस बेंच पर बैठने का इशारा करके मैं खुद भी उसके बेहद करीब बैठ गई । वह थोड़ी डरी हुई लग रही थी सो प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखते हुए मैंने बड़े अपनेपन से कहा ," क्यों री कमला ! आखिर ऐसी क्या मुसीबत आन पड़ी थी कि तुझे ऐसा कदम उठाना पड़ा ..? " कुछ पल वह खामोश रही । उसकी खामोशी को देखते हुए मैंने स्वर में थोड़ा रोष का भाव भरते हुए उससे पुनः वही प्रश्न किया । मन ही मन मुझे उसपर खीज आ रही थी। फिर भी मैंने अपने आपको संयत करते हुए अपने स्वर में थोड़ी मिठास घोलते हुए कहा ," देख ! तू घबरा मत । मुझे सारी बातें सच सच बता । तभी तो मैं तेरी कुछ मदद कर पाऊँगी ? अब सारी बात मुझे विस्तार से बता.. घबरा मत।" मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा ।

नीचे ज़मीन पर अपनी नजरें गड़ाए हुए उसने मुझे जो बताया वह पुलिसकर्मी के कथन से बिल्कुल भिन्न था। 

"तू चिंता मत कर कमला ! हम तेरे साथ है। कुछ ना कुछ रास्ता जरूर निकलेगा ।" मैंने उसे ढाढस दिलाते हुए कहा । उसने बेबस उदासीन भरी नज़रों से मेरी ओर एक क्षण को देखा और फिर उठकर चली गई।

उसके जाने के बाद उस अफसर ने कमला के बारे में दिए गए हमारे बयान जो कि उसने एक रजिस्टर में दर्ज कर लिया था , उसपर हमारे हस्ताक्षर लेकर हमें घर जाने की इजाजत दे दी ।

मन ही मन ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हुए हम दोनों पति पत्नी थाने से बाहर निकले ।

रास्ते में मैंने अपने पति को कमला द्वारा कही गई सारा वृत्तांत कह सुनाया ।

"पर पुलिस का बयान तो कुछ और ही था।" मेरे पति ने आश्चर्य भरे शब्दों में कहा । 

"हाँ बिल्कुल ! दोनों के बयानों में बहुत भिन्नता है।" मैंने भी हामी भरी।

 पूरे रास्ते मेरे मन में उथल पुथल मची हुई थी ।समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ ? कमला कई वर्षों से मेरे यहाँ मुलाजिम थी। उसका हमारे घर के प्रति समर्पण और ईमानदारी को देखते हुए उस पर हमारे शक की कोई गुंजाइश ही नहीं दिख रही थी। हमें उसकी बात पर पूरा भरोसा था ।

मैंने अपने पति से उसकी मदद के लिए निवेदन किया ,"क्या हम कमला की कोई मदद नहीं कर सकते ? आखिर उसका हमारे सिवा इस दुनिया में है ही कौन जो उसकी मदद करे ?"

"अरे तुम भी कहाँ इस कोर्ट कचहरी और थाने के चक्कर में फंसने जा रही हो ! ऐसे मामलों में कानूनी पेचीदगियां बहुत रहती हैं । अच्छा ! तुम जल्दी से मेरे लिए एक कप चाय बना दो ! सर भारी हो रहा है। फिर सोचता हूँ कि हम कमला के लिए क्या कर सकते हैं ।? " उन्होंने नसीहत के साथ मेरे लिए एक आदेश भी सुना दिया ।

"हाँ अभी लाई।"  मै समझ गई थी कि ये ऐसा कह कर बात को टाल रहे हैं ।

कमला के हिरासत में चले जाने के बाद पूरे घर की जिम्मेदारी अब मेरे कंधों पर आन पड़ी थी । सुबह से शाम तक घर का सारा काम संभालना, रसोई से लेकर घर की हर जरूरत का ध्यान रखना , एक - एक चीज को साफ सुथरा करने से लेकर फूल पत्तियों की छंटाई , देखभाल, तथा मंदिर का एक-एक कोना झाड़ना पोंछना , पूजा पाठ करना इत्यादि नियमित रूप से सब चलता रहा। पर इन सब के बीच मुझे कमला की बरबस ही याद आ जाती। याद आ जाती उसकी इतने वर्षों की सेवा जिसने बड़े ही लगन से इस घर को अपने ममता भरे हाथों से सींचा था। उसका यही व्यवहार मेरी आत्मा को झकझोर रहा था। अपने आप पर झुंझलाहट होती , मन ही मन सोचती 'आखिर इस पूजा पाठ, ईश्वर की सेवा का क्या अर्थ , अगर मै किसी बेगुनाह को इंसाफ नहीं दिलवा पाई...? ' मेरा निरीह मन आशा की रोशनी तलाश रहा था । मैं दिलोजान से उसकी मदद करना चाहती थी लेकिन कैसे करूँ मुझे कुछ उपाय सूझ नहीं रहा था ।

थाने की हिरासत से अब उसे जिला जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था । इस बीच मैं कई बार कमला से मिली ।

उसकी दशा देख मन को बहुत तकलीफ होती। मुख पर तो जैसे निराशा के काले बादल ने अपना डेरा जमा लिया था।

इस बार जब मैं उससे मिली वो मुझे देखते ही फफक कर जोर से हिचकियां मार कर रोने लगी। उसका रुदन और कृशकाय शरीर उसके जीते जागते हालात की गवाही दे रहे थे।

