Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

चर्चा: मास्टर और मार्गारीटा-5

चर्चा: मास्टर और मार्गारीटा-5

12 mins
171


सारा मामला ग्रिबोयेदोव में ही था

ग्रिबोयेदोव भवन का, जहाँ मासोलित का कार्यालय स्थित था, विस्तार से वर्णन किया गया है। बुल्गाकोव बताते हैं कि इस भवन में क्या क्या होता था।

मॉसोलित ग्रिबोयेदव में इस तरह स्थित था कि उससे अच्छा और आरामदेह विकल्प कोई और हो ही नहीं सकता था। ग्रिबोयेदव में आने वाले हर व्यक्ति को, इच्छा न होते हुए भी, विभिन्न खेल मण्डलियों के विज्ञापनों को और मॉसोलित के सदस्यों के सामूहिक तथा व्यक्तिगत फोटो को देखना ही पड़ता था, जिनसे इस भवन की दूसरी मंज़िल को जाने वाली सीढ़ियों की दीवारें सुसज्जित थी। दूसरी मंज़िल के पहले ही कमरे के दरवाज़े पर लिखा हुआ था, ‘मछली-अवकाश विभाग’ वहीं जाल में फँसी लाल पंखों वाली बड़ी-सी मछली का चित्र भी लगा था । दूसरे नम्बर के कमरे के दरवाज़े पर कुछ-कुछ समझ में न आने वाली बात लिखी थी : ‘एक दिवसीय सृजनात्मक यात्रा पास। एम।वी। पद्लोझ्नाया से मिलें’अगले दरवाज़े पर एक छोटी-सी किन्तु बिल्कुल ही समझ में न आने वाली इबारत थी। फिर ग्रिबोयेदव में आए व्यक्ति की नज़रें बुआजी के घर के अखरोट के मज़बूत दरवाज़े पर लटकी तख़्तियों पर घूमने लगतीं। ‘पक्लोव्किना से मिलने के लिए यहाँ नाम लिखाइए’, ‘टिकट-घर’, ‘चित्रकारों का व्यक्तिगत हिसाब।

नीचे की मंज़िल पर लगी बहुत लम्बी क़तार के ऊपर से, जिसमें हर मिनट लोगों की संख्या बढ़ती जा रही थी, वह तख़्ती देखी जा सकती थी, जिस पर लिखा था : ‘क्वार्टर-सम्बन्धी प्रश्न' ‘क्वार्टर-सम्बन्धी प्रश्न’ के पीछे एक शानदार पोस्टर देखा जा सकता था। उसमें एक बहुत बड़ी चट्टान दिखाई गई थी। चट्टान के किनारे-किनीरे नमदे के जूते पहने, कन्धों पर बर्छा लिए एक नौजवान चला जा रहा था। नीचे लिण्डन के वृक्ष और एक बालकनी। बालकनी पर एक नौजवान परों का टोप पहने, कहीं दूर साहसी आँखों से देखता हुआ, हाथ में फाउंटेन पेन पकड़े हुए। इस पोस्टर के नीचे लिखा था : ‘सृजनात्मक कार्यों के लिए पूरी सुविधाओं सहित छुट्टियाँ – दो सप्ताह से (कथा – दीर्घकथा) एक वर्ष (उपन्यास – तीन खण्डों वाला उपन्यास) तक, याल्टा, सूकसू, बोरावोये, त्सिखिजिरी महिंजौरी, लेनिनग्राद (शीतमहल)’। इस दरवाज़े के सामने भी लाइन लगी थी, मगर बहुत लम्बी नहीं, क़रीब डेढ़ सौ व्यक्ति होंआगे, ग्रिबोयेदव भवन के हर मोड़ पर, सीढ़ी पर, कोने पर कोई न कोई तख़्ती देखी जा सकती थी। मॉसोलित निदेशक : टिकट घर नं। 2,3,4,5।; सम्पादक मण्डल, मॉसोलित अध्यक्ष, बिलियर्ड कक्ष, विभिन्न प्रकार के प्रशासनिक कार्यालय। और अंत में वही स्तम्भों वाला हॉल जहाँ बुआ जी अपने बुद्धिमान भतीजे की हास्यपूर्ण रचना का आस्वाद लिया करती थीं।

