विवाह: एक नई शुरुआत!
विवाह: एक नई शुरुआत!
ठक! ठक! ठक !
दरवाज़े पे ज़ोर से खटखट करते हुए देव को महसूस हुआ की रात के ग्यारह बज रहे हैं। सब सो गए होंगे। इसलिए उसने खटखट धीमे कर दी। बाहर पूरा भोपाल झमझमा रहा था। आज तो बड़े तालाब का मकबरा डूब ही जाएगा। वो सोच ही रहा था की कार में सो जाए इससे पहले छोटू ने आंखे मींचियाते हुए पूछा, "कौन?"
"अरे साहब आप? इतनी रात… मैं जगाऊँ सबको?"
देव ने ड्राइंग रूम में एक तरफ अपना ब्रीफ़केस रखते हुए छोटू को पानी का इशारा किया।
देव को पूरे तीन दिन बाद देख कर और खुद आधी नींद में होने पर छोटू को समझ में नहीं आ रहा की वो कैसे स्वागत करे। प्यूरीफायर से पानी लेते वक़्त भी उसकी आँखें झपक रही हैं और पानी की धार कभी कभी गिलास के अगल बगल गिर रही है। जल्दी-जल्दी में एक गिलास पानी ले आया, जबकि उसे सिखाया गया है की पानी ट्रे में जाता है और जग भी साथ रहता है। अभी १४ साल का लड़का ही तो है छोटू।गलती करने पर सॉरी भी नहीं बोल पाता।
"मेमसाहब सो गई हैं?" देव ने अंजलि के कमरे की तरफ देखते हुए पूछा। देव कभी अंजलि का नाम नहीं लेते, बस मेमसाहब कहके बुलाते हैं।
आधी नींद में पानी का गिलास पकड़ाते छोटू ने हामी भरी। "आप तो हल्का भीग गए हैं। मैं तौलिया लाता हूँ।" छोटू फिर नींद में चला।
नहीं तुम जाओ अपने कम्बल में, मैं मैनेज कर लूँगा।
छोटू को तो जैसे इसी बात का इंतज़ार था। क्या बढ़िया आँख लगी थी उसकी। अब जाके फिर अपनी गुलगुली तकिया में घुसेगा। स्टोर रूम ही उसका कमरा है। जमीन पे थोड़ी न सोता है छोटू, उसका अपना बेड है वहां पे। वही बेड, जो देव का था शादी से पहले।। पानी ख़त्म कर के और ब्लेजर हेंगर में टांग के देव ऊपर की तरफ गया।
अंजलि के कमरे का दरवाज़ा बंद था पर अंदर से लॉक नहीं था। अंदर कलर्ड बल्ब की हलकी सी रौशनी अंजलि के गुलाबी चेहरे पे पड़ रही थी। चेहरे के निश्छल और मासूम भाव से लग रहा था की वो गहरी नींद में है। हाथ के खड़े हुए रोएं कह रहे थे की उसे ठण्ड लग रही है। चादर एक तरफ भाग रही थी और वो दूसरी तरफ। देव ने लाइट नहीं जलाई।वो उसके किसी बच्चे जैसी शांत नींद को ख़राब नहीं करना चाहता था। बस ऐसी का टेम्परेचर थोड़ा बढ़ा कर २४ पर कर दिया। देव ने उसकी आधी मुस्कान से खिले चेहरे को देखा और मन में कहा "इसका क्या दोष है? उसके बालों पे हाथ फेरा और होठों के पास चूम लिया। अंजलि की आधी मुस्कान का चाँद पूरा हो गया। उसे लगा की उसे सपने में किसी ने चूमा है। उसने ख्वाबों में ही करवट ली। मन की किसी इंद्री ने कहा, नहीं! ये स्पर्श तो वास्तविक है। नींद ने कहा, ये सपना है और उसने एक अलसाई करवट और ली।फिर मन ने कहा नहीं उसे किसी ने सच में चूमा है। इस उधेड़बुन में उसकी ऑंखें खुलीं, तब तक देव उसके पैर के पास बैठे अपने जूते उतार रहे थे। उसकी नींद काफूर हो गई। उसने जल्दी से अपना दुपट्टा ढूँढा, पर मिला नहीं।
आप! आप कब आये? ज़्यादा देर तो नहीं हुई? मैं कब से सो रही हूँ? आपने मुझे जगाया क्यों नहीं?
