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वेलेंटाइन डे

वेलेंटाइन डे

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आज वेलेंटाइन डे की पूर्व संध्या पपर मैं एम॰एल॰एन॰एम॰सी॰ में मौजूद था . मैं ,मेरी तन्हाई और अभिषेक मिश्रा जी स्पैम की सीढ़ियों एलिफैंट छाप पानी पी के अपनी प्यास बुझा रहे थे , सेंट्रल हाल संत वेलेंटाइन के अनुयायियों से खचा खच भरा हुआ था, तिल रखने की भी जगह नहीं बची थी सेंट्रल हाल की सीढ़ियों पर ... ये विहंगम दृश्य देख कर मिश्रा जी बोले "देख रहे हैं सर इतनी भीड़ तो जब प्रिन्सिपल साब झंडा फहराते है तब नहीं होती है ..."

 मैंने कहा "ये सब बदलते समय की माँग है मिश्रा जी नहीं तो एक वक़्त उनचास बैच का था कि लड़का ,लड़की की आँख में देख कर किताब नहीं माँग सकता था (चाहे वो किताब उसकी अपनी क्यों नहीं हो ) इस अपराध की सज़ा उस समय आई पी सी की धारा 376 के अंतर्गत होती थी, पर समय बदला और सज़ा भी बदली ..ख़ैर छोड़ो इन सब फ़िजुल की बातों को .... तुम यहाँ क्या कर रहे हो ..?."
.मिश्रा जी बोले  "'बड़ी दुःख भरी कहानी है कभी और इस  पे बात होगी बस इतना समझिये हर असफल लव स्टोरी के पीछे एक पी.जी का हाथ होता है"  मेरी तन्हाई ने मिश्रा जी को दिलासा दिया और बोली खुदा ने चाहा तो अगले साल तुम भी पी.जी बन जाओगे फिर जिस शो रूम का जो मोबाइल पसंद आए ख़रीद लेना.....
मिश्रा जी बोले .."आज कल तो सारे मोबाइल चीन में बनते हैं सर, जिसमें ओके टेस्टेड की मोहर पहले से ही लगी रहती है और गारंटी कुछ नहीं "....मेरी तन्हाई ने मिश्रा जी कहा ''फ़ैशन के इस दौर में गारंटी की इच्छा ना करें' मिश्रा जी" 
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मैंने कहा तुम लोग ये क्या मोबाइल और गारंटी की कैसी बातें कर रहे हो मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है , मेरी तन्हाई ने कहा की अगर तुम्हें समझ आता तो आज तुम यहाँ नहीं सेंट्रल हाल पे होते ..."
 सेंट्रल हाल में कुछ छप्पन वाले भी अपना वैलेंटाइन डे मना रहे थे पर उनमें उत्साह ज़्यादा और विश्वास कम था (एल बी डब्लु की अपील की तरह )....इक्यावन जो अपना कॉलेज का अंतिम वैलेंटाइन डे मना रहा था मैंने अपनी आँखों को ज़ूम कर के देखा तो उसने सुनील चतुर्वेदी भी शामिल थे मैंने तन्हाई से पूछा
'ये स्लैप डे क्यों हो रहा है सुनील का ..?". वो बोली की दीदी का चयन हो गया और जीजा का नहीं इसी वजह से ..."
मुझसे रहा नहीं गया मैंने फ़ोन लगा दिया सुनील को ....मैं कुछ बोलता कि उसके पहले ही वो बोला ...''जहाँ बैठे हो  वहीं रहो ज़्यादा चूं चां मत करो ,तुमने कभी वैलेंटाइन डे मनाया है ? ताज महल की सीढ़ियों पे बैठे हो ? कभी किसी के साथ जी.एच पे खड़े हुए हो ?नहीं ना तो तुम क्या जानो इन सब का मज़ा और हाँ ये सब जो हो रहा है मेरे साथ वो तुम्हारे साथ रहने का परिणाम है जो काम करने इलाहबाद आये थे वो करो और निकल लो''...
मैंने अपनी तन्हाई से कहा चलो मेरी जान यहाँ से अब इस मो.ला.ने.में कुछ नहीं बचा अपने लिए .... और मैं ई -रिक्शा ले कर लखनऊ आ गया ....


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