ग्रिबोयेदव में आने वाला हर व्यक्ति, यदि वह बिल्कुल ही मूर्ख न हो, सहजता से अनुमान लगा सकता था कि मॉसोलित के भाग्यशाली सदस्य कितना शानदार जीवन बिता रहे हैं, और तत्क्षण ईर्ष्या की एक काली छाया उस पर हावी होने लगती थी। फ़ौरन ही वह आकाश की ओर दुःखभरी नज़र डालकर उस परमपिता परमात्मा को कोसने लगता था कि उसने उसे कोई भी साहित्यिक योग्यता क्यों नहीं प्रदान की, जिसके बिना मॉसोलित के भूरे, महँगे चमड़े से मढ़े, सुनहरी किनारी वाले पहचान-पत्र का स्वामी होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, जिससे मॉस्को के लगभग सभी लोग परिचित थे। ईर्ष्या के बारे में कोई क्या कह सकता है? यह एक बुरा गुण है, मगर फिर भी अतिथि की दृष्टि से देखना होगा। जो कुछ भी उसने ऊपर की मंज़िल पर देखा है, वही और केवल वही सब कुछ नहीं था। बुआ जी के मकान की पूरी निचली मंज़िल एक रेस्तराँ ने घेर रखी थी, वह भी कैसा रेस्तराँ! सच कहा जाए तो यह मॉस्को का सबसे बढ़िया रेस्तराँ था। न केवल इसलिए कि वह लम्बी अयालों वाले घोड़ों के चित्रों से सुसज्जित कमानीदार छत वाले दो हॉलों में स्थित था, न केवल इसलिए कि उसकी हर टेबल पर सुन्दर ढक्कन वाला लैम्प था, न केवल इसलिए कि सड़क से गुज़रने वाला हर आदमी वहाँ प्रवेश नहीं पा सकता था, बल्कि इसलिए कि उसमें प्राप्त होने वाली हर वस्तु बहुत बढ़िया किस्म की होती थी और इस बढ़िया वस्तु के लिए कीमत भी एकदम वाजिब। मासोलित के सदस्यों को हरसम्भव बेहतरीन सुविधाएँ प्रदान करना, जिनमें शामिल था बेहतरीन खाना, लेखकों की बस्ती पेरेलीगिनो में आवास प्रदान करना, साहित्य की रचना करने के लिए मुफ्त यात्रा एवम् अवकाश।।।संक्षेप में ये वो जगह थी जहाँ प्रोलेटेरियन लेखकों का ‘पालन-पोषण’ किया जाता था। उन्हें समाज से दूर रखा जाता था और उनकी बेहतरीन आवभगत की जाती थी। मासोलित का पहचान-पत्र रखना बड़े गर्व की बात समझी जाती थी।

आइए, अब कुछ और चीज़ों की ओर चलते हैं:

इस भवन को ग्रिबोयेदोव का नाम क्यों दिया गया? बुल्गाकोव कहते हैं कि यह घर प्रख्यात लेखक ग्रिबोयेदोव की बुआ का था और वह अपने नाटक ‘बुद्धि से दुर्भाग्य’ के अंश इस बुआ को पढ़कर सुनाया करता था, जो स्तम्भों वाले हॉल में सोफे पर पड़े-पड़े उन्हें सुना करती थी। मगर बुल्गाकोव फौरन ही अपने इस कथन को नकार देते हैं और कहते हैं, “हमें मालूम नहीं कि ग्रिबोयेदोव की कोई ऐसी बुआजी भी थीं जो इतने विशाल प्रासाद की मालकिन थीं,” और आगे कहते हैं, “ऐसी कोई बुआजी थीं या नहीं, हमें मालूम नहीं।।।वह अपने नाटक के अंश उन्हें पढ़कर सुनाया करता था या नहीं, हम विश्वास के साथ नहीं कह सकते।।।हो सकता है उसने पढ़े हों, हो सकता है, नहीं भी पढ़ेहों। , यह भी उस प्रसंग जैसा है जब बेर्लिओज़ प्रोफेसर से कहता है कि हालाँकि उसकी कहानी है तो बड़ी दिलचस्प मगर वह पवित्र बाइबल में दिए गए प्रसंग से मेल नहीं खाती।।।पाठक को फौरन यह आभास हो जाता है कि येशुआ – पोन्ती पिलात प्रसंग वास्तविक ईसा के बारे में नहीं हैयही बात यहाँ भी है।

