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इंसानी बिच्छू

इंसानी बिच्छू

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बचपन से सब रति पर हँसते थे,चलती हुई ट्रेन जैसे उसके लिए नींद की दवा की तरह काम करती थी। आज भी ट्रेन के खुलने के थोड़ी देर बाद ही उसकी आँखे बोझल होने लगी और वो नींद के देवी के आगोश में चली गयी, एक खूबसूरत सपने के बीच उसे ऐसा लगा की उसके पैर पर बिच्छू रेंग रहा हो। बाप रे बिच्छू ! बचपन से ही उसकी तो जान जाती थी बिच्छू के नाम से। उसने झट से आँखे खोल ली । रात के इस पहर सेकंड क्लास के फूल ए.सी में भी वो पसीना पसीना हो गयी थी। उसने अपने पैर सिकोड़ कर,भूर्ण में सो रहे बच्चे सा कर लिया। दिमाग ने जागृत होकर गवाही दे दी थी की यह इंसानी बिच्छू है जो की हद से ज्यादा जहरीला होता है, बेचारे असली के बिच्छू तो इन्हें देखकर ही शर्मा जाते है। इंसानी बिच्छू का एक बार डंक मारकर मन नहीं भरा था उसने जैसे ही फिर से कोशिश की रति ने भी तब तक तैयारी कर ली थी उसने एक हाथ से अपनी साड़ी की पिन निकाली और दूसरे हाथ से मोबाइल की लाइट ऑन कर दी थोड़ी दूर पर अब इंसानी बिच्छू दर्द से से बिलबिला रहा था। रति उसके मुँह पर थूकते हुये बोली," मेरी नानी बचपन से समझाती आयी है बिच्छू को पास नहीं आने देना चाहिए, नहीं तो उसका जहर चढ़ जाता है।"


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