उसकी ज़िंदगी थी अनूपा
उसकी ज़िंदगी थी अनूपा
बी.एड. की क्लास में जहान्वी का वो पहला दिन था। इतने बड़े कॉलेज में पहली बार संकोच और घबराहट से बुरा हाल था। सभी अनजाने थे। सब कुछ नया, नयी सुबह, नया स्कूल, नए-नए सहपाठी। कॉलेज काफी दूर था घर से। बस से भी २० मिनट लगते थे। लंच टाइम में फुर्सत मिली कुछ चेहरों को पढ़ने की। एक चेहरा कुछ अपना सा लगा। सामान्य कद काठी की एक मासूम सी लड़की। कंधे तक खुले बाल, नाक पर मोटा चश्मा, उदास सी मुद्रा में ब्लैक बोर्ड में जाने क्या ताक रही थी बहुत देर से। जहान्वी उसके पास गयी। उसकी चुप्पी तोड़ते हुए - " क्या हुआ? कहाँ खोयी हो? कुछ समस्या है क्या?"
"नहीं बस घर की याद आ रही थी। यहाँ मैं अपनी मौसी के पास रहती हूँ, बी. एड. करने के लिए घर तो बहुत दूर है।" अनूपा ने मेरी ओर देखते हुए कहा। बातों ही बातों में पता चला उसकी मौसी का घर हमारे मोहल्ले में ही है। फिर क्या था दोनों में दोस्ती हो गयी। रोज़ घर से कॉलेज के लिए साथ निकलते, बस में साथ, क्लास में साथ बैठते, लंच भी साथ और शाम को घर वापसी भी साथ-साथ। दिन के १२ घंटे सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक दोनों एक साथ। अनूपा-जहान्वी की दोस्ती कॉलेज में फेमस हो गयी। दो-तीन महीने में ही काफी करीब आ गए दोनों। एक दिन अनूपा बस स्टॉप पर नहीं आयी। जहान्वी को अकेले ही जाना पड़ा। शाम को जहान्वी ने अनूपा की मौसी के घर जाकर पूछा तो पता चला कि अनूपा को तेज बुखार था। उसकी मौसी ने कहा आज ये अपने घर जा रही है। वहीं होगा इसका इलाज। दो-तीन दिन कॉलेज नहीं आएगी। बेचारी जहान्वी! इतनी मुश्किल से एक दोस्त मिली थी। उसके बीमार पड़ने से मुलाकात नहीं हो पायी उससे, काफी अकेला महसूस कर रही थी। रोज़ जहान्वी अनूपा की मौसी के घर जाती उसका हाल पूछने लेकिन मौसी के बेरुखे व्यवहार के कारण कुछ खास ज्ञात न होता। मन मारकर रह जाती। अनूपा से मिले एक हफ्ता बीत चूका था, अब उसे अनूपा की चिंता हो रही थी। कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं। क्या हुआ अनूपा को कोई क्यों नहीं बताता। उसकी कोई खबर नहीं। उसके घर का फोन नंबर भी नहीं था उसके पास। अनूपा के बिना जहान्वी को कुछ अच्छा नहीं लगता। कुछ समझ नहीं आ रहा था अनूपा की खबर कैसे ली जाये। कैसे पता किया जाये उसके बारे में।
अगले दिन जहान्वी कॉलेज में प्रिंसिपल से मिली और उनसे अनूपा के घर का नंबर देने को कहा। प्रिंसिपल सर ने विस्मय भरी नजरों से जहान्वी को देखा और पूछा "तुम्हे इतनी उत्सुकता क्यों है उसका हाल पूछने की।"
"सर वो मेरी दोस्त है। हम साथ-साथ कॉलेज आते-जाते हैं। एक हफ्ते से नहीं आयी वो। इसलिए चिंता हो रही थी।" जहान्वी ने निर्भीकता से जबाब दिया।
कॉलेज के द्वारा जब अनूपा के घर संपर्क किया गया तो पता चला उसे डेंगू हो गया था। तेजी से प्लेटलेटस घटने के कारण उसे बचाया नहीं जा सका। स्टाफ रूम में ख़ामोशी छा गयी। जहान्वी को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था अपने कानों पर। एक हफ्ते पहले तक जिसके साथ पूरा दिन बीतता था अब वो इस दुनिया में नहीं है। उसके जाने से क्लास व कॉलेज को कुछ फर्क नहीं पड़ा पर जहान्वी जैसे सदमे में चली गयी। कुछ दिनों बाद जहान्वी सामान्य हो गयी लेकिन वो अनूपा की जगह दिल में किसी को ना दे पाई। भले ही अनूपा से उसकी दोस्ती कुछ माह ही पुरानी थी लेकिन उसकी ज़िंदगी थी अनूपा।