वड़वानल -17
वड़वानल -17
आस्तीन के साँप ही विश्वासघात करेंगे। यह ध्यान में रखकर शेरसिंह अपना बसेरा गिरगाव से दादर ले गए। एक भूमिगत कार्यकर्ता के माध्यम से इस नयी जगह का पता खान और मदन तक पहुँचाया गया था। पहरेदार बदल दिये गए थे।शेरसिंह ने बाहर निकलना पूरी तरह बन्द कर दिया था।जो कार्यकर्ता बाहर से उनसे मिलने आते उनकी कसकर तलाशी ली जाती। पुराने सांकेतिक शब्द बदल दिये गए।
दरवाजे के बाहर ही एक बंगाली नौजवान ने मदन और खान को रोका।
‘‘आज यह सूरज कहाँ से निकला है ?’’ उसने पूछा।
‘‘समुद्र पर पाँच बजे।’’
‘‘यहीं ठहरो।’’
और वह नौजवान घर के पिछवाड़े की ओर गया तथा कुछ देर बाद वापस आया।
‘‘चलो।’’ उसने उन दोनों को इशारा किया और उन्हें अन्दर ले गया।
‘‘यहाँ आते समय बहुत सावधानी बरतना, सरकार ने मुझे एवं अन्य क्रान्तिकारियों को पकड़वाने के लिए इनाम रखा है। अर्थात्, इस बारे में पर्चे बंगाल में निकले हैं, मगर हमें सावधान रहना होगा।आर.के. की एकल लड़ाई का क्या हुआ ?’’ शेरसिंह ने पूछा।
मदन ने आर.के. से सम्बन्धित सारी घटनाओं की तथा बैरेक्स में उन पर हो रही प्रतिक्रियाओं की जानकारी दी।
“आर.के. की बलि चढ़ गई, मगर फिर भी सैनिकों के बीच अस्वस्थता पैदा करने का महत्त्वपूर्ण काम उसने कर दिया है। इस अस्वस्थता को फैलाने का काम शीघ्र ही शुरू करो।हवाई दल के सैनिक भी अस्वस्थ हैं।दोनों दल यदि एक साथ बगावत कर दें तो सरकार हिल जाएगी।’’
‘‘सैनिक दलों की यदि बगावत हुई तो थोड़ी–बहुत हिंसा जरूर होगी। अपने भाई–बन्दों के साथ हो रही मारपीट को सैनिक शान्ति से बर्दाश्त नहीं करेंगे।’’ खान ने कहा।
‘‘यदि हिंसा होती है तो काँग्रेस हमारे आन्दोलन का समर्थन नहीं करेगी। अभी हाल ही में हिन्दुस्तानी व्यापारियों के संगठन ने कांग्रेसी नेताओं को पत्र भेजा है। उस पत्र में उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि वर्तमान में हिन्दुस्तान असन्तोष के ज्वालामुखी पर खड़ा है। इसका विस्फोट कब होगा, इसका कोई भरोसा नहीं। इस परिस्थिति में यदि क्रान्तिकारियों ने विद्रोह कर दिया तो क्रान्ति होने की और रूस के समान समाजवाद स्थापित होने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता और तब व्यापारियों के लिए काँग्रेस को मदद देना असम्भव होगा।’’
‘‘काँग्रेस व्यापारियों का विरोध नहीं करेगी। क्योंकि काँग्रेस को उन्हीं का आधार है।’’ मदन ने अपनी राय दी।
‘‘अंग्रेज़ी व्यापारियों की ये माँग है कि हिन्दुस्तान को आज़ादी देते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि उन्हें मिलने वाली सुविधाओं पर कोई आँच न आए।’’ शेरसिंह ने अंग्रेज़ी व्यापारियों की माँग स्पष्ट करते हुए कहा।
‘‘इसका मतलब हिंसा के एवं सेना का शासन स्थापित होने के डर से कांग्रेस समर्थन नहीं देगी और इस बात की सम्भावना है कि अंग्रेज़ अत्यन्त क्रूरता से इस विद्रोह को दबा देंगे, क्योंकि जब तक उनका पक्ष मजबूत नहीं हो जाता वे स्वतन्त्रता के बारे में विचार करने के लिए तैयार नहीं हैं।’’ खान ने सम्भावना व्यक्त की।
‘‘मतलब, हमारा आन्दोलन भी हमारे अकेले का ही होगा।’’ मदन बोला।
‘‘तुम लोग अकेले नहीं होंगे। मैं तुम्हारे साथ हूँ, जनता साथ देगी, क्रान्तिकारी संगठन साथ देंगे। कर्तव्य करते समय परिणाम एवं समर्थन का विचार नहीं करना चाहिए। जो होगा उसका निडरता से सामना करना होगा,’’ शेरसिंह बोले।
‘‘आर.के. ने हमारे सामने आदर्श रखा ही है।मगर अब आगे करना क्या होगा ?’’ मदन ने पूछा।
अंग्रेज़ों को सताने के लिए और सैनिकों को उकसाने के लिए पूरी बेस में घोषणाएँ लिखो, परचे चिपकाओ। परचे तुम तक पहुँचे इसकी जिम्मेदारी मेरी।’’
शेरसिंह ने उन्हें आश्वासन दिया।
