आंखों की दास्तां
आंखों की दास्तां
मेरे आंखों के सामने पता नहीं वह तस्वीर क्यों बार बार उभर रही है। जब भी मैं शांति से कुछ करने को बैठता या फिर पढ़ने बैठता तो वो तस्वीर बार-बार मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती और यू कहें तो मेरा ध्यान उसी तस्वीर की ओर केंद्रित हो जाता और उसके बारे में कुछ लिखने का दिल कर जाता।
वास्तव में, वह तस्वीर में मुझे एक वृद्ध पुरुष जिसके उम्र करीब 70 के आसपास है वह दिखाई देता, उसके पूरे शरीर में झुर्रियाँ आ गयी थी, शायद ये उसके ढलती उम्र की वजह से था। खास तौर पर झुर्रियाँ उसके चेहरे पर साफ साफ दिखाई दे रही थी, जैसे मानो उसके चेहरे पर अलग से झुर्रियों की परत सी लगा दी गई हो। वह कुछ झुक सा गया था, शायद वो अपने जवानी के दिनों में लंबा रहा होगा, लेकिन इस उम्र में उसकी शरीर में थोड़ा टेढ़ापन सा आ गया है। शायद यह झुकाव और टेड़ापन उसके मन के अंदर दबी कुछ बोझ के कारण तो नहीं! एक फटे पुराने धोती और एक स्वेटर जो कि हाथ से बुना हुआ नहीं है अक्सर यहीं रूप में वह मेरे आंखों के सामने प्रकट होता। शायद यह स्वेटर उसे कोई विद्यार्थी ने दिया होगा, क्योंकि स्वेटर का रंग मैरून था ,जो कि आमतौर पर हमारे यहां स्कूल ड्रेस के रूप में उपयोग किया जाता है। उस वृद्ध ने एक बीड़ी सुलगा रखी है और उसे वह कुछ सोचते हुए पी रहा है और उसके धुएँ को इस तरह हवा में छोड़ रहा है जैसे चिमनी से निकलते हुए धुआँ आसमान से मिलने को बेताब सी हो रही हो और अंगड़ाई भर्ती हुई ऊपर की ओर जा रही हो। वह एक कॉनिक्ल टोपी पहन रखा है, जो कि उसके दोनों कनपटी यों को ढक रखा है जिसे कारण मैं उसके बालों को नहीं देख सकता।
अभी मैं अपनी नजर उसके टोपी पर से हटाया ही था कि मेरी नजर उसके निढाल आंखों पर पड़ी। उसके आँख स्थिर होते हुए भी अपने अंदर दुखों और कष्टों का सागर छुपा रखी थी। उसके आंखों से उसके कठिनाइयां और दुख झलक रहे थे। वो हँसना भी चाह रहा था और वो हँस भी रहा था, लेकिन उसकी आँख जो की दुखों और कष्टों का दरिया बन चुकी थी जिसके कारण उसकी हँसी उसके चेहरे पर उजागर नहीं होने दे रही थी।
पहली बार में किसी की आंखों को इतनी गहराई से भांपा था और आंखों में इतनी दर्द समेटे हुए उस चेहरे को जो कि मेरे लिए बिल्कुल अनजान था। इस वृद्ध के जगह और कोई होता तो शायद आत्महत्या कर चुका होता। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया यह बहुत ही सख़्त है कठोर है और मरने के बजाय अपने परेशानियों को दूर करने की सोच रहा है तभी तो इसके चेहरे पर मुझे पूर्ण रूप से संतोषजनक आव भाव दिखाई दे रहे हैं।
ऐसी दर्द भरी आंखें मैंअक्सर फिल्मों में देखा करता हूं जब किसी किसान की फसलें तबाह हो जाती है और अगर ग़रीब किसान की अपनी जमा पूंजी भी डूब जाती है तो फिल्म निर्देशक इस तरह के दर्द भरी आंखों के साथ उस किसान की चित्र का फिल्म में प्रस्तुति करते हैं। और ऐसी निढाल दर्द भरी आशापूर्ण आंखें आपको सब्जी या मछली बाजार में देखने को मिल सकती है ,जहां सैकड़ों की तादाद में लोग अपना व्यापार कर रहे होते हैं जिनकी बिक्री हो रही होती है उनकी तो ठीक है लेकिन जिन की नहीं हो रही उसकी आंखों में इस तरह की असंतोष और आशा की किरणें देखने को मिल सकती है, जो कि मैं यह वृद्ध के आंखों में देख रहा हूं। लेकिन वहां तो व्यापारियों की निगाहें इसलिए ऐसी होती है क्योंकि उसकी आंखें तलाश कर रही होती है कोई ग्राहक की ताकि उसके मछली और सब्जी बिक सके और उस में लगाई गई पूंजी भी निकल सके।
परंतु इस वृद्ध की आंखों में मुझे ऐसी कोई भी ग़म दिखाई नहीं रहा, यह दर्द इसकी आंखों में शायद इसलिए है कि इसके जवान बेटे ने इस उम्र में उसे घर से बाहर निकाल दिया हो , वह भी अपनी धर्म पत्नी के बहकावे में आकर या तो उसकी जवान बेटी की शादी में दहेज़ को लेकर कुछ अड़चन आ रही है। जिसकी चिंता के कारण उसकी आंखों से उसके कष्ट मुझे साफ़ साफ झलक रहे थे, या उस वृद्ध के आंखें मुझे कुछ और संदेश देना चाह रही है कहीं यह संदेश तो नहीं ये वृद्ध अपने मृत्यु के करीब है, और उसे अपने जिंदगी से कुछ शिकायत हो, ये दर्द उसके पश्चात के तो नहीं है? अगर वह चेहरा वो वृद्ध सच का होता तो मैं कुछ उसके जिंदगी के बारे में पूछ भी लेता, लेकिन मैं उस तस्वीर से कैसे पूछूं और तो और अब वह तस्वीर भी मुझे दिखाई नहीं दे रही है और मेरी आंखों से ओझल हो चुकी है।