फाइलें
फाइलें
लोग कहते हैं ऑफिस की बात घर नहीं लानी चाहिए किन्तु सक्सेनाजी बिना दो चार फाइलें लिए घर नहीं जाते थे। रात को घर पर भी फाइलें खोलकर बैठ जाते थे। उनकी पत्नी विमला को शुरू में गुस्सा आता था अब आदत पड़ गयी थी। बच्चे तो जन्म से देख रहे थे। रानी बचपन में खेलते-खेलते पापा का आड़ा-टेढ़ा रेखा चित्र बनाती थी तो उसमें भी उनके हाथ में फाइल रहती थी। सक्सेना जी की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। सेवा निवृत्ति से कुछ साल पूर्व ही उन्होने बेटी रानी और बेटे राज की शादी करदी थी। राजेश को आगरा में एक अच्छी नौकरी भी मिल गयी थी। राज ग्वालियर से आगरा रोज आता जाता था।
सक्सेनाजी के कुछ मित्र रिटायर हो चुके थे। कुछ लोग सक्सेना को भी वोलंटरी रिटायरमेंट लेने की सलाह देने लगे थे। सक्सेना जी ने एक आध बार इस बारे में सोचा तो उन्हें बात जँची नहीं। उनकी समझ में नहीं आया कि जब वो ठीक ठाक काम करने की स्थिति में हैं तो रिटायर कैसे हो जाये और रिटायर होकर वो करेंगे क्या ?
कुछ वरिष्ठ और कनिष्ठ सहयोगी सक्सेनाजी का फायदा भी उठाते थे। अपनी एक दो फाइलें भी सक्सेना जी को थमा देते थे।
बॉस साल में एक आध बार सक्सेना जी को 500/-रुपये और प्रशंसा पत्र दे देते थे। सरल सक्सेनाजी उसी में खुश हो जाते थे।
ऑफिस का पुराना चपरासी गोरेलाल सक्सेना जी का सबसे करीबी था। उसे सक्सेना जी की जरूरतें और पसंद न पसंद सब का पूर्ण ज्ञान था। वह जानता था सक्सेना को कब कैसी चाय चाहिये। ऑफिस छोडते समय वो फाइलें ठीक से बाँध कर सक्सेना जी के स्कूटर की सामने वाली डिक्की में फिट करके उन्हें विदा करता था।
आहिस्ता-आहिस्ता वह दिन भी आ ही गया जो हर नौकरी पेशा व्यक्ति की जिंदगी में आता ही है। सक्सेना जी भी एक दिन रिटायर हो गये। ससम्मान उनकी ऑफिस से विदाई हुई। ऑफिस की कार से कुछ लोग उन्हें घर तक छोड़ने आये। गोरेलाल उनका स्कूटर घर पर रख गया।
रात को सक्सेनाजी पुनः अपने स्थान पर फाइलों के गट्ठर के साथ बैठे थे। बिजली के बिल की फाइलें, चिट्ठियों की फाइलें, जन्मपत्रियों की फाइलें, सीनयरटी के मुकदमें की फाइलें। विमला ने कहा, “अब कौन सी फाइलें देख रहे हैं। रिटायर हो गये अब तो चैन से सोइये।”
“तुम सो जाओ। मैं अभी आता हूँ।”
विमला थकी थी सो वो सो गयी।
रात्री के चौथे प्रहार विमला की आँख खुली उसने जाकर देखा सक्सेना जी मेज़-कुर्सी पर ही बैठे सो रहे थे। सामने रिटायर मेंट की फाइल खुली रखी थी। विमला ने उन्हें आवाज दी। कोई असर न हुआ तब उन्होने पास जाकर सक्सेना जी का कंधा पकड़ कर जगाया तो वे एक तरफ झुक गये। विमला की रुलाई फूट पड़ी। उसने राज को आवाज दी। राज ने आकर देखा तो उसकी भी रुलाई फूट पड़ी। सक्सेना जी परलोक सिधार चुके थे।
दूसरे दिन उनकी अंतिम यात्रा में सैकड़ों व्यक्ति शामिल हुए। सबने श्रद्धांजलि दी जब सक्सेना जी की चिता धधक उठी। गोरे लाल ने साथ लाये खाकी झोले से एक फाइल निकाल कर चिता में डाल दी और अश्रु पूर्ण नज़रों से सक्सेना जी को अलविदा कह कर श्मशान के बाहर चला गया।