अक्स
अक्स
शिप्रा ने घड़ी की तरफ नजर दौड़ायी, सुबह के सात बजने वाले थे। उसने जल्दी से चाय खत्म की और ड्राइवर को गाड़ी निकालने के लिए कहा। अभी छुट्टियां चल रही थी और माँ कुछ दिनों के लिए उसके साथ छुट्टियाँ बिताने आ रही थी।
मां ने आते ही बेटी की सजायी गृहस्थी पर नजर डाली। घर को सलीके से सजा देख कर आश्वस्त हुई कि चलो देर से ही सही बेटी को घर सँवारना तो आ गया। शादी से पहले इसके बाबूजी के राज में तो वह पढ़ाई और सैर सपाटों में ही व्यस्त रहती थी। माँ के कहने सुनने का उस पर कोई असर नहीं होता था।
माँ ने आते ही उसकी बेटी नव्या को चाय बनाने के लिए कहा तो नव्या ने यह कहकर माँ को चाय बनाने से मना कर दिया कि उसे चाय बनानी नहीं आती।
माँ को उसमें अपनी बेटी शिप्रा का अक्स नजर आने लगा।
और शिप्रा की आँखों मे नजर आने लगी बेटी की गृहस्थी की चिंता और साथ ही नजर आने लगा माँ में अपना अक्स।