मगर फिर ‘ग्रिबोयेदोव’ क्यों? जिस बिल्डिंग का ज़िक्र हो रहा है, वह वास्तव में है ‘गेर्त्सेन-भवन’।।। बुल्गाकोव ने इसे ग्रिबोयेदोव-भवन का नाम दे दिया। फिर वही बात: बुद्धि से / विचार प्रक्रिया से सम्बन्धित। ग्रिबोयेदोव के नाटक ‘बुद्धि से दुर्भाग्य’ में इस बात का वर्णन है कि किस प्रकार एक पढ़ा-लिखा/ बुद्धिमान/ तर्कपूर्ण विचार करने वाला नौजवान अनपढ़ लोगों के समाज में दुख पाता है।यहाँ यही बात बुल्गाकोव के तत्कालीन समाज (साहित्यिक समाज) पर लागू होती है।

तो, इवान बेज़्दोम्नी ग्रिबोयेदोव भवन पहुँचता है प्रोफेसर की तलाश में।।।

वहाँ बारह लेखक (बारह शिष्य!) मीटिंग के लिए बेर्लिओज़ का इंतज़ार कर रहे हैं।।।एक छोटे, उमस भरे कमरे में और बेर्लिओज़ को देर करने के लिए कोसते हुए अपनी खीझ उतारते हैंजब बेर्लिओज़ पत्रियार्शी पर मर गया, उस रात साढ़े ग्यारह बजे, ग्रिबोयेदव की ऊपरी मंज़िल पर सिर्फ एक ही कमरे में रोशनी थी। वहाँ क़रीब बारह साहित्यकार मीटिंग के लिए ठँसे हुए थे और मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच का इंतज़ार कर रहे थे। मेज़ों, कुर्सियों और दोनों खिड़कियों की देहलीज़ पर बैठे इन लोगों का मॉसोलित के प्रबन्धक के कमरे में गर्मी और उमस के मारे दम घुटा जा रहा था। खुली खिड़कियों से ताज़ी हवा की एक छोटी-सी लहर भी प्रवेश नहीं कर पा रही थी। मॉस्को दिन भर की सीमेंट के रास्तों पर जमा हुई ऊष्मा को बाहर निकाल रहा था और यह स्पष्ट था कि इस गर्मी से रात को कोई राहत नहीं मिलेगी। बुआजी के घर के तहख़ाने में स्थित रेस्तराँ के रसोई घर से प्याज़ की ख़ुशबू आ रही थी। सभी प्यासे, घबराए और क्रोधित थे।

शांत-व्यक्तित्व कथाकार बेस्कुदनिकोव ने सलीके से कपड़े पहन रखे थे। उसकी आँखें हर चीज़ को ध्यानपूर्वक देखती थीं, मगर जिनका भाव किसी पर प्रकट नहीं होता था। उसने घड़ी निकाली। सुई ग्यारह के अंक पर पहुँचने वाली थी। बेस्कुदनिकोव ने घड़ी के डायल पर ऊँगली से ठक-ठक किया और उसे पास ही मेज़ पर बैठे कवि दुब्रात्स्की को दिखाया। वह व्याकुलता से अपनी टाँगें हिला रहा था। उसने पीले रबड़ के जूते पहन रख “सचमुच”, दुब्रात्स्की बड़बड़ाया 

