इण्डियन फ़िल्म्स 2.12
इण्डियन फ़िल्म्स 2.12
उपसंहार
मैं तोन्या नानी के साथ देर शाम को, करीब-करीब रात ही को समर कॉटेज से लौट रहे हैं। जून का महीना है। अंधेरा होने लगा है, हालाँकि इस समय सबसे लम्बे दिन होते हैं। गंधाती नदी को पार करके पहाड़ी से नीचे उतरते हैं और देखते हैं कि हमसे मिलने नानू आ रहे हैं, जो घर पे नहीं रुक सके, क्योंकि परेशान हो रहे थे: ख़बरों के प्रोग्राम ‘व्रेम्या’ में घोषित किया गया था, कि सबसे भयानक तूफ़ान आ रहा है। नानू ने कई बार कहा, कि हम पगला गए हैं, वर्ना ग्यारह बजे तक बगिया में न बैठे रहते, और जैसे ही नानी उन्हें जवाब देती, वो तूफ़ान आ ही गया। बिजली, कड़कड़ाहट, तूफ़ान, हर चीज़ थरथरा रही थी, और मुझे डर भी लग रहा था और ख़ुशी भी हो रही थी, और एक सेकण्ड बाद हमारे बदन पर कुछ भी सूखा नहीं बचा था।
मिलिट्री एरिया की संकरी पगडंडियों से होकर हम एक झुण्ड में भागते हैं; तोन्या नानी और नानू ठहाके लगा रहे हैं, ये देखकर कि मैंने कैसे अपनी सैण्डल्स उतारीं और मोज़े भी उतार दिए और डबरों में छप्-छप् कर रहा हूँ, और उन्हें हँसाने में मुझे खुशी भी हो रही है; मैं डान्स करने लगता हूँ और ज़ोर-ज़ोर से “डिस्को डान्सर” का अपना पसंदीदा गाना गाने लगता हूँ: “गोरों की ना कालों की-ई-ई! दुनिया है दिलवालों की। ना सोना-आ! ना चांदी-ई! गीतोंसे-ए, हम को प्या-आ-आ-र!!!” (गीत का मतलब इस तरह है – चाहे खाने-पीने के लिए हमारे पास पैसा न हो, मगर आज़ादी और गीत – यही मेरी दौलत है)। जब हम अपने कम्पाऊण्ड में आ जाते हैं, तब भी मैं गाता रहता हूँ, मगर इतनी ज़ोर से, कि पडोसी भी खिड़कियों से झाँकने लगते हैं; मगर मुझे इससे कोई फ़रक नहीं पड़ता – बल्कि और ज़्यादा गाने और डान्स करने का मन करता है।
घर में हम यूडीकलोन से नहाएँगे, जिससे कि बाद में बीमार न हो जाएं, फिर हम पैनकेक्स खाएँगे, जिन्हें बनाने का परनानी नताशा ने सुबह ही वादा किया था, और कल होगा सण्डे, व्लादिक आएगा और हम पढ़ाई के अलावा कुछ और चीज़ के बारे में सोचेंगे, जैसे बौनों का बिज़नेस करना या नॉवेल्स लिखना।
और कुछ महीनों बाद मैं हमेशा के लिए स्मोलेन्स्क से चला जाऊँगा, जहाँ ये सब हुआ था, जिसके बारे में मैंने आपको बताया है। एक नई ज़िंदगी शुरू होगी, नए हीरोज़ के साथ, नए कारनामों के साथ, जिनके बारे में मैं यहाँ नहीं बताना चाहता, क्योंकि उनके लिए दूसरी किताब की ज़रूरत है। हो सकता है, वो ज़्यादा गंभीर, ज़्यादा दुखी हो। और ये वाली, अगर ये हँसाने वाली, ख़ुशी देने वाली बनी हो, तो इसे यहीं ख़तम करना अच्छा है। उम्मीद करूँगा, कि दुबारा ऐसा वक्त आएगा, जब हम ख़ुशी-खुशी सिनेमा थियेटर्स में जाएँगे और इण्डियन फिल्म्स देखेंगे। तब मैं नए इण्डियन एक्टर्स से भी उसी तरह प्यार कर सकूँगा, जैसे मैंने मिथुन चक्रवर्ती और अमिताभ बच्चन से किया था, और फिर से बारिश में नंग़े पैर डान्स करते हुए, इण्डियन गाने गाऊँगा, पड़ोसियों को अचरज से अपनी-अपनी खिड़कियों से बाहर झाँकने दो और आश्चर्य करने दो – उसी तरह, जैसे कई साल पहले हुआ था।