Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

कहानी : जीवन दर्शन

कहानी : जीवन दर्शन

13 mins
14.6K


वातानुकूलन से कुछ अधिक महसूस हो रही ठंडक ने उसे कंबल खींचने पर मजबूर किया। सोचा, पंखे से गुजर अधिक बेहतर होगी। वातानुकूलन बंद कर देना ही उचित होगा, लेकिन डिब्बे में बैठे अन्य लोगों की सुविधा का भी ध्यान रखना है। कोई स्विच बंद करता है तो कहीं और का बल्ब बंद हो जाता है। हारकर उसने इस दिशा में सोचना बंद कर दिया।
 
उसे अपना गांव, गांव के तमाम नातेदार, रिश्तेदार और गांव की सुंदर छांव से जुड़ी हुई स्मृतियां मानस पटल को झकझोरने लगीं। बड़ी संख्या में लोग स्टेशन पर छोड़ने आए थे। पिताजी, रामभरोसे चाचा, वासुदेव काका, सुक्खू दादा और पूरा का पूरा गांव स्टेशन पर इकट्ठा हो गया था। 
 
वह भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी के रूप में ज्वॉइन करने दिल्ली जा रहा था। सुक्खू दादा ने एसी डिब्बे में घुसते पूछा था- 'अंदर का कौनो आइदा फैक्टरी लगी है?' पिताजी रामसुमेर मिश्रा विदा करते समय रोने लगे थे। कहने लगे- दिल्ली जा रहे हैं। दिल्ली बहुत बड़ा शहर है, लेकिन है 'दिल वालों का'। अपना खयाल रखना।
 
चाचा रामभरोसे की भी आंखें भर आईं। स्टेशन के रास्ते में उन्होंने पूछा- 'का दरोगई में नाही बैठो रह्यो। अगर दरोगा होय जातयो तो ज़्यादा अच्छा रहत।' फिर वे धीरे से बोले- 'जेहका चार डंडा मार देतयो उइ जिंदगी भर याद रखत।' 
 
मैं विस्मयभरी मुस्कराहट से उनके चेहरे को देख रहा था। वे एक ऐसे ग्रामीण समाज के प्रतिनिधि थे जिसके सामने एक दरोगा की हैसियत एक आयकर विभाग के सहायक आयुक्त से बढ़कर थी। पूरे के पूरे गांव को कभी भी आयकर विभाग से कभी कोई पाला नहीं पड़ा था। 
 
गांव के लोग हमेशा या तो तहसील की रिकवरी या बैंक या बिजली विभाग की रिकवरी से परेशान रहते, सो इन विभागों के बारे में अच्छी तरह से जानते थे। आय कभी इतनी नहीं रही कि किसी आयकर विभाग वाले को गांव की तरफ देखना पड़ा हो। वे हमेशा रहते हैं तंगी में और तंगी भी ऐसी कि तंगी की चाबुक ने जिस्म पर खाल नहीं छोड़ी।
 
पिताजी प्राइमरी पाठथाला के मास्टर थे। पूरे इलाके में अपनी ईमानदारी और सदाशयता के लिए जाने जाते थे। नाम उनका रामसुमेर मिश्रा था लेकिन लोग नाम से कम, 'मास्टरजी' के नाम से ज्यादा जानते थे। मास्टरजी पूरा साल एक जोड़ कुर्ता व धोती में निकाल देते थे। पूरे इलाके में पैर छूने वालों की भीड़ थी मास्टर साहब की। आप 5 किमी दूर भी मास्टर साहब के बारे में पूछेंगे तो लोग बता देंगे और उनके घर तक छोड़ आएंगे। मास्टर साहब के बड़े सुपुत्र हैं रमेश मिश्रा। भारतीय सि‍विल सेवा में परीक्षा उत्तीर्ण की है और भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी के रूप में ज्वॉइन करने दिल्ली जा रहे हैं।
 
तन लाख ट्रेन के कंपार्टमेंट में था, लेकिन मन बार-बार दौड़-दौड़कर फिर अपने गांव पहुंच जाता था। मन की गति के आगे सबकी चाल धीमी है, पल में ही वह कहां से कहां पहुंच जाता है। नदी-नाले, ताल-तलैया, समुद्र सब लांघकर इसे न आंधी रोक सकती है, न तूफान थाम पाते हैं। 
 
