पुलिस रिपोर्ट
पुलिस रिपोर्ट
पूरा डांग का क्षेत्र, भिण्ड से मुरैना के रास्ते हिचकोले खाती सी बस। यूं समझो चल रही थी वरना तो डांग क्षेत्र में भी ऊॅंट की सवारी सा लग रहा था राहुल को। सड़कों कि स्थिति तो समझ आ ही गई थी बस हिचकोलों से। वो मन ही मन सोच रहा था मैं क्यों आया हूँ यहां पर? मुझे ही बड़ी सनक चढ़ी थी। डांग क्षेत्र में घूम कर, समझकर कहानी लिखने की, लेकिन क्या मालूम था, इतनी खराब हालत होगी। एक तो सड़कें खराब ऊपर से उमस वाली गरमी, बस बुरा हाल था। पानी की बोतल तो ले ली थी उसने इसलिए बीच-बीच में पानी की घूंट मार लेता था लेकिन था बहुत बैचेन।
वो कभी अपने आप को कभी सरकार को कोस रहा था। तभी अचानक एक झटके के साथ ही बस रूकी। बस के रूकते ही धड़-धड़ तीन आदमी बड़ी-बड़ी लाल आँखें जैसे दहकते अंगारे हो, बड़ी मूँछें और हाथ में थ्री-नोट-थ्री राइफल कमर पर बंधी कारतूस की पेटी। अवाक से सभी यात्री देख रहे थे। उनमें से एक दहाड़कर बोला - "किसी ने भी हिलने की कोशिश की तो भेजा उड़ा दूँगा ससुर का। भले मानुस की तरह जाके पास ज्यो है वाको निकाल लेओ भइया।" अचानक ही एक उत्साही यात्री ने बोला - "कौन हो तुम और क्यों निकाले हम।" वो सुर्ख आँखें तरेर कर बोला - "अच्छा तो तोकू दिक्कत है रही है" और आव देखा न ताव उस उत्साही व्यक्ति की पीठ पर दूसरे आदमी ने राइफल के बैनट से ज़ोर से मारा और बोला - "हां भइया अब पतो चलो क नांई के और बताऊॅं।" वो कुछ नहीं बोला तभी वो गरज कर फिर बोला - "कोई और को भी दिक्कत हो रही का, है रही है तो बता द्यो अबी वा को भी बता द्यूं। चल निकाल जो कछु भी सबन के पास है।"
एक-एक कर सभी दस-बारह यात्रियों से उन तीनों ने सारा रुपया पैसा बटोर कर ड्राईवर से कहा - "हॉं भइया डराइवर अब तेरा या खटखटिया को ले जा।" उनके जाते ही ड्राइवर ने बस स्टार्ट कर ली और आगे बढ़ा दी। यात्रियों में आपस में खुसर-फुसर होने लगी - "क्या ज़माना है, जबरदस्ती सब ले गये।" एक बोला - "ए ड्राइवर साहब चलो थाने ले चलो और रिपोर्ट लिखवाओ वहां, हमारा सब कुछ चला गया।" इतना सुनना था कि ड्राइवर ने बस रोक दी और हाथ-जोड़कर बोला "मैं रिपोर्ट नहीं लिखवा सकता हूं" तभी दूसरा सहयात्री बोला - "अच्छा तो तू इन डाकुओं से मिला हुआ है।"
ड्राइवर गिड़गिड़ाते हुए बोला - "नहीं साहब ऐसा नहीं है मैं रिपोर्ट नहीं लिखवा सकता बस।" सब बोले - "तो इसका मतलब साफ है कि तू मिला हुआ है" और पूरी सैटिंग है, "साहब ऐसा नहीं है बस मेरी गाड़ी का इस रुट का परमिट नहीं है और मैं बिना परमिट ही गाड़ी चला रहा हूँ इस लिए मैं नहीं करवा सकता हूँ । मैं थाने गया तो गाड़ी जब्त हो जाएगी।"
