अवलंबन
अवलंबन
मैं यहीं तुम्हारे आसपास रहूँगा .. लेकिन अब तुम सबको मेरे बिना ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी होगी ।" एक दर्दभरी मर्दानी आवाज़ वातावरण में गूँजी ।
"नहींईईई...." एक भयंकर चीत्कार वहाँ की नीरवता को भेदते हुए आसमान तक को कम्पा गया था ।"इस तरह हमें अकेला छोड़कर कैसे जा सकते हो तुम ? तुमने कितने वादे किए थे साथ-साथ जीने मरने के ,कैसे भूल गए ? "
"जब तुम अपनी बलिष्ठ भुजाओं को फैलाकर अपने आग़ोश में भर लेते थे तब जीवन का कोई भी संताप छू नहीं पाता था ।
आंधी-तूफान , सर्दी-गर्मी जीवन के हर पड़ाव पर तुम साथ खड़े थे । "
"मैंने मेरा परिवार भी तुम्हारे ही भरोसे बढ़ाया जिसके संरक्षक का उत्तरदायित्व तुमने बखूबी निभाया ।" गला भर्राई हुई एक कोमल आवाज़ आई ।
"केवल मैंने ही तुम्हें आश्रय नहीं दिया, बदले में तुमने भी कितना कुछ किया है मेरे लिए..
तुम्हारे ही सानिध्य से मैं पोषित , पल्लवित और फलित हुआ हूँ ..
बच्चों की धमाचौकड़ी और हँसी जब मेरे घर -आंगन में गूँजती थी तब मैं भी हराभरा हो जाता था क्योंकि यही मेरे लिए संजीवनी थी .." कराहते हुए फिर वही आवाज़ अंतिम बार गूँजी ।
"आज तुम्हारी लाश पड़ी है लहूलुहान ,
इस इंसान को न याद आई तुम्हारी ठंडी कोमल छांव ।"
" उसने कुल्हाड़ी से तुम्हारे ऊपर प्रहार नहीं किया बल्कि अपने पाँवों पर किया है ।"
" तुम्हारे बिना मुझे नहीं पता अब मेरी प्रजाति भी कब लुप्त हो जाए ?"
कहते हुए विरहणी चिड़िया ने भी दम तोड़ दिया ।