उसने फिर बड़ी बेचैनी से करवट बदली। क्या वक्त हुआ होगा? सुबह के 5 बजने वाले थे। लो हापुड़ आ गया। बाहर स्टेशन पर चिल्ला रहे थे- 'कॉफी..., कॉफी..., हापुड़ कॉफी...।' और वह उठकर बैठ गया। नींद है कि कमबख्त आती ही नहीं और जब नींद न आए तो न जाने कितने विचार आते रहते हैं। वो फिर कम्बल ओढ़कर लेट गया। 
 
पिताजी की कही बातें पुन: याद आने लगीं। पिताजी ने कहा था- 'दिल्ली जा रहे हो। जाकर देखना, ज़िन्दा वही रहता है जिसमें ज़िन्दगी देने की क्षमता होती है। दिल्ली में सैकड़ों बादशाहों ने राज किया। बादशाह अकबर, हुमायूं, शाहजहां, जहांगीर, औरंगज़ेब और न जाने कौन-कौन, लेकिन सबके नाम वक्त के साथ दफन हो गए। खोजे नहीं मिलेंगे। दिल्ली में कोई पुरसाने हाल नहीं मिलेगा। पूजा केवल एक ही व्यक्ति जाता है, वो भी हजारों साल से। सूफी संत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर चादर चढ़ाना। तुम्हें जीवन का दर्शन समझ में आ जाएगा। ज़िन्दा वही रहता है जिसमें ज़िन्दगी देने की ताकत होती है।'
 
सोचते-सोचते उसे नींद आ गई और गाड़ी नई दिल्ली स्टेशन पर आ गई। बाहर स्टेशन पर आवाज़ आ रही थी- 'गरम समोसे, पूड़ी-सब्जी, पानी बॉटल, चटपटी कचोरी, कोल्ड ड्रिंक, पेपर-पेपर।' और उसने ब्रीफकेस उठाया और स्टेशन पर उतर गया। 
 
वो सीधे प्रीपेड ऑटो बूथ पर गया और सीधे ऑटो कर गौर हाइट्स इंदिरापुरम में पहुंच गया। उसने 13वें माले के मकान की कॉल बेल बजाई। मिसेज शर्मा ने दरवाजा खोला। 
 
आ गए रमेश भाई, कब से आपका इंतजार हो रहा था। मैंने कचोरियां बनाई थीं, ठंडी हो गईं।
 
अरे क्या करूं भाभीजी? ट्रेन तो सही समय पर आ गई थी, लेकिन ऑटो जाम में फंस गया और देर हो गई। विकास कहां है? उसने अगला प्रश्न पूछा। 
 
जी नहाने गए हैं। अभी तक आपका इंतजार कर रहे थे। हम्म... हम्म... वो सोफे पर बैठ गया। और तभी विकास नहाकर तैयार होकर बाहर आ गए। 
 
वेलकम रमेश भाई, बहुत देर तुम्हारा इंतजार किया, फिर नहाने चला गया। 
 
तभी मिसेज शर्मा ने कहा- आप लोग डाइनिंग टेबल पर आएं। गरमा-गरम कचोरियां तैयार हैं, फटाफट नाश्ता करें।
 
भाभीजी नाश्ता आप भी साथ ही लें तो अच्‍छा लगेगा और भाभीजी ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और तीनों ने नाश्ता किया।
 
नाश्ते के बाद विकास ने बताया कि रमेश, तुम्हारे लिए 14वें फ्लौर पर एक फ्लेट देख लिया है। पार्क फेंसिंग है। किराया भी 18 हजार है। 2 हजार सोसायटी का खर्च भी देना पड़ेगा। पूरे 20 हजार में गंगा नहाओगे। 
 
रमेश ने अपनी सैलरी का हिसाब लगाया। 50 हजार से कुछ ज्यादा थी। 
 
2 बेडरूम तो ज़रूरी थे। तुम्हारे अम्मा-बाबूजी आएं तो उनके लिए एक अलग से कमरा लेना चाहिए ना? विकास ने कहा। 
 