“पट्ठा शायद क्ल्याज़्मा में फँस गया है,” भारी आवाज़ में नस्तास्या लुकिनीश्ना नेप्रेमेनोवा ने कहा।

नस्तास्या मॉस्को के एक व्यापारी वर्ग की अनाथ बेटी थी, जो लेखिका बन गई थी और ‘नौचालक जॉर्ज’ के उपनाम से समुद्री बटालियन सम्बन्धी कहानियाँ लिखा करती थी 

“माफ़ करें!” लोकप्रिय स्केच लेखक जाग्रिवोव ने बेधड़क कहा, “मैं तो यहाँ उबलने के बजाय बाल्कनी में चाय पीना पसन्द करता। सभा तो दस बजे होने वाली थी न? 

 “इस समय क्ल्याज़्मा में बड़ा अच्छा मौसम है।।।” नौचालक जॉर्ज ने सभी उपस्थितों को उकसाते हुए कहा। वह जानती थी कि साहित्यकारों की देहाती बस्ती पेरेलीगिनो क्ल्याज़्मा में है, जो सभी की कमज़ोरी है। “शायद अब कोयल ने भी गाना शुरु कर दिया होगा। मुझे तो हमेशा शहर से बाहर ही काम करना अच्छा लगता है, ख़ासतौर से बसंत में।” 

“तीन साल से पैसे भर रहा हूँ, ताकि गलगण्ड से ग्रस्त अपनी बीमार पत्नी को इस स्वर्ग में भेज सकूँ, मगर अभी दूर-दूर तक आशा की कोई किरण नहीं नज़र आती,” ज़हर बुझे और दुःखी स्वर में उपन्यासकार येरोनिक पप्रीखिन ने कहा।

 “यह तो जिस-तिसका नसीब है,” आलोचक अबाब्कोव खिड़की की देहलीज़ से भनभनाया।

नौचालक जॉर्ज की आँखों में ख़ुशी तैर गई। वह अपनी भारी आवाज़ को थोड़ा मुलायम बनाकर बोली, “मित्रों।।।, हमें ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। उस देहाती बस्ती में हैं केवल बाईस घर और सिर्फ सात और नए घर बनाए जा रहे हैं, और हम मॉसोलित के सदस्य हैं तीन हज़ार।"

 “तीन हज़ार एक सौ ग्यारह,” कोने से किसी ने दुरुस्त किया। 

“हूँ, देखिए” - नौचालक ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “क्या किया जाए? ज़ाहिर है कि देहाती घर हममें से सबसे योग्य व्यक्तियों को ही मिले हैं।।।”

 “जनरलों!” सीधे-सीधे झगड़े में कूदता हुआ नाट्य कथाकार ग्लुखारेव बोला।बेस्कुदनिकोव कृत्रिम ढंग से जँभाई लेता हुआ कमरे से बाहर निकल गया।

 “पेरेलीगिनो के पाँच कमरों में एक अकेला!” उसके जाते ही ग्लुखारेव ने कहा।

 “लाव्रोविच तो छह कमरों में अकेला है,” देनिस्कीन चिल्लाया, “और भोजनगृह में पूरा शाहबलूत का फर्नीचर है!”

 “ऐ, इस समय बात यह नहीं है,” अबाब्कोव भिनभिनाया, “बात यह है कि साढ़ ग्यारह बज चुके हैं।”अचानक शोर सुनाई दिया, शायद कुछ आदमियों में लड़ाई हो रही थी। घृणित पेरेलीगिनो में लोग फोन करने लगे, फोन की घण्टी किसी और घर में बजी, जहाँ लाव्रोविच रहता था; पता चला कि लाव्रोविच नदी पर गया है, और यह सुनकर सभी को बड़ा गुस्सा आया। फिर यूँ ही ललित कला संघ में एक्सटेंशन नम्बर 930 पर फोन किया गया, मगर, ज़ाहिर है, वहाँ से किसी ने जवाब नहीं दिया।