पूरे तीन दिन के बाद देव को देख के वो समझ नहीं पा रही है की वो क्या करे? वो अपना सपना भूल गई है की क्या देख रही थी वो। उसकी हालत ऐसी है, जैसे किसी चीज़ को वो बहुत देर से ढूंढ रही हो और वो अचानक सामने मिल गई हो। उसकी आँखों की चमक उसकी ख़ुशी बता रही है और आवाज़ की लरज उसका संकोच। वह अभी पूरी तरह खुल नहीं पायी है देव से। उसे लगता है की देव ने उसे अभी हक़ नही दिया है। अंदर से कई सवाल एक साथ उभरे पर मुंह से निकले नहीं। देव के चेहरे को देखते ही खो गए। देव ने उसे मुस्कुरा के देखा, और जूते मोज़े ड्रॉर में रखने चले गए।अंजलि बिस्तर पे आलथी पालथी मार के बैठ गई। वो सोचने लगी ३ महीने हो गए हैं शादी को, देव ने कभी उसे इस तरह मुस्कुरा के नहीं देखा। या सच कहूँ तो शायद उन्हें कभी मेरे चेहरे की तरफ ध्यान से देखा ही नहीं। हमेशा अपने में खोये खोये से रहते हैं। उलझे उलझे से रहते हैं। मैंने कभी कुछ पूछा तो दूसरी तरफ देख कर जवाब दे दिया। जैसे किसी जल्दी में रहते हैं। कटे-कटे रहते हैं। मैंने कुछ माँगा तो अलमारी और पर्स की तरफ इशारा कर दिया और कहा की, “सब तुम्हारा तो है। जो चाहे ले लो। निष्ठां को साथ लिए जाओ।” अब ऐसे कहेंगे तो किसका मन करेगा शॉपिंग करने का? मज़ा तो तब है जब तुमसे अटक के, तुमसे ज़िद करके अपने लिए कुछ खरीदूं। और तुम्हें पहन के दिखाऊं। या तुम्हे साथ ले के जाऊं और अपनी पसंद से तुम्हारे लिए कुछ खरीदूं। कई कई दिनों तक घर से बाहर रहते हैं, जैसे मुझसे भाग रहे हों। या अपने आप से भाग रहे हों पर आज नहीं। आज तो सामने हैं और मुस्कुरा के देखा है। समझ में नहीं आ रहा है की क्या पूछूँ? मन तो है की इनकी गोद में जाके बैठ जाऊं और गिला करूँ की कहाँ थे इतने दिन आप? आपको पता है आपके बिना ये घर मुझे खाने को दौड़ता है। मैं सारा दिन इंतज़ार करती हूँ। माँ पापा को भी नहीं पता होता की कहाँ हैं आप। एक बार निष्ठा से पूछा तो कहने लगी, की तुम्हारे पति कहाँ है तुम्हे खबर ही नहीं। अब आपको मुझे मनाना पड़ेगा नहीं तो बात ही नहीं करूंगी आपसे। पर बात होती कहाँ है आपसे। बस काम की बात होती है। हाँ, हूँ जैसे मैं आपकी सेक्रेटरी। आदमी तो अपनी सेक्रेटरी से भी फ़्लर्ट कर लेता है और आप तो अपनी पत्नी से भी नहीं करते।
मुझे तो पहले से ही शक़ था की दाल में कुछ काला है। जब आपने साफ़ कहलवाया था की दहेज़ के हम सख्त खिलाफ हैं और सीधी सादी लड़की चलेगी। सीधी सादी एक मैं ही मिली थी मेरे घर वालों को। मेरी कजिन नेहा से ब्याह हो जाता न तो उँगलियों पे नाचते आप। जो इतने बिज़ी बिज़ी रहते हैं। मुझे फंसा दिया। मैं भी, आपको देखा नहीं की फ़िदा हो गई। तुरंत हाँ कर दी। मुझे क्या पता था की मेरी ज़िन्दगी कितनी परेशां होने वाली है। सहेलियों ने कहा की कुछ न कुछ खोट ज़रूर है लड़के में। इतना अच्छा कोई कैसे हो सकता है? पर्सनालिटी, पैसा सब कुछ, और एक भी डिमांड नहीं। क्या क्या कहा सबने, और आप हैं की कुछ बोलते ही नहीं। शादी तय होने से लेकर शादी होने तक आपने बात ही नहीं की। मुझे लगा था की, इंगेजमेंट में आप मेरा नंबर मांगेंगे, पर नहीं। आपने रसगुल्ला खाया और चले गए। सारे सपने अकेले ही देखे मैंने। अभी भी आपका फ़ोन नंबर नहीं है मेरे पास। ऑफिस का दे रखा है। सहेलियों ने कहा, "तुमसे बात नहीं होती? तब तो ज़रूर कुछ बात होगी।आजकल तो हर लड़का शादी तय होने से ही पीछे पड़ा रहता है, ज़रूर इसने कुछ काण्ड कर रखे होंगे।" और आप हैं की कोई इंटरेस्ट ही नहीं। पूरे टाइम आपके बारे में गेस ही करती रह गई मैं। कैसे होंगे आप? क्या पसंद होगा? क्या नहीं पसंद होगा? एक तस्वीर पड़ी थी आपकी। १०० बार ज़ूम कर कर के देखा। कैसा लड़का है? फेसबुक डीएक्टिवेट है। व्हाट्सएप्प यूज़ नहीं करता। हद है। आपको परखने की एक एक तरकीब निकाली सहेलियों ने। सारी लड़कियां सीआईडी बन गई। पता करवाया, सबकी अच्छी ही राय आयी। गाज तो मुझपे ही गिरनी थी। आपके दोस्तों से मिलना हुआ। हुआ कुछ नहीं, रिजल्ट ये निकला की आपके दोस्त मोहित ने मेरी एक सहेली पटा ली। फिर एक तरकीब नेहा को सूझी। जूता चुराई की रस्म के तीन गुना रकम की डिमांड की। मैंने नेहा को भावों से डांटा भी, की लालची! ये तो नहीं तय हुआ था। पर डांटा आधे मन से ही था। देखना ये था की आप क्या कहते हैं। कोई पापाभक्त होता तो वहीँ पकड़ा जाता। पर आप तो आप हैं। चेहरे के भावों पे कोई परिवर्तन नहीं। वेदी पर बैठे बैठे ही मोहित को इशारा किया, बिना कुछ बोले। उसने पैसे निकाल के दे दिए। सारी सालियाँ झेंप गईं। शर्म के मारे एक पैसा नहीं लिया गया। सारे पैमानों से परे हैं आप।
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देव जूते मोज़े उतारके बिस्तर पे आराम से बैठ गए थे। अंजलि के हाथों को अपने हाथ में लेके बोले, "ऑफिस के काम से बाहर गया था, लौटते वक़्त बारिश की वजह से देर हो गई। तुम सो जाओ, थकी होगी।"
इतना अधिकार पहली बार मिला है अंजलि को। उसने सोचा की वो सारे सवाल पूछ ले, जो रह रहके उसके मन में उठते हैं। उसे लगा की वो सारे हक़ जता सकती है। क्या खाक थकी होगी वह? सामने बैठी पुलकित हुई जा रही है।
आपके बाल तो भीगे हुए हैं। लाइए मैं पोंछ देती हूँ।" उसने देव के बालों का पानी झाड़ने के लिए हाथ आगे बढ़ाए, पर हाथ आधे रास्ते में ही संकोच से ठिठक गए। देव ने खुद ही सर उसके हाथों के पास झुका दिया। देव के बाल घुंघराले हैं। अंजलि ने पहली बार उन बालों में हाथ फेरा है।उसकी आँखों में अजीब सी चमक है।
‘अरे वो गैराज से पोर्च तक आने में भीग गया। तुम परेशान मत हो।कुछ पड़ा है फ्रिज में?"