जी ज़रूर। ये पार्क फेंसिंग का क्या मतलब? रमेश ने पूछा।
 
इस तरह की सोसायटी में पार्क फेंसिंग फ्लेट के 500 रुपए ज्यादा लगते हैं, लेकिन आप हमेशा हरियाली देखते हैं, विकास ने कहा। 
 
रमेश को लगा कि इन महानगरों के अजब कानून हैं। हरियाली देखने का भी पैसा लगता है। विकास ने बातों के क्रम को बढ़ाते हुए कहा कि फ्लेट वेल फर्निश्ड है। किसी सामान को तुम्हें लाना नहीं है।
 
यह तो बड़ी अच्‍छी बात है। और उसने उसका सामान उसके फ्लेट में रखवा दिया।
 
आज रविवार है। हम लोग टीवी देखते हैं, गप्पे मारते हैं, एन्जॉय करते हैं, कल तुम आईटीओ ज्वॉइनिंग दे देना।
 
विकास और रमेश इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दर्शन शास्‍त्र के विद्यार्थी थे। साथ-साथ पढ़े और रहे। दोनों परम मित्र थे और दोनों ने परास्नातक इलाहाबाद विश्वविद्यालय से किया। दो वर्ष पूर्व विकास का चयन भारतीय पोस्टल सर्विस में हो गया और उनकी पोस्टिंग जीपीओ, दिल्ली पर थी। 
 
पूरे दिन गप्प लड़ाने और पुरानी स्मृतियों को पुन: कुरेदने की बात कह रमेश और विकास रात्रि विश्राम के लिए चले गए। 
 
विकास ने कहा- रमेश, सुबह जल्दी उठना, मॉर्निंग वॉक पर ज़रूर चलेंगे। 
 
ज़रूर विकास और गुडनाइट कहकर वो सोने चला गया। 
 
सुबह दोनों मित्र पार्क में टहल रहे थे। बड़ी संख्या में महिलाएं-पुरुष टहल रहे थे। कुछ महिलाएं अस्त-व्यस्त कपड़ों में टहल रही थीं। पास ही में स्वीमिंग पूल था जिसमें तमाम स्त्री-पुरुष स्वीमिंग का आनंद ले रहे थे। 
 
रमेश वॉक करते समय स्वीमिंग पूल के पास सहमकर रुक गया। उसने विकास का हाथ पकड़कर कहा- विकास यहां पर कोई व्यू पीएलसी तो नहीं लगती। 
 
अरे नहीं, बिल्डर ने सारे पीएलसी ले रखे हैं, केवल ये पीएलसी छोड़ दिया है। दिनभर दिल्ली की प्रदूषणभरी सड़कों पर यात्रा करने से थकी-हारी आंखों में यहां का दर्शन पतंजलि आयुर्वेद की दृष्टि आई ड्रॉप की तरह शीतलता और ताजगी प्रदान करता है और ऐसा कह उसने अपने हाथ से रमेश के हाथ को पकड़ लिय। 
 
दोनों मित्र मुस्कुराने लगे और रमेश ने कहा- यही इन महानगरों का जीवन दर्शन है।
 
सुबह का नाश्ता कर दोनों मित्र ऑफिस जाने को तैयार हो गए। 
 
रमेश रुको, मैं अपनी गाड़ी ले आता हूं, विकास ने कहा और 2 मिनट में विकास गाड़ी लेकर सामने खड़ा था। एकदम नई होंडासिटी। 
 
रमेश ने काफी तसल्ली महसूस की। उसके जेहन में कल ऑटो की थकाकर मार डालने वाली यात्रा की यादें ताजा थीं। एसी होंडासिटी में 25 किमी की यात्रा करेंगे तो मज़ा आ जाएगा, वो मन ही मन बुदबुदाया।
 
दोनों दिल्ली की ओर रवाना हो गए। लेकिन ये क्या? मुश्किल से 2 किमी चलकर गाड़ी मेट्रो स्टेशन के अंदर घुस गई। जल्दी से उतरो। ट्रेन आने वाली है। मैं टिकट लेता हूं। तुम ऊपर पहुंचो। और दोनों धक्का-मुक्की करते हुए एस्केलेटर से ऊपर पहुंच गए।
 