 “वह कम से कम फोन तो कर ही सकता था,” देनीस्किन, ग्लुखारेव और क्वांत चिल्लाए।

और जब ग्रिबोयेदोव का प्रसिद्ध ‘जाज़’ आरम्भ हो जाता है, तो वे कुछ खाने के लिए नीचे आ जाते हैं। अचानक बेर्लिओज़ की मृत्यु की खबर फैल जाती है। जाज़ रुक जाता है, लोग कुछ समय के लिए खाना और पीना बन्द कर देते हैं, मगर धीरे-धीरे फिर से शुरू हो जाते हैं, यह कहते हैं हम कर भी क्या सकते हैं? वोद्का क्यों फेंकी जाए? वह मर गया मगर हम तो ज़िन्दा हैं और ज़िन्दा रहने के लिए हमें खाना पीना तो पड़ेगा ही। एक कड़वा सच!

ग्रिबोयेदोव भवन के मैनेजर की ओर ध्यान दीजिए। बुल्गाकोव कहते हैं और फौरन अपनी बात को नकार भी देते हैं कि पूर्व में वह एक समुद्री डाकू था! मगर उन लोगों की पृष्ठभूमि पर गौर करना दिलचस्प होगा जो सर्वहारा साहित्य की रचना कर रहे हैं / सर्वहारा वर्ग के लेखकों का संरक्षण कर रहे हैं।

।।।और इस नरक में आधी रात को एक भूत दिखाई दिया। काले बालों और छुरी के समान दाढ़ी वाला एक युवक बरामदे में आया। उसने पल्लेदार कोट पहन रखा था। बरामदे पर आकर उसने शाही नज़र से अपनी इस सम्पदा को देखा। रहस्यवादी कहते हैं, कि एक समय था जब यह नौजवान पल्लेदार कोट नहीं पहना करता था, बल्कि चमड़े का चौड़ा कमरबन्द उसकी कमर पर कसा रहता था, जिसमें से पिस्तौलों के हत्थे नज़र आया करते थे। उसके कौए के परों जैसे बाल लाल रेशमी रुमाल से बँधे होते थे और उसकी आज्ञा से कराईब्स्की समुद्र में दो मस्तूलों वाला व्यापारिक जहाज़ चलता था, जिसके काले झण्डे पर आदम का सिर बना हुआ था

मगर नहीं, नहीं! ये रहस्यवादी बिल्कुल बकवास करते हैं, झूठ बोलते हैं, दुनिया में कहीं भी कराईब्स्की नामक समुद्र है ही नहीं, और उस पर व्यापारिक जहाज़ भी नहीं चलते थे, न ही उनका पीछा तीन मस्तूलों वाले जहाज़ किया करते थे, न ही गोला-बारूद का धुँआ पानी के ऊपर तैरा करता था। नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं था, बिल्कुल नहीं था। बस यही पुराना, मरियल-सा सुगन्ध वाला छायादार पेड़ है। उसके पीछे लोहे की जाली और जाली के पीछे तरुमण्डित रास्ता।।।और फूलदानी में बर्फ तैर रही है, और पड़ोस की मेज़ पर शराब के नशे से खून जैसी लाल हुई जानवरों जैसी आँखें दिख रही हैं, और डरावना-डरावना-सा।।।हे भगवान।।।मेरे देवता, इससे बेहतर तो ज़हर ही होगा, मुझे वही दे दो।

हास्यास्पद पोषाक में इवान को ग्रिबोयेदोव भवन में ईसा की तस्वीर और जलती हुई मोमबत्ती लिए प्रवेश करते देखकर लोगों की क्या प्रतिक्रिया होती है इस पर गौर कीजिए। गौर कीजिए कि मैनेजर आर्चिबाल्द आर्चिबाल्दोविच इवान को इस हालत में ग्रिबोयेदोव भवन में घुसने देने के लिए चौकीदार को किस तरह डाँटता है;

जब तक कर्मचारियों ने तौलियों से कवि को बाँधा, नीचे कोट रखने की जगह पर चौकीदार और कमाण्डर के बीच इस तरह की बातचीत हुई :

 “तुमने देखा कि वह सिर्फ कच्छे में है?” ठण्डी आवाज़ में उसने पूछा। “हाँ, आर्चिबाल्द आर्चिबाल्दोविच!” संकोच से सिकुड़ते हुए चौकीदार ने उत्तर दिया, “मगर मैं उन्हें अन्दर जाने से कैसे रोक सकता था, अगर वे मॉसोलित के सदस्य हैं?”

