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झुमरी

झुमरी

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एक छोटे से गॉव के छोटे से हकीम मदीन खान की १० साल की छोटी सी बेटी थी झुमरी। वैसे तो मदीन खान का एक भी बेटा नहीं था और झुमरी उनकी तीन बेटियो में से सबसे छोटी थी मगर बचपन से ही उस नन्ही सी बच्ची में न जाने क्या खास था जो भी उसे पहली बार देखता था, उसे अच्छे अच्छे आशीर्वाद देने लगता था (कुछ बच्चे इतने मासूम और तीक्ष्ण बुद्धि के होते हैं कि पहली बार में ही सभी के दिलो में बस जाते हैं और सभी को प्यारे लगने लगते हैं ऐसी ही थी झुमरी ), ऐसा लगता था कि मानो बनाने वाले ने दुनिया कि सारे अच्छे संस्कारो और विध्याओं को संग्रहित करके उस नन्ही सी बच्ची में डाल दिया हो । उसके विचार महापुरुषो कि तरह उच्च थे । उससे बात करके ऐसा लगता था कि जेसे कोई बहुत बड़ा दार्शनिक या महापुरुष लोगो का मार्गदर्शन कर रहा हो । और जैसे बनाने वाले ने स्वयं अपनी विद्वता उसे दान कर दी हो और उसका हँसमुख चेहरा देख कर तो कोई वर्षो से गमो में डूबा व्यक्ति भी अपने सारे गमो को भूल कर खिल खिला कर हँस पड़े।

धीरे धीरे हकीम साहब की हकीम साहब कि बड़ी बेटी जवान हो गयी और उन्होंने एक अच्छा सा लड़का देख कर उसकी शादी कर दी और कुछ दिनों बाद उनकी छोटी लड़की कि भी शादी हो गयी ।

धीरे-धीरे वक़्त गुजरने के साथ-साथ झुमरी भी जवानी कि दहलीज पर कदम रख चुकी थी और उन्ही दिनों हकीम साहब अचानक से बहुत बीमार पड़ गए और पूरे एक साल तक बीमार रहे । उनकी बीमारी ठीक होने का नाम ही नही ले रही थी और इस दरम्यान उनका कमाया हुआ सारा धन इलाज में खर्च हो गया और उनके पास झुमरी कि शादी के लिए कुछ भी नहीं बचा, झुमरी की शादी की चिंता रात - दिन उन्हें खाये जा रही थी और फिर अचानक एक दिन इसी चिंता को अपने सीने में समेटे हुए हकीम साहब हमेशा के लिए इस संसार को छोडकर चल बसे।

झुमरी को अपने अब्बू की मौत का बहुत गहरा दुःख हुआ । वो दुःख में इतनी डूब गयी कि उसने खाना पीना तक छोड़ दिया। पूरे गॉंव को ऐसा लगने लगा कि शायद एक अच्छी आत्मा इस गॉंव को छोडकर हमेशा के लिए जाने वाली है, फिर भी गांव के लोगो ने आस नहीं छोड़ी और उस बिन बाप की बेटी के लिए चंदा इकठ्ठा करके पास के शहर से डॉक्टर साहब को बुलवाया ।

वह डाक्टर भी खुद को समाज सेवा में समर्पित कर चुका था । उसने अपनी डॉटरी की बेचलर और मास्टर डिग्री दोनों ही लंदन से की हुई थीं। जहाँ हर कोई विदेश जाना चाहता हे वही उसने अपने देश की रोटी में ज्यादा विश्वास रखा । उसका डॉक्टर बनने का उद्देश्य सिर्फ अपनी रोजी रोटी कमाना ही नहीं था अपितु अपनी सेवा से इस धरती पर स्वर्ग को लाने का भी था और जब वेह उस १४ साल की की लड़की से मिला तो उससे बात करके उसे लगा कि हाँ वास्तव में असली भारत गाँवो में बसता है, भारत की आत्मा गाँवो में निवास करती है और उसे ऐसा लगा कि मानो उसे भारत की आत्मा के दर्शन हो गए हों ।

जब उसे झुमरी का स्वास्थ्य ठीक होने का और कोई रास्ता नहीं सूझा तो उसने गांव वालो से उस लड़की को अपने साथ ले जाकर रखने क लिए कहा। पहले तो गॉंव वाले लड़की होने की वजह से डॉक्टर के साथ रहने की इजाजत देना नहीं चाहते थे लेकिन बाद में दूसरा कोई रास्ता ना दिखायी देने पर उन्होंने डॉक्टर साहब को झुमरी को अपने साथ रखने की इजाजत दे दी।

अब वो डॉक्टर झुमरी से बिना कुछ बोले हुए चुपचाप कुछ ना कुछ लिखने में तल्लीन रहता था। फिर अचानक से एक दिन झुमरी ने उस डॉक्टर से पूछा कि आप हर वक़्त कुछ ना कुछ लिखते क्यों रहते हो ? तब उस डॉक्टर ने बताया कि जैसा तुम्हारे साथ हुआ हे वेसा ही कभी मेरे साथ भी हुआ था और तब मेरे एक दोस्त ने मुझे ये कागज और कलम उपहार स्वरुप दी थी और अब में इनके बिना जी नहीं सकता और कुछ दिनों बाद झुमरी की १५ वी वर्षगाँठ आ गयी और उसने झुमरी की वर्षगांठ पर वो कागज और कलम झुमरी को दे दिए ।

अब झुमरी ने भी लिखना प्रारम्भ कर दिया और वो लिखने में इतनी तल्लीन रहने लगी की उसे पता ही नही चलता था की कब सुबह से शाम हो गयी । भूख प्यास हर चीज को भूलकर अपने विचारो और मन के भावो को इतनी तल्लीनता से कागज पर उतारने लगी थी वो । धीरे धीरे उसका स्वास्थ्य दुबारा से ठीक हो गया ।

२ साल बाद अचानक से एक दिन डॉक्टर साहब ने झुमरी से कहा कि मैं तुम्हारे लिए बुक फेस्टिवल की २ टिकट लाया हूँ, क्या तुम देखने चलोगी ? बुक फेस्टिवल का नाम सुनकर झुमरी तैयार हो गयी, वहाँ पहुँच कर जब उस साल की सबसे अच्छी बुक के लिए झुमरी को मंच पर बुलाया गया तो उसे यकीन ही नहीं हुआ क्योकि उसने तो अपनी किसी बुक का फेस्टिवल क लिए नामांकन ही नही कराया था ।

और उसके बाद झुमरी ने एक से बढ़कर एक बहुत सारी अच्छी किताबे लिखी और एक छोटी सी आदिवासी लड़की एक प्रख्यात लेखिका के रूप में पूरी दुनिया में जानी जाने लगी ।

और उस डॉक्टर ने ये दिखा दिया कि वास्तव में इलाज क्या होता है ! किसको चाहिए और कैसा होना चाहिए !

और वो डॉक्टर जिसने बिना किसी दवा के उस बिन बाप की आदिवासी लड़की को ठीक कर दिया, मेरी नज़र में सच्चा डॉक्टर था...!


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