मेट्रो में चढ़ने का प्रयास एवरेस्ट फतह करने जैसा है। वो पुरुष डिब्बे में चढ़ा ही था कि एक महिला उसके शरीर को ज़बरदस्त ढंग से रगड़ते हुए उसे धक्का देता हुए डिब्बे में चढ़ गई। उसे लगा कि उससे कहीं कोई गंभीर अपराध हो गया, लेकिन सामने सीट पर बैठी महिला मुस्कुरा रही थी। उसने रमेश को बगल की सीट पर बैठने का इशारा किया। रमेश बिलकुल चुड़-मुड़ हो गया। नए सूट को ठीक करते हुए बैठ गया। 
 
जी कहां तक जाएंगे? राजीव चौक पर उतरूंगा। संभवत: वह उसके सुंदर सूट में दिख रहे भद्रजन व्यक्तित्व से आकर्षित थी। वो उससे बात करने लगा। उसको पिताजी की कही बात याद आई- 'दिल्ली दिल वालों का है।' बातों का दौर अब बढ़ गया था। मयूर विहार स्टेशन आ गया। इसकी उद्घोषणा मेट्रो स्टेशन पर हो रही थी। 
 
भद्र महिला ने कहा कि आप अपना व्हॉट्सएप नंबर दे दो। वो अपने पुराने मोबाइल को अपनी कोट की जेब से निकालकर उसके पुश बटन को दबाने लगा। वह व्हॉट्सएप नंबर ढूंढ रहा था। उसने पुन: महिला की ओर देखा। महिला अब दूसरे यात्री से बातचीत करने में मशगूल थी। वो महिला से कुछ कहने के लिए आगे बढ़ा, तब तक राजीव चौक आ गया और महिला सबको धक्के देते हुए उतर गई थी। वह मन ही मन बुदबुदाया- 'दिल तो यहां दलदल में है।'
 
राजीव चौक पर वह उतर गया और ऑटो लेकर इंकम टैक्स ऑफिस पहुंच गया। 
 
रिसेप्शन पर एक खूबसूरत लड़की बैठी हुई थी। पीछे नेम प्लेट पर लिखा है- मोनिका, जनसंपर्क अधिकारी।
रमेश ने अपना परिचय देते हुए कहा- मैं रमेश मिश्रा, सहायक आयकर आयुक्त के रूप में नया ज्वॉइनी। 
 
जी, आपका स्वागत है, उसने मुस्कुराते हुए कहा।
 
उसके श्वेत, गौर वर्ण और गुलाबी होंठों के बीच उसके मुस्कुराते श्वेत धवल दांत जैसे विको वज्रदंती का प्रचार कर रहे हों। 
 
आप जाकर मिस्टर सिंह से संपर्क कर लें। वे सहायक आयुक्त प्रशासक हैं। वे सारी औप‍चारिकताएं पूरी करा देंगे। बात को आगे बढ़ाते हुए उसने कहा- वे फर्स्ट फ्लोर पर बैठते हैं। मैं अटेंडेंट को कहती हूं, वो आपको पहुंचा देंगे। 
 
जी थैंक्स ए लॉट, रमेश ने मुस्कुराकर कहा। 
 
वो फर्स्ट फ्लोर पर पहुंच गया। सामने पीतल की नेमप्लेट पर लिखा है- विजय प्रताप सिंह, सहायक आयुक्त, प्रशासन। 
 
और वह दरवाज़े को नोक कर अंदर चला गया।
 
फॉर्मल परिचय के बाद वह पूछकर बैठ गया। विजयजी की उम्र 50 के आसपास है। देखने से स्पष्ट हो जाता है कि इंस्पेक्टर से प्रमोट होकर वे यहां तक पहुंचे हैं। चेहरे पर तेज छाया है। 
 
उन्होंने मुस्कुराकर कहा- रमेश मिश्राजी, सहायक आयुक्त के रूप में आपका स्वागत है। आइए, आपका परिचय अतिरिक्त आयुक्त संजय कुमार खन्ना से करवाता हूं। आपकी सारी औपचारिकता पूर्ण हो गई है और आज से आपकी ज्वॉइनिंग हो गई। स्वागत है आपका। 
 