"आपने कुछ खाया नहीं?” वो विस्मित होकर बोली, जैसे उनके न खाने में उसका का ही अपराध हो।
देव ने न में सर हिलाया।
रुकिए, मैं अभी कुछ बना के लाती हूँ आपके लिए।”अंजली ने उठना चाहा।
रहने दो! अंडे पड़े हैं फ्रिज में? मैं आमलेट बना लूँगा। देव ने अंजलि के चेहरे पे हाथ फेरा।
नहीं अंडे तो नहीं हैं, मैं कुछ बनाती हूँ न? अंजलि ठीक से बोल नही पा रही है। देव ने उसके चेहरे पे हाथ फेरा है। वो ऐसी दीवानी हुई है की ये मुझे आधे घंटे का टाइम दें, मैं खीर पनीर सब बना दूं।
अच्छा क्या बनाओगी? नाहक परेशान होगी। मेरी आदत है भूखे सो जाने की। कई रातें सोयीं हैं।
वो आटा फ्रिज में रखा है, बस ५ मिनट में सब्जी बना देती हूँ। आप चेंज करिये! खाना रेडी है।
"अच्छा ठीक है। बस कुकर मत चढ़ाना, सारा मोहल्ला जाग जायेगा।" कहकर देव हॅंस पड़े और लोअर टीशर्ट लेकर बाथरूम में चले गए। देव मजाक भी करते हैं, आज पहली बार जाना है अंजलि ने।
आज अंजलि के अंदर ख़ुशी समां ही नहीं रही है। आलू काटते वक़्त उंगली काट ली है पर फिर भी मुस्कुराये जा रही है। सारी बातें चल रही हैं उसके दिमाग में। आज वो देव से सब कह देगी जो शिकवे गिले उसने इतने दिनों से पाल रखे हैं। सारी धृष्टता के साथ। वो फिर सोच में डूब गई। उसके दिमाग में चंचल भाव आ रहे हैं। आज देव ने उसके हाथों को अपने हाथों में लिया। ऐसा सिर्फ अंगूठी पहनाते वक़्त हुआ था या एक बार सड़क पार करते वक़्त। दोनों ही बार उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। एकदम बेदिल से। अंगूठी ऐसे पहना रहे थे जैसे नट कस रहे हों। सड़क ऐसे पार करवाई जैसे जिम्मेदार नागरिक हों। पर आज नहीं। आज तो मुस्कुरा के देख रहे थे। सीधा आँखों में। कितनी गहराई है उन आँखों में। आज तक इन्होंने मेरे कंधे पे हाथ तक नहीं रखा। बस एक बार रखा था, फोटोग्राफर के कहने पर।ऊपर से काँप ऐसे रहे थे जैसे किसी को धोखा दे रहे हों। और हमारी सुहागरात? वो तो एकदम आउट ऑफ़ सिलेबस थी। बस इतना पूछा, "घर पसंद आया? माँ कैसी लगीं? निष्ठां से बच के रहना, बहुत शैतान है।"
बाकी लोगों के पति पूछते होंगे। “मैं” कैसा लगा तुम्हे? जैसे खुद विष्णु के अवतार हों सब। पर आप तो आप हैं। कम्फ़र्टेबल तो हो न? थक गई होगी। आराम कर लो! और खुद तकिया लेके सो गए। पिछले तीन महीने से आराम ही कर रही हूँ।इतनी थकी नहीं थी मैं। और हमारा वो हनीमून? थोड़ी सी लापरवाही दिखाती तो आपकी माताजी ने लगभग वैष्णो देवी बुक ही कर दिया था। खुद भी लटक लेंती। तीनो लोग चुन्नी बांधे जय माता दी करते! मैंने इच्छा जताई थी पैलेस ऑन व्हील्स की। पर उस पे भी पानी फेरा आपने। राजस्थान पहुँच के खुद जैसे गाइड बन गए और मुझे बना लिया हिस्ट्री की स्टूडेंट। गोलकोंडा का किला दिखा रहे हैं।मेरी गोल गोल आँखों का गिला नहीं दिखा इन्हें। कौन मरा, किसका मकबरा इससे क्या मतलब है मुझे? तुम पास आओ न मेरे। मेरे कंधे पे हाथ रखके दिखाओ न ये सब कुछ।शूटिंग सीखने को कहा तो भी अपने दूर से इंस्ट्रक्शन दिया।फ़िल्मी तरीके से पीछे से पकड़ के नहीं सिखा सकते थे बन्दूक चलाना। मुझे क्यों लगता है की तुम दूर भागते हो मुझसे।
