एक सपना ऐसा भी ...
एक सपना ऐसा भी ...
कहते हैं कि सुबह का सपना सच होता है मगर मेरा मानना है कि सपना तो सपना होता है। अपनी सोची समझी पॉजिटिव-नेगेटिव कोई भी बात हो, जो दिल दबा कर बैठा रहता है, वही फिल्म बगैर अनुमति लिए (दिल के सेन्सर बोर्ड की) बेधङक शुरू होती है। यह सोच सही-गलत, अच्छा-बुरा भेद नहीं करती, सिर्फ दिल की सोचती है। दिमाग तो चलता है मगर दिल उसका कहाँ सुनता है ?
जो दिल में आया वही शुरु हो जाता है। ना किसी की धमकी का डर, ना कोर्ट में केस फाईल होने की फिक्र।अपनी धुन में चल दिये कुछ अरमान लिये। हाँ तो, मैं सुबह का सपना बता रहा था !
लेकिन मेरा नम्र निवेदन है कि इस सपने का वास्तविक जीवन में कोई संबन्ध नहीं है। अगर होगा भी तो केवल एक बुरा सपना समझ के छोड़ देना।
ज्दाया लोड लेने की जरुरत नहीं है। वैसे भी जिंदगी में यह सब की इतनी आदत हो गई है कि सामान्य लोग सिर्फ देख सकते, सह सकते। बाकी ज्यादा कुछ अपने हाथ में नहीं है। जो कुछ भी चुन के देने का अधिकार बचा है वह भी हमने धर्म के नाम पर गँवा दिया हैं, देते हैं, देने वाले हैं, कोई शक ?
बिल्कुल नहीं। वैसे भी सवाल करने का अधिकार हमें संविधान ने दिया तो है मगर घर में बीवी से सवाल करने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है मगर सपने में तो कुछ भी हो सकता है।
मेरा सपना वैसे ही अजब गजब ढंग का है। सपने में मुझे भारत के पी. एम. मिले।
बस और क्या चाहिये।
मेरी सवाल की भट्टी चालू हो गई।
अरे भाई, वे सुन रहे थे या नहीं मुझे क्या पता ? (उन्हे सुनने आदत नहीं है सिर्फ अपनी सुनाने की है। डालनी पड़ेगी, है कि नहीं ?
मैंने क्या-क्या कहा था ?
पूरा सपना सुनना है कि नहीं ?
बस ऐसे ही पूछ रहा था। हाँ तो, क्या थे वह सवाल, सुनो।
सवाल की लंबी लिस्ट थी। कुछ लाइन कहना बाकी थी और इमर्जेंसी थी !
जैसे कि १. क्या कला धन मिल गया ? (कि सब काला धन . सफेद हो गया ?)
२. सबका साथ, सबका विकास .. हो गया ?
३. ना खाऊँगा .. ना खाने दूँगा ?
खाने ऐसा कहने का मतलब क्या था ?
रोटी, कपड़ा और मकान का सपना ७० साल में हम पूरा नहीं कर सके फिर यह मेट्रो रेल किसके कलेजे पर चलानी है ?
छप्पन इंच छाती क्यूँ नहीं बोल रही, जाति धर्म के नाम पर दंगे फसाद करने वालों के खिलाफ ?
युवक की नौकरियाँ, मुद्रा कर्ज की योजना का लक्ष्य का क्या हुआ ?
और भी सवाल थे।
मैंने कुछ सवाल पूछना शुरु कर दिया ....
हाँ जी महोदय, आपने कहा था, काला धन लाऊँगा...मुझे टोकते हुए वे तुरंत बोले...हाँ, मुझे मालूम है, मैंने क्या कहा था, तुम्हें बोलने की जरुरत नहीं है...और क्या करना है, यह भी मुझे मालूम है...
मेरी परमिशन के बगैर तुम अंदर आये कैसे ?
सिक्यूरिटी...सिक्यरिटी...कहने लगे...फोन की बेल से मेरी नींद खुली और सपना चूर चूर हो गया...