जी, आदर भाव से रमेश मिश्रा ने कहा। 
 
विजय सिंह रमेश मिश्रा को लेकर दूसरे तल पर स्थित साहब के कमरे में पहुंच गए। पीतल की बड़ी-सी नेमप्लेट पर लिखा है- संजय कुमार खन्ना, अतिरिक्त आयकर आयुक्त।
 
सिंह साहब ने साहब के पीए मिस्टर अरोरा से बात की। रमेश मिश्रा नए ज्वॉइनी आए हैं और साहब से मिलना चाहते हैं।
 
मिस्टर अरोड़ा ने इंटरकॉम पर साहब से पूछा और साहब ने जवाब दिया कि अंदर आ जाने दो। ‍सिंह साहब रमेश मिश्रा को लेकर अंदर चले गए। विशालकाल कक्ष, महंगी कारपेट फर्श बिछी है। सामने बड़ी-सी एलसीडी स्क्रीन लगी है। रिवॉल्विंग चेयर पर साहब मुस्कुराते हुए बैठे हैं। सामने बड़ा-सा सोफासेट है। ऐश ट्रे व खाने के कुछ सामान सेंटर टेबल पर हैं।
 
आइए मिश्राजी, आपका इंतजार हो रहा था। स्वागत है आपका।
 
जी सर, मिश्राजी ने बड़े ही आदरसूचक अंदाज में कहा।
 
क्या लेंगे? चाय-कॉफी-ठंडा? 
 
जी कुछ नहीं।
 
अरे कुछ तो? 
 
चाय ले लूंगा, मिश्राजी ने सकुचाते हुए कहा।
 
और साहब ने इंटरकॉम पर कहा- तीन कप चाय भिजवाना।
 
परिचय का आदान-प्रदान शुरू हो गया। तब तक मिस्टर सिंह ने व्यवधान करते हुए कहा- सर, मेरे कमरे में कुछ फाइलें पेंडिंग हैं, इजाज़त हो तो मैं चलूं? 
 
ज़रूर-ज़रूर। और सिंह साहब कमरे से बाहर निकल गए। 
 
मिश्राजी, सिविल सर्विसेज में आपका सब्जेक्ट क्या था? 
 
जी, दर्शन शास्त्र।
 
ओह! वेरी इट्रेस्टिंग। आप दर्शन शास्त्र के विद्यार्थी! किस-किस दार्शनिक को आपने पढ़ा? 
 
जी शंकर, रामानुज, माधवाचार्य, निम्बार्क सभी हम्म... हम्म...। 
 
अब जीवन दर्शन को समझने का प्रयास करिए, साहब ने अपने सिर पर स्मृति-शेष रह गए बालों पर हाथ फेरते हुए कहा। 
 
चाय व नाश्ता तब तक समाप्त हो गया था। मिश्रा सहमी हुई नजरों से साहब को देख रहे थे। फिर उन्हें लगा कि जैसे साहब कहना चाहते हैं कुछ और भी। 
 
साहब और मिश्राजी के बीच मुस्कुराहटों की नि:शब्द शब्दावलियां हवा में तैरने लगीं जिसका अर्थ मिश्राजी समझने में लगे रहे। अर्थ अनेकानेक थे। शायद दोनों समझ रहे थे। यह साहब और मिश्राजी के परिचय का पहला दृश्य था। 
 
शाम का समय था। ऑफिस से लेने विकास शर्मा अपनी होंडासिटी कार से आ गया।
 
विकास, आज किसी अच्छे रेस्टॉरेंट में नाश्ता करते हैं।
 
हां-हां, क्यों नहीं? और ऐसा कह उसने गाड़ी को गति दे दी और थोड़ी देर में गाड़ी कपूर रेस्टॉरेंट के सामने खड़ी थी।
 
रेस्टॉरेंट में घुसते ही विकास ने बैरे से कहा- दो ग्रिल्ड सैंडविच और कोल्ड कॉफी लगाओ।
 
जी सरकार, अभी।
 
रमेश, विकास से धीरे से बुदबुदाया। विकास, इतने अच्‍छे रेस्टॉरेंट में घोड़े की लीद की बदबू आ रही है। 
 
सुनकर विकास बड़ी जोर से हंसा। अरे नहीं भाई, पीछे की सीट पर बैठे लोग बीयर पी रहे हैं। वैसे भी बीयर और घोड़े की लीद की बदबू में कोई खास अंतर नहीं है।
 