जब भी भावों में बह जाती है, वह देव को तुम कहती है। कई बार सपनों में कल्पना कर चुकी है देव के साथ की। खाली वक़्त यही सब सोचती है वो। उसका अपना कोई अतीत तो है नहीं। एक लड़का पसंद आया था उसे बी.ए की क्लास में। इससे पहले की वो आगे बढ़े, भाइयों ने पीट दिया उस बेचारे को। देव। मेरे देव।
अंजलि रोटी बेले जा रही है और पुरानी बातों में खो के मुस्कुराये जा रहे है। वो रोटी बेल रही है और देव भी किचन में आके खड़े हो गए हैं। देव आ गए हैं तो अंजलि के हाथ और कांपने लगे हैं। अभी 24 ही साल की है अंजलि और देव 28 के। वो सामने होते हैं तो अंजलि और सिहरने लगती है। पहली बार जब घर आए थे तब भी चाय छलक गई थी उससे। किसी ने जाना नहीं था बस देव ने जाना था। कुछ कहा नहीं था। आज भी ऐसा हो रहा है। रोटियां गोल नहीं बन रही हैं। फूल नहीं रही हैं। सब्जी चलाना भूल जा रही है वो। आज उसे ढेर सारी बातें करनी हैं। सारी बातें जो निष्ठा ने उसे बताई है। एक दिन खुद भी वो जासूसी करने गई थी उनके स्टडी रूम में। जब धीरे-धीरे आवाज़ें आ रही थीं। परदे से झाँक के देखा था उसने। पर ये तो मोहित से वीडियोचैट कर रहे थे। पहले उसे लगा की कहीं ये गे वे तो नहीं हैं। ह्यूमन राइट्स के चक्कर में मैं झेल जाऊँ। पर नहीं। निष्ठा ने बताया था की इनकी एक गर्लफ्रेंड थी कॉलेज टाइम में। काव्या। घर में सब जानते थे उसे। घर भी आयी थी दो बार। इनका प्यार बहुत परवान चढ़ा था। फिर पता नहीं अचानक क्या हुआ। ये घर से कम कम निकलने लगे, उदास उदास रहने लगे। निष्ठा कह रही थी की 'बहुत सुन्दर थी'। बहुत सुन्दर? मेरे जैसी होगी। मिल जाए तो मैं उसका मुंह तोड़ दूं। पहले अपनी तरफ से थैंक्यू बोलूं और इनकी तरफ से दो घूंसे दूं। क्या हाल बना रखा है इन्होंने। क्या कह रहे थे?कई बार भूखे सोएं हैं। रातें जागी हैं। आज भी सिर्फ दो रोटियां खायी हैं।
खाना खा के देव बिस्तर पे आ गए हैं। अंजलि भी पास बैठी हुई है। उसे पता है की वो लेट जाएगी तो देव भी तुरंत सो जाएंगे। सोते क्या हैं, स्विच ऑफ होते हैं। फिर सीधे ६ बजे स्विच ऑन होते हैं। आज नहीं। अंजलि सारी बातें समझती है। वो आज देव को सोने नहीं देगी। देव ने अंजलि की कंधे पे हाथ रखा है। स्पर्श की गर्मी से वो पिघल रही है। जैसे उनके हाथों से ही प्रेम का संचार हो रहा है। एक रात ऐसे ही देव ने कमर पे हाथ रखा था। सिहर सी गई थी अंजलि। कुछ देर की मीठी सिहरन के बाद उसे महसूस हुआ की वो नींद में हैं। उस हाथ को सीने से लगाए सारी रात सोई थी अंजलि।पर आज नहीं। आज देव नींद में नहीं हैं। आज वो पास बैठे हैं, मुस्कुरा के देखा है और चेहरे पे हाथ फेरा है। बाहर सारा शहर भीग रहा है।खिड़की के पास लगी रातरानी महक गई है। अंजलि के रोम रोम से भी खुशबू फूट रही है। वो चाह रही है की देव के आगोश में सिमट जाए, मचल जाए। पर झिझकती है। देव ने कहा, 'अपनी आँखें बंद करो'
