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लगाव

लगाव

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रोहन अपने माँ, पापा के सबसे करीब था। उसे उतना ही लगाव अपने दादी, दादा से भी था। जब पापा शहर आये रहने के लिए तो वो जिद करने लगा कि हमारे साथ दादा दादी भी चलेंगे।

पोते को कैसे निराश करे आखिर कुछ दिनों के लिए वो शहर आ गये। खुली हवा मे शैर करने वाले, शहर की जिंदगी रास ना आई, कुछ दिन बाद ही गाँव की याद सताने लगी।

एक दिन बेटा हमारा गाँव के लिए टिकट करा दो अब यहा हमारा मन नहीं लग रहा।

पर वहाँ आप लोग अकेले कैसे रहेंगे।

हम अकेले कहाँ है गाँव के लोग है हमारे साथ

बाबूजी समय बदल चुका है, अब लोग सिर्फ अपने में व्यस्त रहते हैं कोई किसी को नहीं पूछता।

बेटा ये तो तुम शहरी बाते कर रहे हो पर गाँव में समय चाहे जितना बदल जाये पर लोग परिवार की तरह रहते हैं, एक दूसरे से लगाव भी रहता है और सबसे बड़ी बात एक दूसरे को समय भी देते हैं।


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