पश्चाताप की ज्वाला पार्ट-2
पश्चाताप की ज्वाला पार्ट-2
(भाग-4)
जिया की छोटी बेटी जब एक साल की हुई तो नाना ने बहुत धूमधाम से उसकी सालगिरह मनाने को कहा, जिसके लिए रवीश को खुली रकम दी। बहुत धूमधाम से निक्कू का जन्मदिन मनाया गया। पार्टी खत्म हो गयी थी, सभी मेहमान अपने-अपने घर चले गये। जिया बच्चों को सुला रही थी कि रिया के कमरे से चीखने की आवाजें सुनाई दी, रिया जोर-जोर से चिल्ला रही थी, दीपक उसे बुरी तरह मार रहा था, जिसे सुन जिया से रहा नहीं गया। रवीश और जिया दोनों उसके कमरें में पहुँचे। अन्दर से दरवाजा बन्द था, रवीश ने जोर से धक्का दिया तो दीपक ने दरवाजा खोला, उससे शराब की बू आ रही थी। वह रवीश को धक्का दे वहाँ से भाग निकला, अन्दर रिया रो रही थी। बड़ी बहन जिया से छोटी बहन रिया की हालत न देखी गयी उसने रिया से पूछा दीपक ने ऐसे क्यों किया? अभी पार्टी में तो नार्मल था, ऐसा क्या हो गया? रिया अपनी दीदी की गोद में सर रख रोने लगी तभी माँ वहाँ पहुँची, 'इसके गोद में सर रख क्यों रो रही है, इसी की वजह से तो हुआ।
रिया का बच्चा इतना बड़ा हो गया, उसके लिए तो कभी पैसे नहीं दिए तुम्हारे बाप ने, एक ही बेटी है बस दूसरी मर जाये कोई परवाह नहीं! अरे उसका पति परदेश में रह रहा है, काम धन्धा भी नहीं है उसके पास, उसे देना तो दूर उल्टे पार्टियाँ की जा रही हैं, वो भी लड़की के जन्मदिन की कौन-सा लड़का है जो जन्मदिन मनाया, रिया के बेटे का तो नहीं मनाया जन्मदिन !' तब तक पिता भी वहाँ पहुँच चुके थे चुप हो जा, 'तेरे यही ताने हैं जो जिया बीमार रहती है, जब भी उसे खुशी मिलती है तुम माँ-बेटी और उस आवारा निकम्मे दीपक से ये देखा नहीं जाता !' गुस्से से उनका ब्लड-प्रेशर बढ़ने लगा। रवीश ने उन्हें समझाया कि वह दीपक से कल बात करेंगे कि इस तरह रिया पर हाथ कैसे उठाया। जिया रिया के पास ही रही, उसे अपनी छोटी बहन के लिए दुख हो रहा था, उसे यह उम्मीद न थी कि अब दीपक इतना गिर जाएगा कि पैसे न मिलने पर अपनी पत्नी को ही मारेगा, जिया के दिमाग पर तनाव हावी हो रहा था।
उधर नन्नू निक्कू के माँ -बाप का रोल निभा थपकी देकर लोरियां सुना रहा था। घर में सबके हाल देख वह वक्त से पहले ही बड़ा और जिम्मेदार हो चला था। उसे रिन्कू के ऊपर गुस्सा आ रहा था, वह निक्कू का बिलकुल भी ख्याल नहीं रखती थी। पार्टी में अपनी सहेलियों के साथ रही छोटी बहन को देखा नहीं बस मेकअप लगाए नाच रही थी। कल मम्मी-पापा से इसकी शिकायत लगाऊँगा। उसने नानी की बातें सुन ली थी जो कह रही थी “निक्कू कोई लड़का थोड़े ही है जो इसका जन्मदिन मना कर पैसे खर्च किये, काश निक्कू लड़का होती ! अगर इसे हम लड़कों की तरह कपड़े पहना दें तो फिर तो यह लड़का ही बन जायेगी, और हम किसी को बताएँगे ही नहीं कि यह लड़की है, फिर नानी मौसी भी ताने नहीं देंगी माँ को, कि एक लड़की और हो गयी !" सोचते-सोचते थका हारा नन्नू वही सो गया।
सुबह-सुबह फिर लडाई -झगडों की आवाजें शुरू हो गईं। घर में बच्चे तेज शोर से डर कर उठ गये, छोटी निक्की मम्मा को अपने पास न देख रोने लगी, नन्नू उसे गोद में उठा माँ के पास ले गया जो रात मौसी के पास ही सो गयी थी शोर उन्हीं के कमरे में हो रहा था। रवीश दीपक को बुरी तरह से डांट रहा था जो रात भर घर से गायब नशें में धुत्त अपने आवारा दोस्तों के घर में चला गया था। 'तुम्हें इतनी फ्रिक है साली की तो अपने साथ ही रख लो मेरी इस घर में जरूरत ही क्या, तुम्हीं सब कुछ हो यहाँ तो ! जो तुम चाहते वही होता है, गलती की मैने इससे शादी कर और इस घर में इसे भेजा दोबारा, सुन रिया मै जा रहा हूँ, अपने जीजा और बहन के साथ ही रह! ' तभी माँ बीच में आ गयी, लगी चीखने, 'तू क्यों जाएगा, ये दोनों जायें यहाँ से, जब तक मैं जिन्दा, मेरी रिया और तुझे यहाँ से जाने की जरूरत नहीं है, तुझे पैसे चाहिए मै दूंगी।'
