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Mahima Jain

Romance

0.6  

Mahima Jain

Romance

एक अधूरी कहानी

एक अधूरी कहानी

12 mins
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कहते है हर कहानी का अंजाम खूबसूरत हो ये जरूरी नही, पर अंत जो होता अच्छे के लिए ही होता है।

इसी तरह उनकी कहानी शुरू हुई

छोटे शहर की आरजु और अरहान की।

कहानी की शुरुआत हुई जब पहली मुलाकात एक रिश्तेदार की शादी में हुई ।

हर शादी की तरह जो नोक झोक लड़के के दोस्त और लड़की की सखियो में होती हैं।

मुलाकात सिर्फ इतनी सी ही थी उस बार

फिर दोनों अपने अपने शहर लौट गए।

एक महीने बाद दोनों की इत्तेफ़ाक से मुलाकात हुई और इस बारे ये सिर्फ इतनी सी न थी।

बातों का दौर शुरू हुआ और दोनो की दोस्ती बढ़ने लगी

दोनो एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त बन चुके थे।

एक बात भी न छुपाई जाती थी, बिन कहे ही कई बार समझ जाते।

अरहान अब जॉब करने लगा था,

आरजु के पूछने के बाद अरहान ने उसे बताया कि जॉब शौक नही मजबूरी है, वो कहते है न जिम्मेदारी लोगो को वक़्त से पहले बड़ा कर देती है।

अरहान के पिता ने बचपन में ही उसे उसकी माँ और छोटे भाई को छोड़ दिया था, वो उसी शहर में अलग रहते थे। अरहान का परिवार अपने ननिहाल पर निर्भर रहा था अब तक। अरहान की अब तक कि पढ़ाई का खर्चा भी उन्होंने ही उठाया था, वो उनके एहसानों तले दबा था। सिर्फ इतनी बात बता कर उसने आरजु से वादा लिया कि इस बारे में फिर कभी जिक्र न करे। आरजु को उस दिन शायद अरहान के दर्द ने इतना झकझोर के रख दिया कि उसने खुद से वादा किया कि वो कभी अरहान को दुख नही पहुंचाएगी ।

अरहान के दर्द को देख उससे बिल्कुल ना रहा गया, उसे समझ नही आ रहा था कि उसके मन मे सहनुभूति है या मोहब्बत  ??

पर उसके मन मे मोहब्बत के लिए सबसे ज्यादा नफरत थी और डर भी।

उसे अपनी ज़िंदगी मे सबसे ज्यादा डर किसी चीज से था तो मोहब्बत से, कुछ पुराने जख्म ऐसे थे जिन्हें वो कभी भूला नही पायी थी।

एक दिन अरहान ने उससे अपनी मोहब्बत का इज़हार कर दिया और आरजू से उसका जवाब पूछा।

आरजु कुछ न कह पायी, कहीं न कहीं वो भी जानती थी कि उसे भी अरहान से  प्यार था, पर उसका दिल उसे किसी पर विश्वास करने की इजाज़त नही दे रहा था। उसने अरहान को अपनी दोस्ती का वास्ता देकर मना कर दिया। पर अरहान को जैसे उसे पाने का जुनून चढ़ा था।

उसने बहुत कोशिश की और बहुत मनाया, उसने आरजु को यकीन दिलाया कि वो आम लड़कों की तरह नही, वो किसी के छोड़ कर जाने और धोखा देने का दर्द समझ सकता है, उसने आरजु को यकीन दिलाया कि वो अपनी सारी जिंदगी आरजु के साथ बिताना चाहता है, वो उसकी पहली और आखरी मोहब्बत है वो कभी वो नहीं करेगा जो उसके पिता ने उसकी माँ के साथ किया था ।

इतना सब सुनने के बाद उसने अपने दिल को मना लिया और हाँ कह दी।

उस वक़्त उसे लगा शायद वो अरहान को इतना प्यार देगी की उसे कभी अपने पिता की कमी नही महसुस होगी ।

हवाओ में इश्क़ ज़ोरों पर था, आरजु की मोहब्बत पाक थी, लगा था जैसे उसे अरहान को खुशियाँ देने से उसका दर्द कम होता हो। उनका दिन एक दूसरे को एक नजर देखे बिना अधूरा रहता। हर रोज कही न कही वो एक झलक पाने का रास्ता निकल ही लेते थे।

इससे ज्यादा आरजु को कोई आरजु न थी वो बस रात दिन यही दुआ करती थी कि अरहान को अब और किसी के एहसानों तले दबना न पड़े, वो खुश रहे, अपनी जरूरते पूरी करने लायक बने। जब कभी अरहान का हौंसला टूटने लगता वो उसे संभाल लेती, हमेशा उसका साथ देती । वो मिलने लगे और देखते ही देखते न जाने कब एक साल ओर निकल गया। पर अब चीजे बदलने लगी थी।।

अरहान कुछ कटा कटा से रहने लगा था, शायद उस पर काम और कमाने का बोझ बढ़ता जा रहा था, अब मुलाकात क्या कुछ दिनों तक ढंग से बात भी न हो पाती थी, आरजु को डर था कि कहीं अरहान का प्यार उसके लिए कम तो नही हो गया, पर जब भी उसे ये ख्याल आता वो आंखे बंद कर उस दिन को याद करती जब अरहान ने उससे  प्यार का इज़हार किया था, वो सब बातें और वादें किए थे, आरजु फिर खुद के ख्यालो को रोक खुद को समझाती की अरहान की ज़िंदगी इतनी आसान नही उसे उसका साथ देना है चाहे कुछ भी हो।अब अरहान की बाते बदलने लगी थी, अब उनमे चाहत से ज्यादा सिर्फ आदत लगती थी,

ये रिश्ता उसे बोझ लगने लगा था। शायद उसने वो सब पा लिया था जो उसे चाहिए था। पिछले एक महिने से न उसकी कुछ बात हो पाई थी न ही कोई मेसेज।

आरजु का मन बहोत घबरा रहा था, वो समझ नही पा रही थी कि क्या करे किस्से पूछे। उसकी न तो अरहान के घर वालों से पहचान थी न अरहान के दोस्तों से, उसे लग रहा था जैसे वो कभी था ही नही, कहीं उसका कोई पता नही, न सोशल साइट्स पर कोई अपडेट न कोई मेसेज। उसका फोन भी बंद आ रहा था। वो बहुत घबरा चुकी थी ,एक एक दिन सदियों के जैसे कट रहा था, मन  में हर तरह के बुरे खयाल आ चुके थे, न उसका मन खाने में लग रहा था न पढ़ने में न किसी ओर चीज में। वो अपनी कशमकश किसी को बता भी नही पा रही थी।आरजु के हालात भी कुछ ठीक नही थे इसी समय  पिताजी को अचानक हार्ट अटैक आ गया । लगता था भगवान जैसे उसकी परीक्षा ले रहा है, जैसे सब कुछ हाथों से छूट रहा था, अपनी ज़िंदगी के दो सबसे महत्वपूर्ण लोगो को वो खो रही थी, उसे अरहान की जरूरत थी, किसी की किसी ऐसे की जिसके सामने उसे मजबूत रहने का दिखावा न करना पड़े, जिसे वो बता सके कि वो कितनी डरी हुई है, की वो कितना हारा हुआ महसूस कर रही है।

 

आरजु की सहेली सपना को अरहान और आरजु के बारे में पता था, वो जानती थी कि अरहान की एक आवाज आरजु को कितनी हिम्मत दे सकती थी, पर अरहान का कोई पता नही था।

एक रोज सपना को बाजार में अरहान दिखा,वो खुद को रोक न पायी ओर अरहान के पास गई और आरजु की सारी हालात बताई और साथ ही पूछा, "अरहान कहाँ  हो तुम इतने दिनों से ,आरजु का बहुत बुरा हाल है पिता जी और तुम्हारे दोनो के गम में एक आंसू भी न बहा पा रही है, क्या तुम्हें उसकी इतनी सी भी फ़िक्र नही "?

अरहान सपना से कुछ बहाना बना कर वहां से निकल गया, उस रोज उसने आरजु को कॉल किया। आरजु के पूछने पर वो बोला कि आरजु मेरा फ़ोन खराब हो चुका था, सॉरी में तुम्हे बता नही पाया, आज पिक्चर देखने चले, तुम्हारे घर वाले भी सब हॉस्पिटल में व्यस्त होंगे, तो तुम आ भी पाओगी।

 

ये सुनते ही आरजु समझ नही पायी कोई ऐसे कैसे कर सकता है, उसने कहा अरहान तुम्हे मेरी पिता की ऐसी हालात में भी परिस्थिति का फायदा उठाने की पड़ी है, क्या एक बार भी तुम्हारे मन ने तुम्हे रोका नही,तुम्हारे मन मे यह खयाल भी कैसे आया ??

अरहान ने मजाक कहते हुए बात को टाल दिया। वो शायद आखरी बार था जब उन्होंने बात की थी ।

धीरे धीरे पिताजी की तबियत सुधरने लगी, अब तीन महीने हो चुके थे उनकी एक बार भी बात नही हुई थी।

 

आरजु ये सोच के थक चुकी थी कि अरहान इतना क्यूँ बदल गया, उसमे क्या कमी थी। उसका हर चीज से मन उठने लगा था। उसे ठीक से हँसे महीने हो चुके थे, वो बस उन दिनों को याद कर जी रही थी जिसमे उसने पूरी एक ज़िन्दगी को जीया था। उसने अपनी आंखों से एक आंसू न गिरने दिया था।

उसकी ये हालात सपना से देखी न गयी , उसने एक दिन आरजु को अकेले में अपनी कसम दे कर सारी बात पूछी। शायद वही पल था जब आरजु पहली बार अपने दर्द का जिक्र कर रो पड़ी थी उसकी सिसकियों से एक अल्फाज भी पूरा नही हो रहा था ,उसके  एक एक आंसू उसका दर्द बयां कर रहे थे  , आरजु की हालत देख सपना की आंखों से आंसू बहने लगे ,पगली सब कुछ मन मे रख घुटती रही। अरहान का एक दोस्त सपना का अच्छा दोस्त था, सपना के बहुत पूछने पर उसने अरहान के बारे में बताया, उस सच ने सपना की आत्मा को झकझोर  कर रख दिया।

 

अरहान ने जो भी अब तक किया था सब कुछ उसका एक सोचा समझा काम था। ये सब शुरू हुआ उस पहले दिन से लेकर जब वो पहली बार उस शादी में मिले, अरहान की उसके एक दोस्त से शर्त लगी थी की वो आरजु को अपना बना कर रहेगा, उसे खुद भी आरजु पसन्द थी और उसे आरजु को पाने की जिद थी, आरजु पहली लड़की नही थी, वो हर दूसरी लड़की से अपने पिता के बारे में बता कर सहानुभूति लेने की कोशिश करता और इसी के जरिये वो अपनी जगह बनाता, आरजु के साथ होते हुए भी उसका दो दूसरी लड़कियों से भी वही रिश्ता था। इतना सुन सपना वहां से चली गयी, घर जाकर उसने आरजु को सब कुछ सच सच बता दिया। आरजु सपना की बात नही मान सकी  , जरूर कोई गलतफएमहि हुई है मैं जानती हूं अरहान को ,वो इस नही कर सकता।

 

सपना ने कहा " मेरा मन भी मानने को तैयार नही था, पर ये सब सच है, तुम ही सोचो उसने क्यों तुम से बिना किसी बात के बिना कुछ बताये सब कुछ अपनी तरफ से खत्म कर दिया जैसे कभी कुछ था ही नही।

आरजु कुछ समझ नही पा रही थी, क्या सोचे किस बात पर यकीन करें जो उसका दिल कह रहा है या जो दिमाग, दिमाग को पता था कि कही न कही कुछ तो गलत है जो आरजु समझ नही पायी और दिल ये मानने को तैयार नही था, दिल बस यही मानना चाहता था कि जरूर अरहान की कोई मजबूरी रही होगी।आरजु की हालत बिगड़ने लगी थी!!

अब सपना के पास सिर्फ एक रास्ता था आरजु को सही गलत के बीच फर्क दिखाने का, सपना ने आरजु पूछा " रिया कहाँ है अभी, हम उसकी मदद ले सकते है, उसके आगे कोई नही जीत सकता, अरहान उसे जानता भी नही होगा, आरजु - लेकिन हम करेंगे भी क्या ??

सपना- तुम्हे सच जानना है...ना हम रिया ओर अरहान के दोस्त ऋषि की मदद से सच सामने लाकर रहेंगे।

सपना अपना पूरा प्लान ऋषि और रिया को बताती है,ऋषि पहले तो इनकार कर देता है पर सपना उसे अपनी बचपन की दोस्ती का वास्ता देकर मना लेती है।

ऋषि अरहान से मिलता है और बातो ही बातो में उसे रिया के बारे में बताता है

ऋषि- अरहान यार एक लड़की से तकरार हो गयी, बहुत खूबसूरत थी, पर अपने बस की कहाँ , देख ये उसका पिक्चर। ऋषि अरहान को रिया की एक पिक्चर दिखाता है , अरहान ऋषि से रिया का नंबर मांगता है और चला जाता है।

उसी दिन रिया के पास अरहान का मेसज आता है। अरहान- क्या हम कभी मिले है??

रिया कहती है नही, पर शायद हमारा शहर छोटा है ,कहीं निगह मिल गयी होगी ।

और अरहान बातो बातो में रिया से दोस्ती कर लेता है, फिर जब रिया अरहान को उसके बारे में और उसकी जिंदगी के बारे मे पूछती है तो सबसे पहले वो अपने पिता का जिक्र ही करता है और हर मुमकिन कोशिश करता है जिससे रिया के दिल मे अपने लिए सहानुभति ला सके।

कुछ दिनों की बातचीत बाद अरहान रिया से मिलने की बात करता है रिया कुछ बार मना कर फिर आख़िर हां कर देती है।

अरहान रेस्टोरेंट में रिया का इंतजार कर रहा होता है और रिया आती है कुछ देर बात करने के बाद अरहान रिया से कहता है कि वो उसे बहुत पसंद करता है और ज़िन्दगी भर उसका साथ चाहता है ।

बस इतना था कि अब आरजु से रहा न गया वो पीछे की तरफ ही बैठी हुई थी, सब कुछ सुन रही थी सपना और ऋषि भी वही थे। सपना रिया को अपनी तरफ खींच लेती है और आरजु अरहान की सामने चली जाती है ,आज उसके आँसू तो बह रहे थे पर सिसकिया ना जाने कहाँ दब चुकी थी। 

 

हिम्मत करके वो अरहान से कहती है: अरहान मैंने तुम पर यकीन किया, तुम्हारे सही में, तुम्हारे गलत में, तुम्हारे खुशी में तुम्हारे गम में सब मे साथ दिया, हर बार तुम्हे समझना चाहा, तुम्हे खुश रखने के लिए सब कुछ किया चाहे मेरा मन मेरी आत्मा ने मुझे मना किया पर मेरे लिए कुछ मायने रखता था तो वो था तुम्हारी खुशी। मैंने तुम्हारे गम को समझना चाहा, तुम्हारे गम को बाँटना चाहा। तुम मेरे लिए मेरे साथी ही नही सच्चे दोस्त भी थे। मेरे दिल और दिमाग के मना करने के बावजूद मैंने तुम पर विश्वास किया । सब कुछ मेरे सामने था और में देख भी नही पायी। क्या हो तुम क्या कर दिया तुमने मुझे ?? मुझे लगा था कि शायद एक बार  इंसान को पहचानने में गलती कर सकती हूं पर तुम तो मेरे दोस्त थे न तुम्हे कैसे पहचानने में गलती करूँगी, पर सब धोखा था, वो दोस्ती भी ओर वो मोहब्बत भी। तुम्हारे लिए शायद ये खेल है किसी को पाना बस एक जीत है पाकर तुमने जो मुझसे छीना है न , वो मुझे सारी जिंदगी कोई नही लौटा सकता , जानते हो क्या है वो, खुद पर विश्वास करने का हौसला , मेरा किसी और पर विश्वास करने का विश्वास।

शायद मुझेे ज़िन्दगी में तुमसे अच्छा हमसफर मिल जाये पर वो विश्वास मुझे कभी नही मिल सकता जो तुमने मुझसे छिना है।

खैर वो भी कुछ नही पर मैने कभी नही सोचा था कि तुम ऐसे निकलोगे, कोई ऐसा कैसे कर सकता है, तुम अपनी  ज़िन्दगी के एक शक्स को सीढ़ि बना कर हर दूसरी लड़की को अपना बनाना चाहते हो,तुमने अपने ही पिता का इस्तेमाल किया, चाहे वो कैसे भी हो, पर वो तुम्हारे पिता है। पता है क्या तुम में और तुम्हारे पिता में कोई फर्क नही, तुम्हारे पिता भी इसी तरह तुम्हे और माँ को छोड़ कर गए थे ना, आज के बाद कभी उन्हें मत कोसना, तुम उनसे कुछ भी बेहतर नही। तुमने मेंरे साथ वो किया है जो तुम्हारे पिता ने तुम्हारी माँ के साथ किया। तुम जब जब अपनी माँ के दुख को देखो न तब मुझे याद कर लेना मैंने तुम्हे बिना किसी शर्त के चाहा था, बेइंतहां चाहा था अरहान। शायद इतना तुम्हे कभी कोई नही प्यार कर सकता जितना मेने किया।

काश तुम बदल जाते ,

काश तुम वक़्त रहते बदल जाते अरहान

तो अच्छा होता,

शायद ये दिल तो होता पर इसमें दर्द न होता,

अब तो सिर्फ दर्द ही दर्द दर्द है

मेरे हर आंसू मेरे हर गम की वजह तुम ही हो,

मेरे हर अश्क़ की वजह तुम ही हो,

शायद में तुमसे कभी नफरत न कर पाऊं,

पर अब मोहब्बत भी न हो पाएगी,

तुम लौटना चाहो भले ही

पर कोई राह तुम्हे नजर नही आएगी।।

अब और आज के इस पल के बाद में तुम्हारे लिए कभी आंसू नही बहाउंगी,

पर याद रखना तुम हजार बार तड़प लो

उम्र भर तुम्हे नजर नही आउंगी।।

आरजु वहा से चली जाती है, यही इस कहानी का अंत था, शुरुआत में जैसा कि मैने कहा था, जो होता अच्छे के लिए ही होता है,इस कहानी का अंत खूबसूरत तो नही पर शायद आरजु के लिए अरहान से बेहतर कल इंतजार कर रहा हो।।

 

 


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