सूर्यास्त
सूर्यास्त
''अब काहे बैठे हो जा तरे से मुँह लटकाये ---जाओ हाथ -पाँव धोय लेओ और गैययन के हरियायी मिलाय आओ ---''ताशला ने अपने पति चरन सिंह को समझाते हुए कहा ।
''अरे का करैं कछऊ समझ में नाय आ रही --एक तो जो अंबर पर बादर तनो पड़ो है और मेरे मन में बिजरी चमक रही है ---राम जाने का हौयगो ---?''चरन सिंह ने बेचैनी से टूटी हुई खाट से उठते हुए कहा ।
''अरे तुम चिंता नाय करो -ऊपर बारो इतनो निर्दयी
नाय है ---जो हमारी फ़सल को नुकसान पहुँचायगो। ''ताशला ने विश्वास के साथ कहा।
''देख ताशला --इते फ़सल को कोई भरौसो नाय है और --उते सीमा पर हमारो लाल तैनात है गयो ---बहुत मन घबराय रहो है मेरे दोनो लाल मुश्किल में हैं ---।''-चरनसिंह ने अपने कुर्ते की जेब को बेबजह टटोलते हुए कहा।
''दोनो लाल ! पर हमारो तो --!''
''हाँ--हाँ एक ही लाल है --पर मैं तो जा फ़सल को भी अपनो लाल मानत हौ --का करौं --?''चरन सिंह ने अपनी पत्नि की बात को बीच में ही काटते हुए कहा।
'गडर ---गडर्र्र्र्र्र्-- धडाम ---'बिजली आसमान में कौन्धी और तेज बारिश के साथ ओले पड़ने लगे। ---''ताऊ ---ताऊ ---प्रकाश को फ़ोन है --!''एक पड़ोसी बारिश में भीगते हुए चरनसिंह की झोपड़ी में दाखिल हुआ।
''पिता जी ---दुश्मन ने हमारे कैम्प पर हमला कर दिया है ---हम दुश्मन से दो-दो हाथ कर रहे हैं ---अगर मौको कछऊ होय जाये तो --तो अम्मा को ध्यान रखिओ ---।''-और फ़ोन कट गया ।
चरनसिंह का सिर घूम गया--ऐसा लगा मानो जिन्दगी का सूरज अस्त होने बाला है ---उसके दोनो लाल मुसीबत में जो थे।