जिया को माँ का यह रवैया पंसद नहीं आया, ऐसा करके वह दीपक के लालच के साथ-साथ उसकी बुराईयों को भी बढ़ावा दे रही हैं। जिया रवीश का हाथ पकड़ कमरे से बाहर ले आयी यह कहते हुए, 'माँ आज के बाद हम दोनों तुम्हारे, तुम्हारे लड़की दामाद के मामले में कुछ नहीं बोलेगे, चाहे जो हो आखिर मै तुम्हारी लगती ही क्या हूँ? सोच लेना तुम्हारी बेटी मर गयी !' रवीश को बहुत गुस्सा आ रहा था जिया के तेवर देख वह चुप हो गये. जिया का यह रूप अपने जीवन में पहली मर्तबा ही देखा था, नन्नू व रिन्कू को सामने देख उन्होंने माहौल बदलने की कोशिश की, 'नन्नू बेटा आज तुम्हारी मम्मा गुस्से में है चलो यहाँ से वरना बहुत मार पड़ेगी !' रवीश के बचपने को देख जिया हँसने लगी। निक्कू जोर-जोर से रो रही थी, जिया उसे चुप कराने लगी, उसे पता था घर का माहौल पूरी तरह बिगड़ चुका है।
माँ को अच्छा बुरा नहीं दिख रहा था ,जिया के दिलों दिमाग पर बहुत असर पड़ चुका था, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करे। एक तरफ माँ बहन और बहनोई थे, तो दुसरी तरफ पति बच्चे और पिता, वह जितना सोचती उतना उलझती जाती, उसके जीने की इच्छा धीरे-धीरे खत्म होती जा रही थी। सब देख-देख रवीश के कदम भी लड़खड़ाने लगे। जिया के मन में पश्चाताप की ज्वाला अपने चरम तक जा पँहुची। वह उसी मनहूस घड़ी को कोसती जब उसने बहन के मोह में उसके पति को घर में बुलाया, वह जान गयी थी अनजाने में ही उसने अपने जीवन को खुद ही उजाड़ लिया। जिया की माँ ने दीपक को नया काम शुरू करने के लिए अच्छी खासी रकम दी, वह सोच रही थी यदि वह काम करने लगेगा तो सुधर जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं बल्कि अब आये दिन रिया को मारता ताने देता और छोड़ने की धमकी देता, रवीश जिया और पिता इस बात को पहले जान चुके थे वह इन सब में नहीं पड़ते थे। बस वक्त यूँ ही खिसक गया।
नन्नू व रिन्कू किशोर अवस्था में पहुँच चुके थे। नन्नू अपनी छोटी बहन को लड़कों की तरह कपड़े पहनाता, उसे अपना भाई कह लोगों से परिचित कराने लगा, जिया ने बहुत समझाया कि निक्की लड़की है, उसे लड़की की तरह ही रहने दो। उसने एक न मानी, अपने साथ लेकर घुमता, सभी उसे उसका छोटा भाई समझते थे। रिन्कू मौसी के साथ घुली मिली रहती, जिया की परवाह उसे बिलकुल न थी। जिया अपना पूरा ध्यान ठाकुर जी की भक्ति में लगाने लगी, उसका अधिकांश समय मंदिर में बीतता, जिससे और माँ उससे गुस्सा होती, बच्चों का ध्यान न रख मंदिर में पड़ी रहती है। पिता सब देखते सुनते लेकिन वह यह समझते थे कि घर पर रह कर जिया को सिर्फ घुटन ही मिलेगी, इसलिए वह उसे मंदिर की धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने से मना नहीं करते, खुद भी जिया की मदद करने लगे। सभी अपने-अपने में व्यस्त रहने लगे। उस घर में जिया की माँ और पिता के बीच लकीर खिंच चुकी थी, वह बड़ी बेटी व दमाद के साथ व्यस्त रहते, माँ छोटी बेटी व उसके बच्चे के साथ समय बिताती।
आगे की कहानी पश्चाताप की ज्वाला
भाग-5 में