दोनों नाश्ता कर घर पहुंच गए। रास्ते में विकास ने बताया कि महानगर में आपकी पहचान आपकी गाड़ी और मोबाइल है अत: दोनों का स्तरीय होना आवश्यक है।
 
सुबह वह फिर ऑफिस में आ गया। साहब कैबिन की तरफ जा रहे हैं। पैर छूने वालों की भीड़ है। साहब हर किसी के सिर पर हाथ रख आशीर्वाद दे रहे हैं। उसे पिताजी द्वारा सुबह पढ़ी जाने वाली हनुमान चालीसा की पंक्तियां याद आ गईं- 'अष्ट सिधि नवनिधि के दाता/ असवर दीन जानकी माता।' साहब राजर्षि हैं। वह मन ही मन बुदबुदाया। ये पंक्ति साहब पर बिलकुल सटीक बैठती है। 
 
मिस्टर रमेश मिश्रा को ऑफिस ज्वॉइन किए एक महीने से अधिक का समय हो गया है, लेकिन अभी भी कोई कायदे का काम उनके पास नहीं है। काम है तो केयरटेकर का, जनसंपर्क का, पब्लिक ग्रीवेन्सेज का। वहीं इंस्पेक्टर के कैडर से आए मिस्टर सिंह पूरे ऑफिस को नियंत्रित करते हैं, जैसे मिनी खन्ना साहब हो, मिनी चीफ कमिश्नर। 
 
सिंह साहब के जलवे से परेशान एक दिन खन्ना साहब के पीए मिस्टर अरोरा से रमेश मिश्रा ने पूछा- सर, मैं तो मिस्टर सिंह के जलवे देखकर हैरान हूं, लगता है ऑफिसर इंचार्ज वही हैं। 
 
मिस्टर अरोरा ने मुस्कुराकर कहा- जी, तेल कमेटी के सबसे सक्रियतम और वरिष्ठ सदस्य हैं। थोड़ी देर में मिस्टर अरोरा चेम्बर से बाहर चले गए, लेकिन तेल कमेटी अपने तमाम रहस्यों के साथ उसके मानस पटल पर विद्यमान थी। उसने पढ़ाई के दौरान तमाम कमेटियों के बारे में पढ़ा था, जैसे पब्लिक इस्टीमेंट कमेटी, फाइनेंस कमेटी, लेकिन तेल कमेटी शायद किसी किताब में नहीं थी। 
 
उसने अपने कम्प्यूटर के सर्च इंजन 'गूगल' पर तेल कमेटी लिखा और सर्च के लिए डाल दिया। लेकिन महान गूगल भी इसके बारे में कुछ बता पाने में असमर्थ था।
 
आज अखबार के पहले पेज पर पर साहब का नाम निकला। साहब बड़ी जांच के घेरे में आ गए हैं और उनका ट्रांसफर मुख्यालय कर दिया गया है। 
 
मिश्राजी हताश और परेशान हैं व वे निजामुद्दीन औलिया के सामने से बस से गुजर रहे हैं। बड़ी जोर से आवाज आ रही है- 'ख्‍वाजा के अंदाज निराले हैं/ उसके रहमत के किस्से भी निराले हैं।' 
 
मिश्राजी ने हाथ जोड़कर इस महान सूफी संत को प्रणाम किया, फिर जैसे बुदबुदाए- 'बाबा, मैं दर्शन शास्त्र का एक अदना-सा विद्यार्थी आज तुम्हारी शरण में हूं, कृपया मुझे जीवन दर्शन समझने में मदद करें।'
 
बस आकर ऑफिस के सामने रुक गई। वो खरामा-खरामा सीढ़ी चढ़कर अपने चैम्बर में चले गए। वे पुन: कम्प्यूटर खोलकर तेल कमेटी सर्च करने लगे। हां, उन्होंने अपना सर्च इंजन बदल दिया। वे गूगल की जगह बिंग पर सर्च कर रहे हैं। शायद यह महान तेल कमेटी के रहस्य को बता पाने में सफल हो। 
 
(इस कहानी के सारे पात्र काल्पनिक हैं। इसका वास्तविक जीवन से कोई लेना-देना नहीं है।) 


Rate this content
Log in