"रो मत कमला ! देख.. तू कुछ छुपा मत। तेरी हालत कुछ ठीक नहीं लग रही आखिर हुआ क्या है..? जो भी तेरे साथ हुआ मुझे बता तभी तो मै तेरे लिए कुछ पर पाऊँगी ? " मैंने उसे विश्वास दिलाना चाहा था कि हम उसके साथ हैं ।

उसने हिम्मत जुटा कर जो बताया उसे सुनकर मेरी रूह काँप गई । उससे झूठी सच्चाई उगलवाने के लिए ना जाने उन कानून के रखवालों ने कौन कौन से हथकंडे अपनाए थे कि जिन्हें सुनकर मेरी रूह काँप गई। समय ने उस पर कितना निर्मम आघात किया था ।

बस अब और नहीं.. ! मैंने अपने अंतर्मन की आवाज़ सुनी और किसी भी तरह कमला की मदद करने का निर्णय कर लिया। उसे आश्वस्त करते हुए कहा ," बस जल्दी ही कुछ अच्छी खबर लेकर मिलती हूँ कमला ! विश्वास रखना मुझपर !" इतना कहकर बिदा हुई।

 मैंने पुलिस कमिश्नर को एक चिट्ठी लिख कर कमला के मामले की सही से तफ्तीश करने की गुजारिश की और साथ ही एक वकील भी नियुक्त किया। मेरे आत्मविश्वास को देखकर मेरे पति ने भी मेरी ओर सहायता का हाथ बढ़ाया।

" आप कमला के बारे में जो भी जानती है उसे मुझे विस्तार से बता दीजिए..!" वकील ने मुझसे कुछ और जानना चाहा था कमला के बारे में ।

"जी वकील साहब..! " आगे की कार्यवाही के लिए मैंने पूरा घटना क्रम जो मुझे कमला ने बताया था ज्यों का त्यों वकील को विस्तारपूर्वक कह सुनाया ,

"कमला का पति दूसरा विवाह करना चाहता था। जो कि उसे कतई मंजूर नहीं था। उसे अपने पति को खोने के भय के साथ-साथ बच्चों के भविष्य की भी फिक्र होती.. । इसी बात को लेकर हर रोज उन दोनों में बहस होती। घटना की रात शराब के नशे में उसके पति ने उसके साथ अमानवीय दुर्व्यवहार किया। दोनों में जमकर बहस हुई । अंततोगत्वा उसके पति ने उस पर किसी भारी वस्तु से प्रहार करने की कोशिश की लेकिन उसके प्रहार से खुद को बचाते हुए कमला ने क्रोध के आवेग में एक रौड उसके सिर पर दे मारा.. ! तेज प्रहार की वजह से उसका पति घायल होकर मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया । बस यही कहानी है वकील साहब ! बाकी आगे की पुलिस कार्यवाही तो आप जानते ही है। "

वकील साहब ने थोड़ा रुककर मुझे आश्वस्त करते हुए कहा , "कमला बच सकती है क्यों कि कमला का अपने पति पर हमला करने का मकसद साफ है । उसने अपनी आत्मरक्षा के लिए ही अपने पति पर हमला किया था । उसपर हमले के पीछे उसका कोई गलत मकसद नहीं था और इस आधार पर उसे इंसाफ मिलने की पूरी उम्मीद दिखती है। "

वकील साहब की बातों से मुझे कुछ आशा की किरण दिखी।

केस की सुनवाई शुरू हो गई एक- एक दिन मानो बरस के समान बीत रहा था। आसान नहीं था उन मार्मिक जज्बातों का कठोर संघर्ष और उसे एक सही मंजिल तक पहुँचाना। आखिर वो शुभ दिन आया..। महीनों के अथक मेहनत के पश्चात कमला को इंसाफ मिला।

हम सब संध्या काल में चाय की चुस्की ले रहे थे कि तभी बातों के सिलसिले के दौरान मेरे पति ने पूछा , "अब तुम खुश और संतुष्ट तो हो ना ..?"

 मैंने चाय का प्याला लिए हुए उनकी तरफ मुस्कुरा कर देखा और कहा ," हाँ....! बहुत खुश ! "

मेरे पति ने थोड़ा रुक कर फिर से पूछा "क्या सचमुच तुम्हें लगता है कि तुम पूर्ण संतुष्ट हो..?"

पति के इस तरह पूछने के आशय को मै समझ रही थी। मेरे मन में भी इस विषय को लेकर कुछ उथल पुथल मचा हुआ था और अपने कर्तव्य के अधूरेपन का अहसास हो रहा था । ना जाने मेरे मन पर कौन सी आशंकाओं का धुंध छाया हुआ था जो छंटने का नाम नहीं ले रहा था। ..शायद सामाजिक भय, या लोग क्या कहेंगे का डर ?? मेरा उद्विग्न मन एक सही दिशा तलाश रहा था।

"आरती ! " मेरे पति ने शून्य में आँखे गड़ाए हुए मुझे हल्की मधुर आवाज़ में पुकारा ।

"जी ...! " मैंने भी खोये हुए अंदाज़ में हुंकार भरी ।

"आत्म दीपो भव: ! "

मैंने उनकी तरफ शांत नज़रों से देखा और उनकी ये अंतर वाणी मेरी अंतरात्मा को छू गई ।

आखिरकार मैंने अपने अंतरात्मा की आवाज सुनी और फिर से कमला को अपने घर में शामिल कर लिया । अब मेरा मन शांत था और मन में एक सुखद अनुभूति से मैं आल्हादित थी । अब मुझे लग रहा था कमला को इंसाफ दिलाने का मेरा काम आज पूरा हुआ.। '



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