 “तुमने देखा कि वह कच्छे में था?” कमाण्डर ने फिर दोहराया।

 “क्षमा करें आर्चिबाल्द आर्चिबाल्दोविच,” लाल पड़ते हुए चौकीदार बोला, “मैं क्या कर सकता था? मैं ख़ुद भी समझता हूँ कि बरामदे में महिलाएँ बैठी हैं।।।

 “महिलाओं का यहाँ कोई काम नहीं, महिलाओं को इससे कुछ फरक नहीं पड़ता,” कमाण्डर चौकीदार को आँखों से भस्म करते हुए बोला, “मगर पुलिस को इससे फरक पड़ता है! कच्छा पहना आदमी मॉस्को की सड़कों पर तभी घूम सकता है, जब उसे पुलिस पकड़कर ले जा रही हो, और वह भी जब उसे पुलिस थाने ले जाया जा रहा हो! और तुम्हें, अगर चौकीदार हो, तो यह मालूम होना चाहिए कि ऐसे आदमी को देखने के बाद, एक क्षण की भी देरी किए बिना, सीटी फूँकना शुरू कर देना चाहिर। तुम सुन रहे हो?"

आधे पागल-से हो गए चौकीदार ने अन्दर बरामदे से ऊई।।।ऊई।।।की आवाज़ें, प्लेटों के फेंके जाने की और औरतों के चीखने की आवाज़ें सुनीं “तो, इसके लिए तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाए?” कमाण्डर ने पूछा।

चौकीदार के चेहरे का रंग टाइफाइड के मरीज़ के रंग जैसा हो गया। आँखें मृतप्राय हो गईं। उसे महसूस हुआ कि काले, ढंग से कंघी किए बाल, आग से घिर गए हैं। कोट गायब हो गया। कमर से बंधे बेल्ट से पिस्तौल का हत्था प्रकट हो गया है। चौकीदार ने अनुभव किया कि वह फाँसी के फन्दे पर लटका है। अपनी आँखों से उसने अपनी जीभ बाहर को निकली देखी। अपना प्राणहीन सिर कन्धे पर लटका देखा। उसे लहरों की आवाज़ भी सुनाई दी। चौकीदार के घुटने काँपने लगे। मगर तभी कमाण्डर ने उस पर दया दिखाई और अपनी जलती आँखों को बुझा लिया “देखो, निकोलाय! यह आख़िरी बार कह रहा हूँ, हमें तुम जैसे चौकीदारों की ज़रा-सी भी ज़रूरत नहीं है। तुम चर्च के चौकीदार बन जाओ !” इतना कह कर कमाण्डर ने शीघ्र, स्पष्ट, ठीक-ठीक आज्ञा दी, “जलपान गृह से पन्तेलेय को बुलाया जाए। पुलिस रिपोर्ट। गाड़ी – पागलखाने ले जाया जाए,” और आगे बोला, “सीटी बजाओ।"

उस फूले-फूले चेहरे पर भी गौर कीजिए जो इवान के ठीक कान में पुचकारते हुए उससे रहस्यमय प्रोफेसर का नाम पूछता है। कवि ऋयुखिन की ओर भी"गौर फरमाइए।

ऋयुखिन के बारे में अगले अध्याय में।

इस अध्याय के समाप्त होते होते इवान को तौलियों में लपेटकर एक ट्रक में डॉक्टर स्त्राविन्स्की के क्लीनिक में ले जाया जाता है, जिसके बारे में भी रहस्यमय प्रोफेसर ने पत्रियार्शी पार्क में भविष्यवाणी कर दी थी।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama