मेरी माही
मेरी माही
आज मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था, मेरी बेटी माही बहुत दुखी थी, घर में उसकी शादी की बात चल रही थी और माही को अपनी पढ़ायी पूरी करनी थी.
मैं अपने पति और सास के ज़िद के आगे बेबस महसूस कर रही थी।
माँ.. तभी माही की आवाज़ सुनायी दी, मैं अपने सोच से बाहर आ गयी...
माँ कहाँ हो आप ?
यहाँ इधर रसोई में हूँ ... चाय बना दूँ तुम्हारे लिए"
नहीं माँ..बस आप दादी को मना लो प्लीज़" दोनो हाथों को जोड़ कर माही बोली उसकी आँखो में उदासी साफ़ दिख रही थी"
हमेशा चहकने और ख़ुश रहने वालीं मेरी बच्ची
ऐसे उदास मेरा दिल रो पड़ा.
क्या करूँ मैं, कैसे समझाऊँ .....
मैं चाय लेकर बालकोनी की तरफ़ आयी देखा माँ जी धूप में बैठी है।
माँ जी , चाय
इधर बैठ कुछ बात करनी है तुझ से , वो बोली
जी कहिये.. मैं भी वहाँ बैठ गयी.
नाराज़ है मुझसे.. ?? जानती हूँ और समझती भी हूँ तू और तेरी बेटी दोनो मुझसे नाराज़ है ।
देख मैं दुश्मन नहीं हूँ तुम्हारी बेटी की दादी हूँ उसकी
फिर क्यों आप उसे नहीं समझ रही है , मैं बोली
माँ जी, आप भी एक औरत है आप को तो अच्छे से समझ आना चाहिए उसकी दिल की बात |
माँ जी मैं आप का विरोध नहीं कर रही, बहुत सम्मान करती हूँ आपका क्या आप अपनी ज़िंदगी से ख़ुश हैं ? मैं ख़ुश हूँ ? क्या एक औरत सिर्फ़ घर, बच्चे और रसोई तक ही सीमित रहनी चाहिये |
माँ जी " क्या आप को नहीं लगता अगर आप की संगीत की रुचि को बढ़ावा मिला होता तो आप आज एक कामयाब गायिका होती या संगीत अध्यापिका होती " माँ जी ठीक उसी तरह मैं भी एक अफ़सर होती अगर मुझे पढ़ने का मौक़ा मिला होता, आज हर छोटी से छोटी ज़रूरत पर आप के बेटे की सामने हाथ ना फैलाना पड़ता, औरत को अपना सम्मान बनाए रखना है तो घर परिवार के साथ अपने सपने को भी पूरा करने का प्रयास करना चाहिए, और ये सपने तभी पूरे होगें जब उसका परिवार उसका साथ देगा, आप और मैं अगर अपनी माही का साथ होगें तो हमारी माही भी अपनी एक पहचान बना पाएगी, किसी की बेटी, किसी की पत्नी, किसी की बहु, किसी की माँ , इन सब रिश्ते निभाते हुए, माही राय की अपनी अलग पहचान होगी।
आशा करती हूँ आप मेरी बात को समझेगी और इक बार फिर सोचेगी अपनी माही के लिए ..।
और मैं वहाँ से उठ गयी, तभी देखा माही दरवाज़े के पीछे खड़ी हमारी बातें सुन रही है।
उसकी आँखों में आंसू थे, मुझे देख वो अपने कमरे में चली गयी ।
शाम हो गयी थी, सोचा पकौड़े बना लू चाय के साथ,माँ जी भी आज अपने कमरे से बाहर नहीं आयी और माही भी ....
अरुण भी ऑफ़िस से आ गए, मैं पकौड़े के साथ चाय लेकर बैठक में आयी, देखा माँ जी अरुण से कुछ बात कर रही है ।
मुझे देख कर बोली दीपा, माही को बुलाओ।
मैं कुछ समझ पाती उससे पहले माँ जी बोली,
अभी कोई शादी की बात नहीं होगी मेरी माही कुछ बन जाए फिर सोचेंगे शादी के बारे में ।
माही दौड़ कर अपनी दादी के गले लग गयी और मैंने चैन की साँस ली,
इधर आ बहु वहाँ क्यूँ खड़ी है , मेरे तरफ़ देख कर बोली
आज तूने मेरी आँखें खोल दी, आज से मैं अपनी पोती के साथ हूँ " हँसते हुए माँ जी बोली।
माही मुझे देख रही थी उसकी आँखें जैसे बोल रही हो... थैंक्स माँ मुझे समझने के लिए, आज अरुण के नज़रों में भी मुझे अपने लिये प्यार और सम्मान दिखा।