दफ्तर में खून, भाग 2
दफ्तर में खून, भाग 2
गतांक से आगे-
मालिनी ठाकुर ने अपना लेख ख़त्म किया और कुर्सी की पुश्त से सिर टिका कर आँखें मूंद ली। मानसिक कार्य भी शारीरिक श्रम से कम थकानदायक नहीं होता। कॉन्फ्रेंस हॉल का पुराना ए.सी घड़घड़ाता सा चल रहा था, जो वातावरण की गरमी से लड़ने में असमर्थ था। मालिनी के माथे पर पसीने की छोटी-छोटी बूँदें चमक रही थीं, उसने आँखें मूंदे हुए ही अपना बैग खोला और उसमें रुमाल तलाशने लगी। थोड़ी देर टटोलने के बाद उसे रुमाल मिल गया, जिसे निकाल कर मुँह पर फिराते ही उसे लगा मानो कोई चिपचिपा पदार्थ उसके मुँह पर लिथड़ गया हो, तुरंत चौंक कर मालिनी ने अपनी आँखें खोलीं और भाग कर शीशे में अपना मुँह देखा तो चीख पड़ी। उसका मुँह गाढ़े ग्रीस से सना हुआ था।
शामराव के अलावा भला ऐसी दुष्टता और कौन करता? अचानक मानो मालिनी पर कोई दौरा पड़ गया वह ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगी। तमाम स्टाफ इकठ्ठा हो गया। मालिनी चिल्ला चिल्ला कर शामराव को बुरा-भला बोल रही थी। अच्छा हुआ कि शामराव उस समय कार्यालय में नहीं था वह किसी काम से प्रेस में गया हुआ था। अगर उस समय वह मालिनी के हत्थे चढ़ जाता तो उसकी खैर नहीं थी। किसी तरह मालिनी को शांत किया गया और मुँह धुलवाया गया। मुँह धोकर वह गाल फुलाए अपनी कुर्सी पर बैठी रही। अभी भी उसके चेहरे पर थोड़ी कालिख मौजूद थी।
उसकी सहेली, वंदना शानबाग उसकी बगल में बैठी खुसुर-फुसुर कर रही थी। समीर जुंदाल, एक ट्रेनी पत्रकार, अपनी सीट पर बैठा खुद को व्यस्त दिखा रहा था पर उसका ध्यान पूरी तरह वंदना और मालिनी की बातचीत पर लगा हुआ था। वंदना मालिनी को शामराव को अच्छे से सबक सिखाने की पट्टी पढ़ा रही थी। तभी शामराव ने कार्यालय में कदम रखा। वह यहाँ घटित हो चुकी घटनाओं से अनभिज्ञ था। मालिनी उसे खा जाने वाली नज़रों से घूर रही थी। शामराव ने उसे ऐसी नज़रों से देखा मानो मक्खी उड़ाई हो और अग्निहोत्री साहब के केबिन में घुस गया। भीतर घुसते ही अग्निहोत्री साहब की डांट-डपट और शामराव की भी तेज आवाज़ें सुनाई पड़ी। एक मिनट बाद शामराव क्रोध से भरा बाहर निकल आया तो उसके पीछे अग्निहोत्री साहब बाहर आए तो उनका चेहरा भी क्रोध से लाल था। कांफ्रेंस रूम में आकर वे दहाड़े, सभी लोग कान खोलकर सुन लें, मैं अनुशासनहीनता कदापि सहन नहीं करूँगा। यह अखबार का दफ्तर है या कोई केजी की क्लास नहीं, जहाँ रात-दिन बच्चों में मार पीट, छीना झपटी हो। अगर अब मुझे कोई शिकायत मिली तो मैं कठोर एक्शन लूँगा। इतना कहकर वे फिर अपने केबिन में घुस गए। किसे पता था कि यह उनके अंतिम दर्शन थे!
क्या अग्निहोत्री साहब मर गए?
पढ़ें भाग-3 में