पर्यावरण के बहाने
पर्यावरण के बहाने
वन्या एक अच्छी चित्रकार थी और वह स्कूल में बच्चों को चित्रकला विद्या में पारंगत करने में जी जान से लगी हुई थी। वन्या आज बेहद खुश थी, क्योंकि आज उसके स्कूल के विद्यार्थियों को बेस्ट चित्रकार से सम्मानित किया जा रहा था। यह सिलसिला लगातार चलता रहा और पेंटिंग एवं वाल पेंटिंग की प्रतियोगिता के लिए जब वन्या को बतौर जज का आमंत्रण मिला तो वह खुशी से फूली नहीं समायी।
वन्या को प्रकृति से प्रेम था, अतः वह इस आमंत्रण को ना नहीं कर सकी। वन विभाग ने इस बार ‘‘सहेजो वन- बचेगा जीवन” की थीम पर प्रतियोगिता आयोजित की थी। प्रतियोगिता में पेंटिंग के साथ वॉल पेंटिंग को भी आधार बनाया गया था। बच्चों ने एक से बढ़कर एक चित्र बनाये थे। अब निर्णायकों में तीन जजों को अपने फैसले सुनाने थे। इनमें से एक वन विभाग से और एक सीनियर चित्रकार एवं वन्या को अपना ओपिनियन एक सीट पर तैयार करके देना था। वन्या उठकर हॉल की दीवाल पर लगी पेंटिंग को निहार रहीं थीऔर पीछे पीछे उनके वन विभाग का अमला भी साथ साथ हो लिया।
वन्या ने महसूस किया कि उसका ध्यान पेंटिंग पर था और वहां के लोगों का ध्यान वन्या पर था। तभी वन विभाग का अधेड़ उम्र का एक अधिकारी फुसफुसाया- देखो मैडम की चाल कैसी हिरणी जैसी है और हवा में हँसी का एक ठहाका गूंज उठा। इसके बात न जाने क्या-क्या बातें हो रही थी, लेकिन वन्या की खुशी अब काफूर हो चुकी थी। वन्या ने सोचा था कि यहाँ पर्यावरण को बदलने की चिंता होगी, लेकिन यहाँ का तो वातावरण ही दूषित है। उसे यहँ ऐसा लग रहा था कि यहँ जंगलराज है। उसने जैसे -तैसे अपनी मूल्यांकन की सीट जमा की और वह बिना परिणाम जाने वहँ से वापस आ गयी।
उसके जाने के बाद एक लोमड़ी जैसा धूर्त कर्मचारी बोला- साहब आप तो अब भी काफी रंगीन मिजाज हो।
गेंडे जैसी काया का वह अधिकारी बोला- बंदर कितना भी बू़ढ़ा हो जाये, वह कुलाटी मारना नहीं भूलता है। सभी बंदर की तरह खो-खो करके हँसने लगे।