सभी ने तब कण्डक्टर से कहा "तो वो भी गिड़गिड़ाकर बोला साहब मैं कण्डक्टर नहीं हूँ। दरअसल कण्डक्टर ने मुझे ठेके पर रखा है। बस मैं अपना ख़र्चा निकालकर कण्डक्टर को पैसा देता हों रोज़ाना।" इतना सुनकर सब यात्रीगण एक दूसरे का मुंह तकने लगे ज़्यादातर आपस में परिचित थे, इसलिए सब सलाह मशविरकर बोले "हमारे में सबसे ज्यादा पढ़े लिखे मास्टरजी ही हैं। पटवारीजी, ग्राम सेवकजी और हम सब तो कम पढे़ लिखे हैं सो अब तो यह रिपोर्ट मास्टरजी को ही लिखानी है।" सुनते ही मास्टरजी बोले - "अरे क्यूँ मेरी नौकरी लेने पर लगे हो मैं तो खुद ही स्कूल से फरलू मारकर भागा हूँ मुझे क्या पता ऐसा हो जाएगा", लेकिन हॉं पटवारी जी आप थाने चलो रिपोर्ट लिखवा दो।
पटवारी बोला - "क्या मास्साब मेरी ही बली चढ़वाओगे - कोई पिछले जनम की दुश्मनी है क्या, मैं तो अभी कलेक्टर साहब के यहां पर - ट्यूर पर हूं, मैं तो रिपोर्ट लिखवा ही नहीं सकता हूँ।"
एक-एक कर लगभग सभी दस-बारह यात्रियों ने एक दूसरे पर टालना शुरु कर दिया। राहुल भी सब तमाशा देख रहा था वो कुछ नहीं बोला था। बस चुपचाप सब देख रहा था। वो सोच रहा था कितनी अच्छी है हमारे देश की प्रजातांत्रित व्यवस्था, सब के सब किसी न किसी रुप में चोर हैं। कोई ड्यूटी छोड़कर भाग रहा है, कोई बस कन्नी काट रहा है डर के मारे। उसने मन ही निश्चय किया कि वो लिखवाएगा रिपोर्ट। हांलाकि उसके पास ऐसा कुछ नहीं था जिसको वो लूट कर ले गये हों। बस कुल 112 रूपये थे जो वो ले गये थे। लेकिन इन सबका तो काफी कुछ गया तभी वो बोला "मैं लिखवाऊंगा रिपोर्ट।" उसका इतना बोलना था कि एक बार फिर से वो ही डाकू बस मैं घुस गये। उनके घुसते ही अब तो लगा अब जान नहीं बचेगी इस बार। उनमें से एक कड़ककर फिर बोला - "जाका जितेक रुपया पैसा है ऊ मोसू ले लवो, अर हाँ कोइ न भी हुसयारी दिखाई ना, क झूठ बोल्यो ना तो वाकी खोपड़िया उड़ा दूगो मैं, समझ म आ गई कि नाई, तो ठीक है अब एक एक खड़ो होअर बताता जाओ कितेक है।"
इस तरह सभी को उन्होंने पूरी ईमानदारी से जितना लूटा था वो सब वापस लौटा दिया। राहुल सोचे जा रहा था, भला डाकूओं में भी इस तरह की बात। आखिर क्या कारण हो सकता है। उसने हिम्मत करके पूछ लिया - "अगर मेरी जान बख्स दो तो एक बात पूछनी है।"
"हां पूछ ले तेरे पेट में के दरद हो रह्यो है वा भी पूछ ले।" राहूल हड़बड़ाते से हुए बोला - "नहीं...कुछ नहीं बस।" "अरै बोल डरपे मत नाय मारुं तोकू।" हिम्मत करके राहुल बोला - "डाकू भाईसाहब आपने पहले तो लूटा और चले गये फिर वापस हमें सब वापस भी कर दिया।" "अरे बावळा तोकू समझ नाय आ सकै, वा कांई है तुम सबन को लूट कर हम थाणे गया, वाको हिस्सो देणे लेकिन वा थाणेदार ने जितेक लूटे वासूं दस गुणी रकम तो मांग ली केस दरज ना करणे के लिए। अब तू ही बता। तूमको पैसे लौटणे में फायदो क थाणेदार न देणे म, सो तुम सबन को वापस लौटाय दिया। अब चुपचाप चल्यां जाओ समझ गया।"