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Yogesh Suhagwati Goyal

Drama

5.0  

Yogesh Suhagwati Goyal

Drama

जड़ें मजबूत होना जरूरी है

जड़ें मजबूत होना जरूरी है

4 mins
16.3K


केलिफोर्निया के एक शहर सेन होजे में दो भारतीय परिवार रहते थे | विक्टर बनर्जी साहब को वहां रहते हुए ५० साल से भी ज्यादा हो गये थे, और बिक्रम चटर्जी को करीब साल भर हुआ था | दोनों परिवार आमने सामने के घरों में रहते थे और दोनों ही कलकत्ता के रहने वाले थे | काफी कुछ ऐसा था जिससे दोनों परिवार आपस में बहुत घुल मिल गये थे | बनर्जी साहब ६५ साल के एक अनुभवी बुजुर्ग थे | उनके परिवार में उनके अलावा पत्नी और बेटा थे | उनका बेटा एक बहुत ही समझदार और जमीन से जुड़ा हुआ लड़का था | ज़माने की बारीकियों से अच्छी तरह परिचित था | वो पास ही गूगल कम्पनी में कार्यरत था | बनर्जी साहब को दिखावा पसंद नहीं था | वो सादा जीवन बिताने में यकीन रखते थे |

बिक्रम चटर्जी ३२ साल के युवा थे | उनके परिवार में पत्नी और एक ६ साल का लड़का था | उनका लड़का थोडा नकचढ़ा और डिमांडिंग था | माँ बाप ने उसे बड़े नाजों से पाला था | जरूरत की हर चीज उसके पास थी, फिर भी वो कभी संतुष्ट नज़र नहीं आता था | चटर्जी साहब और उनकी पत्नी इस बात को लेकर परेशान रहते थे | एक दिन बातों बातों में उन्होंने इस बात का जिक्र बनर्जी साहब से किया | बनर्जी साहब की बुजुर्ग आँखों से कुछ भी छुपा हुआ नहीं था लेकिन सीधा और सच्चा कहना भारी पड सकता था | इसी बात को ध्यान में रख कर उन्होंने एक कहानी के माध्यम से अपनी बात समझाई |

कलकत्ता में रहने वाले एक बुजुर्ग बाज़ार से दो एक जैसे पौधे खरीद कर लाये | उन्होंने अपने बेटे से कहा कि एक पौधे को तुम लगाओ और उसकी देखभाल करो | दूसरे को मैं देखूँगा | दोनों अपने अपने तरीके से पौधों की देखभाल करने लगे | बेटा अच्छी से अच्छी खाद लगाता और रोज खूब पानी देता | बुजुर्ग सामान्य सी थोड़ी खाद लगाते और जरूरत के अनुसार थोडा २ पानी देते | दोनों पौधे पेड़ बन गये | बेटे का पेड़ एकदम हरा, चमकदार और मजबूत दिखता था | वहीँ बुजुर्ग का पेड़ आम पेड़ों की तरह मगर समृद्ध दिखता था |

एक दिन रात को जोर का अंधड़ आया और तेज बारिश हुई | अगले दिन सुबह देखा, तो बेटे का पेड़ उखड कर जमीन पर गिरा पडा था | वहीँ बुजुर्ग वाला पेड़ सीधा और मजबूत अपनी जगह पर खड़ा था | बेटे को बहुत आश्चर्य हुआ | उसने अपने पिताजी से पूछा, ऐसा क्यों और कैसे हुआ ? आप तो सब जानते हैं कि मैंने इसकी देखभाल कितनी अच्छे तरीके से की है | आंधी और बारिश में इस पेड़ का अपनी जगह से उखड़ना मेरी समझ से बाहर है |

उसके पिताजी बोले, बेटे, शायद तुमको मेरा जवाब सुनकर आश्चर्य होगा | लेकिन सच तो ये है कि इसके जिम्मेदार तुम हो | तुम्हारी देखभाल इस पेड़ को भारी पड गयी | तुमने इसको हर चीज जैसे खाद, पानी यहाँ तक कि देखभाल भी जरूरत से ज्यादा दी | बाहर से इसको इतना अधिक सहारा मिला, ये अपने आपसे कुछ भी करना नहीं सीख पाया | ये कभी अपने आपसे खड़ा ही नहीं हुआ | हमेश बाहर के सहारे पर पलता रहा | इसकी जड़ें जमीन से पानी खींचने के लिये जमीन में ज्यादा नीचे नहीं गयी |

तुम्हारे सामने ही मैंने अपने वाले पौधे को जरूरत के मुताबिक सबकुछ दिया लेकिन आवश्यकता से अधिक कभी नहीं दिया | इसी कारण इस पेड़ की जड़ें गहरी चली गयी | थोड़ी देखभाल के बावजूद भी, आंधी और बारिश इसका कुछ नहीं बिगाड़ पायी | ज़माने के थपेड़ों से बचने के लिये जड़ें मजबूत होना जरूरी है |

पौधों की देखभाल एकदम बच्चों के जैसे होती है | अगर जरूरत से कम पोषण दोगे तो वो मर जायेंगे | और जरूरत से अधिक पोषण दोगे तो वो कमजोर बन जायेंगे | बच्चो में अनुभव, विवेक और परिपक्वता के विकास के लिये पोषण का सही संतुलन जरूरी है |

चटर्जी साहब, आशा करता हूँ, आपको आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा |


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