अगली मुलाकात का समय और सांकेतिक शब्द लेकर मदन और खान बाहर निकले। शेरसिंह के हृदय में क्रान्ति और स्वतन्त्रता की आशाओं का गुलमुहर फूल रहा था।
आर.के. द्वारा किये गए सत्याग्रह एवं उसे दी गई सजा का विवरण कराची, विशाखापट्टनम, कोचीन इत्यादि स्थानों के तटीय बेस पर और मुम्बई में मौजूद जहाज़ों पर पहुँचा।अनेक सैनिकों के मन में आर.के. के प्रति सहानुभूति उत्पन्न हो गई थी। जहाजों के कुछ मित्र मदन और गुरु से पूछते, ‘‘जब आर.के. के साथ मारपीट की जा रही थी तो तुम लोग चुप क्यों रहे ?’’ एक सैनिक उस पर हो रहे अत्याचार, मारपीट इतनी शान्ति से कैसे बर्दाश्त कर सकता है, यह सवाल उन्हें सताता।आर.के. का मार्ग गलत प्रतीत होते हुए भी उसके साहस की सभी प्रशंसा कर रहे थे।एच. एम. आई. एस. (HMIS) ‘जमुना’ के राठौर ने मदन से कहा था, ‘‘मुझे अपने आप पर शर्म आ रही है। हम ये अन्याय किसलिए बर्दाश्त कर रहे हैं ? आर. के. का मार्ग गलत प्रतीत हो रहा है, मगर उसकी हिम्मत की दाद तो देनी ही पड़ेगी। ये हिम्मत हम क्यों नहीं दिखा सकते ? हम इतने नपुंसक क्यों हो गए हैं ?’’
राठौर ने अधिकांश सैनिकों की भावना ही व्यक्त की थी।
दत्त का ‘तलवार’ में तबादला सबको आश्चर्यचकित कर गया। सैनिकों के तबादलों का सत्र आरम्भ होने में अभी चार महीने बाकी थे।
‘‘अरे, तू बीच में ही यहाँ कैसे ? क्या किसी काम से आया है ? कितने दिन रुकेगा ?’’ मदन ने सवालों की झड़ी लगा दी।
‘‘अरे, हाँ! एकेक सवाल पूछ। मेरा यहाँ तबादला हो गया है। किसी अन्य नौसेना बेस के मुकाबले में मुम्बई के नौसेना बेस का वातावरण अधिक विस्फोटक हो गया है और यदि शुरुआत करनी हो तो हमें यहीं से करनी होगी।बीच में छुट्टियों के दौरान कराची और विशाखापट्ट्नम जाकर आया, वहाँ के सैनिक भी बेचैन हैं। आगे बढ़कर विद्रोह करने वाले सैनिक तो वहाँ नहीं हैं, मगर यदि किसी अन्य स्थान पर विस्फोट हुआ तो इन नौसेना बेस पर और कराची बेस पर भी विस्फोट होगा और यह अंग्रेज़ों के लिए जबर्दस्त धक्का होगा। यह सोचकर मैंने अलग–अलग मार्गों से कोशिश की।ड्राफ्टिंग ऑफिस में हमारे कुछ सैनिक और एक अधिकारी है। उन्हीं के कारण मैं यहाँ आ सका।’’ दत्त ने स्पष्ट किया।
‘‘दत्त यहाँ आ गया यह बड़ा अच्छा हुआ। अब हम फ़ौरन योजना बनाकर उस पर त्वरित कार्रवाई कर सकेंगे।आगे क्या करना है ये तय करने के लिए, मैं सोचता हूँ, हमें रात को पाइप डाउन के बाद संकेत स्थल पर जमा होना चाहिए।’’
गुरु ने सुझाव दिया।
इन क्रान्तिकारियों का रात की सभा का स्थान था बैरेक से एक फर्लांग दूर एक विशाल बरगद का पेड़। इस तरफ रात को तो क्या दिन में भी कोई नहीं आता था। इस प्राचीन वटवृक्ष का तना इतना चौड़ा था कि उसके पीछे आराम से तीन–चार व्यक्ति छिप सकते थे। ज़मीन तक पहुँचती जटाओं के कारण तो रात में पेड़ के नीचे अँधेरा ही रहता था।पाँच–दस फुट करीब आने पर ही दिखाई देता था कि उसके नीचे कोई बैठा है या नहीं।आजकल वे रात को इसी पेड़ के नीचे इकट्ठे होकर विचार–विनिमय किया करते थे। उनमें से हरेक नीली यूनिफॉर्म पहनकर अलग–अलग रास्ते से वहाँ पहुँचता।
‘‘हमें अलग–अलग नौसेना बेस से वहाँ की गतिविधियों के बारे में जानकारी भेजी जाती है, हम भी वैसा ही करते हैं। पर यह सब पत्रों के माध्यम से होता है।इसमें पहली बात, समय ज्यादा लगता है और दूसरी बात, हमेशा यही डर लगा रहता है कि यदि पत्र किसी अवांछित व्यक्ति के हाथों में पड़ गया तो क्या होगा ? इस पर कोई उपाय सोचना ही पड़ेगा।’’ मदन ने परेशानी बताई।
वहाँ जमा हुए मदन, गुरु, खान, दत्त सभी कम्युनिकेशन ब्रांच के होने के कारण उन्हें पर्याय का ज्ञान था।
‘‘अरे, अपने हाथों में इतनी बड़ी यन्त्रणा है। हम वायरलेस सन्देश भेजेंगे!’’