उसने आँखें बंद कर दी हैं और चेहरा आगे कर दिया है, होंठ सबसे आगे हैं। जैसे आँखें बंद होने पर होठों का ही काम हो। उसके शरीर में एक मीठी सिहरन दौड़ रही है। उसकी आँखें बंद है पर बाकि सारी इन्द्रियां सजग हो गई हैं, वो महसूस कर सकती है कदमो की आहट से की देव कमरे के दूसरे तरफ गए हैं, या शायद कमरे से बाहर। वो सोचती है की एक आँख चुपके से खोल ले, पर नहीं खोलती। देव वापस आएं हैं, उसके गले पे कुछ गुदगुदी हो रही है। देव ने आँखें खोलने को नहीं कहा है। वो आइना लेके आते हैं और ऑंखें खोलने को कहते हैं। उसके गले में एक हार है। वही हार जिसपे उसकी आँखें राजस्थान में टिकी थीं, और वो मांग नहीं पायी थी। वो उत्साह से भर जाती है। इस छोटे शीशे में बात नहीं बन रही है। वो भाग के सिंगारदान के आदमकद शीशे के सामने जाती है। वो हैंडीक्राफ़्टेड नेकलेस उसके गोरे गले पे खिल उठा है। वो सोचती है की ये ब्लाउज नहीं सूट कर रहा, अधूरा लग रहा है। चेंज कर के दिखाऊं क्या? देव उसके पीछे आ के खड़े हो गए हैं। अब उसका श्रृंगार पूरा है। उसने पद्मावत में पढ़ा है की खूबसूरत स्त्री वो होती है जिसका पति उसे प्यार करता है। वो पलट के उसके बाजुओं में सिमट गई है। वो मनुहार में पूछती है, "कहाँ थे तुम अभी तक? मैंने तुम्हे कहाँ कहाँ नहीं ढूँढा।” देव ने उसे किसी बच्चे की तरह समेट लिया है। कुछ आंसू देव की आँखों से ढुलक कर अंजलि के गालों पर आ गए हैं।
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सुबह के ८ बज गए हैं। दोनों एक दुसरे की बाहों में बेसुध पड़े हैं। निष्ठा कॉफ़ी ले के आयी है। रख के वापस चली जाती है। देव मुस्कुरा के अंजलि की तरफ देखते हैं और कहते हैं, मुझे सुबह चाय नहीं कॉफ़ी पसंद है।
अंजलि मुस्कुरा पड़ती है, "और आप ३ महीने से बिना कुछ कहे चाय पी रहे हैं? और मैं आपके साथ बैठके चाय पीती हूँ की आपको अखबार पढ़ते देख सकूँ?" देव हंस पड़ते हैं।
पता है आप पे ब्लू शर्ट बहुत जंचती है, क्रीम मत पहना करिये। वो जाके उनकी बाहों में सिमट गई है, और बच्चों की तरह अटक रही है। अगली बार मूवी देखने चलेंगे तो गॉडजिला नहीं देखूंगी मैं। कोई ‘नो स्ट्रिंग्स अटैच्ड’ टाइप दिखाइए। और निष्ठा के साथ तो बिलकुल नहीं जाउंगी। और आपके लिए रॉयल ब्लू कलर की शर्ट खरीदनी है। और हमारी बेटी होगी न तो उसका नाम देवांजलि रखूंगी। और।और...
देव अपना मोबाइल उठाते हैं और किसी अननोन नंबर पे मैसेज करते हैं, "शादी मुबारक हो!!"