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16. "लक्ष्य"

16. "लक्ष्य"

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जिला शिक्षा अधिकारी से मिलने एक ग्रामीण आता है और कक्ष के बाहर बैठे चपरासी को अपने आने का कारण बताता है ...


"मेरा बेटा पढ़ने में बहुत होशियार है, लेकिन गांव में आठवीं तक ही स्कूल है । मैं खेतों में मजदूरी करने वाला मामूली मजदूर अपने बेटे को आगे पढ़ने के लिए शहर भेजना चाहता हूँ । गांव के प्रधान और पटवारी साहब ने बताया जिला शिक्षा अधिकारी चाहें तो सरकार द्वारा मेरे बेटे का शहर में रहने और पढ़ने का प्रबंध हो सकता है । 


चपरासी ग्रामीण से कहता है वो सही जगह आ गया है साहब उसकी मदद जरूर करेंगे ।


"तुम्हें शायद मालूम नहीं हमारे साहब कितने संघर्ष के बाद इस पद पे पहुंचे हैं ....ये जब आठ बरस के थे तब इनके पिता का स्वर्गवास हो गया था । तीन छोटी बहनें और माँ की सारी जिम्मेवारी इनके छोटे छोटे कन्धों पे आ पड़ी । रिश्ते में सब थे लेकिन किसी ने कोई मदद नहीं करी । हमारे साहब ने अपनी माँ और बहनों का पेट भरने के लिए बस्ती में जा कर आटा मांगना शुरू किया । सवेरे जल्दी उठकर घर घर जा कर आटा माँगते और फिर अपने स्कूल जाते, इनकी बहनें और माँ भी कागज़ की थैलियां बनाती जिसे साहब सब्जीवाले फल वाले ठेलों पर जा कर बेचते । थैलियों से भी पूरा नहीं पड़ता फिर बहनों और खुद को पढ़ाना भी चाहते थे, तो सवेरे स्कूल जाते और दोपहर में बच्चों के टॉफी बिस्किट का खोमचा लगाते । 


जरूरतें बढ़ती गई लेकिन कमाई नहीं बढ़ी । और एक दिन वो भी आ गया जब साहब को अपना घर अपना शहर छोड़ना पड़ा जानते हो क्यों ? इनके शराबी और बेईमान चाचा ने धोखे से इनका हिस्सा भी अपने नाम करवा लिया, और इन्हें दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर कर दिया । 


दूसरे शहर आ कर भी हालात नहीं सुधरे, छोटी सी टीन टप्पर की कुटिया जो गर्मी में भट्टी और बारिश में झरने की तरह टपकती थी और जाड़ों में ठिठुरते हुए रात बितानी पड़ती थी ।

अखबार बांटने से लेकर बच्चों की ट्यूशन से अपने परिवार का मुश्किल से पेट भरते थे ।

असंख्य प्रयासों के बाद भी इन्हें सफलता नहीं मिली फिर भी इन्होंने हिम्मत नहीं हारी और हालात से मुकाबला करते रहे मुसीबतों के सामने डटे रहे और आखिरकार इनके संघर्ष की जीत हुई । हमारे साहब ने आई ए एस की परीक्षा पास की और आज इतने बड़े पद पे विराजमान है । इसलिए मैं कहता हूँ जीवन में चाहे जितनी बाधाएं आये इंसान को हौसला नहीं छोड़ना चाहिए । असफलता में ही सफलता का मार्ग छिपा है । बस आवश्यकता है अपने लक्ष्य को निर्धारित कर निरन्तर प्रयास करते रहना । इसकी जीती जागती मिसाल हैं हमारे साहब |"


जाओ भाई जाओ जरूर मिलो हमारे साहब से और अपने बेटे को भी इनके संघर्ष की गाथा जरूर सुनाना ।



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