दास ने कहा।
‘‘बड़े सयाने हो! अगर उस समय अपना ऑपरेटर न हुआ तो ?’’ गुरु ने कहा।
‘‘इस बारे में तो मैंने सोचा ही नहीं।’’ दास ने स्वीकार किया।
‘‘यदि हम ए के स्थान पर जेड, बी के बदले वाई इस प्रकार ट्रान्समिट करें तो ?’’ सलीम ने सुझाव दिया।
‘‘हर्ज नहीं। मगर दो–चार सन्देशों का विश्लेषण करने के बाद हमारी चालाकी पकड़ी जाएगी।’’ मदन ने कहा।
''Have manners. No discussion in uncipherable language.'' दत्त आपस में बंगाली में बात कर रहे दास और सलीम पर उखड़ा।
‘‘अरे, यही तो उपाय है, हम रोमन मलयालम में सन्देश भेजेंगे, उसके लिए पाँच टेलर्स का ग्रुप बनाएँगे। मेरा ख़याल है कि हमारी सभी बेस के सहकारियों में एकाध मलयाली तो होगा ही। यदि हमारे सहकारी के स्थान पर कोई और ड्यूटी पर होगा तो वह डिस्क्रिप्ट करने की कोशिश करेगा, मगर उसे कुछ भी समझ में नहीं आएगा, क्योंकि वो रोमन मलयालम में होगा।अधिक सुरक्षा के लिए हम टायपेक्स का इस्तेमाल करेंगे।’’ गुरु का सुझाव सबने मान लिया।
‘‘अब समय गँवाने में कोई लाभ नहीं ऐसी शेरसिंह की भी राय है।आर.के. ने अंग्रेज़ों को उकसाया है। मगर हमें इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। आर.के. जैसे सहयोगी को खोना पड़ा है। हमें अब दूसरे मार्ग को अपनाना चाहिए और अंग्रेज़ों को चिढ़ाते हुए, सैनिकों का आत्मसम्मान जागृत हो चुका है, यह दिखाने के लिए, इस बात का भी ध्यान रखना पड़ेगा कि हममें से कोई पकड़ा न जाए।’’ मदन ने सुझाव दिया।
‘‘शेरसिंह ने पर्चे देने का वादा किया है। हम रात को उन्हें चिपका सकेंगे।’’ खान ने सुझाव दिया।
‘‘इसके बदले यदि नारे लिख दिये जाएँ तो ?’’ गुरु ने सवाल किया।
‘‘मगर कब लिखेंगे नारे ?’’ दास ने पूछा।
‘आज रात को ही लिख देंगे।’’ सलीम ने कहा।
‘‘यदि 1 दिसम्बर की पूर्व संध्या को यह काम किया जाए तो ?’’ दत्त ने सोचकर सवाल पूछा।
‘‘ऐसी क्या खास बात है उस दिन में ?’’ सलीम ने पूछा।
‘‘भूल गए ? 1 दिसम्बर को नौसेना दिवस मनाया जाने वाला है।उस दिन अपने नौसैनिक सामर्थ्य का प्रदर्शन करने के लिए हिन्दुस्तानी जनता को जहाज़ पर और बेस पर बेरोक–टोक प्रवेश दिया जाने वाला है। ‘तलवार’ को देखने आई जनता को जब ‘तलवार’ स्वतन्त्रता के नारों से रँगा हुआ दिखेगा तो अंग्रेज़ों की तो फजीहत होगी ही, मगर साथ ही हिन्दुस्तान की जनता यह भी समझ जाएगी कि सैनिक शान्त नहीं हैं।उनके मन में भी एक तूफान उमड़ रहा है।वे अंग्रेज़ों के साथ नहीं हैं।स्वतन्त्रता आन्दोलन में यदि उन्हें अपने साथ लिया जाए तो स्वतन्त्रता प्राप्त करने में आसानी होगी।’’ दत्त ने 1 दिसम्बर के दिन के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए कहा।
‘‘मेरा ख़याल है कि हम सभी को इस काम में एक साथ नहीं लगना चाहिए। सावधानी बरतने पर भी यदि पकड़े गए तो अपना कार्य ही रुक जाएगा। अत: इस काम की रूपरेखा दत्त बनाएगा और मैं तथा गुरु उसकी सहायता करेंगे,” मदन ने यह सुझाव दिया और अन्य लोगों ने कुछ नाराज़गी से ही इसे सम्मति दी।’’