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कट्टी पापा

कट्टी पापा

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"सात समुंदर पार से गुड़ियों के बाजार से अच्छी सी गुड़िया लाना गुड़िया चाहे मत लाना पर पापा जल्दी आ जाना पापा जल्दी आ जाना" नन्हीं सलोनी शाम होते ही एकटक दरवाज़े को निहारती हुई रोज यह गीत गाती थी। शाम होते ही वह अक्सर उदास हो जाती थी। उसे अपने पापा की बहुत याद आती थी। उसके पिता नौकरी के सिलसिले से दो चार साल के लिए विदेश गए थे। माँ भी नौकरी करती थी। उसकी देख रेख दिन भर नाना-नानी किया करते थे। और शाम को जब भी मैं ऑफ़िस से आती तो उसे अपने घर ले जाती थी।

अब घर में दो ही जने थे माँ और बेटी। माँ हर संभव कोशिश करती थी कि उसे पिता की याद ना आए। पर 9:00 बजते ही उसकी खुशी देखते ही बनती थी । क्योंकि रोज 9:00 बजे उसके पापा का फोन आता था। पापा से ढेर सारी बातें पर माँ को तो फोन देती ही नहीं थी। फोन पर बातें करते-करते सो जाती थी। यही उसके रोज की आदत थी पापा से बात किए बिना सोती ही नहीं थी। आज 9:00 बज चुके थे फोन की बेल नहीं बजी वह बेचैनी से बार-बार फोन को ताक रही थी माँ ने समझाया। "पापा किसी जरूरी काम में लगे होंगे काम खत्म होने पर फोन कर देंगे।" तो बोली "मम्मा मुझसे भी जरूरी है कोई काम। पहले तो हमसे इतनी दूर विदेश में बैठे हैं और फोन पर भी बात नहीं कर सकते अब मैं आपसे कभी बात नहीं करूंगी सच में "कट्टी पापा"


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